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ईद पर विशेष
मंज़िल ए निशाँ
-परवेज़ आलम “परवेज़”*
कब्रिस्तानों की दीवारों से सटे
दरख़्तों के
शजर दर शजर
जा बजा बिखरे हुए
ज़र्द पत्ते
सुनसान मज़ारों का
मर्सिया नहीं
आरज़ू ए हयात हैं
बहारें आयेंगी
कोंपलें फिर फूट आयेंगी
निकल आयेंगे हरे पत्ते शाखों पर
गुल खिलेंगे
फ़िज़ाएं फिर ख़ुशबूओं को
अपनी बाहों में भरकर
ले चलेंगी
अपनी मंज़िल ए निशाँ तक
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ईद मुबारक
– आभा शर्मा**
देखो वो चांद निकल आया
साथ में ईद का पैगाम लाया
अम्मी की बनाई सेवइयों की
याद आई जब ईद आई
इस साल कुछ बदला मंजर है
शायद मौला की रज़ा ये है
नमाज़ हो मन में अदा
जकात भी दिल से बटे
बरसे रहमत कि ईद आई
दिल मिले भूल कर शिकवे गिले
मनाएंगे अगली ईद बड़े शौकत से
आज क्या हम तो हर दिन ईद मनाएंगे
जब ये बादल छंट जाएंगे।
*परवेज़ आलम “परवेज़”, बिहार प्रशासनिक सेवा के आला अधिकारी हैं
**आभा शर्मा एक समाज सेविका हैं
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