दो टूक
– ज्ञानेन्द्र रावत*
आज देश कोरोना के चलते भयावह संकट के दौर से गुजर रहा है। यह तो सभी जानते हैं कि पूरा देश कोरोना नामक महामारी से बीते एक साल से जूझ रहा है। बीते तकरीब एक साल दो माह के इस दौर में ना जाने कितने बेघरबार हुए, और कितने बेरोजगार। कितने ही परिवार भूख-प्यास से बेहाल होकर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हुए सो अलग। सैकडो़ं ने बेरोजगारी से तंग परिवार का भरण-पोषण कर पाने में असमर्थ रहने पर आत्महत्या को ही आखिरी रास्ता चुना और अचानक अनियोजित लाकडाउन की घोषणा के बाद ना जाने कितने ही लोग महानगरों से फटे हाल, नंगे पैर भूख-प्यास से बेहाल कैसे भी अपने वतन पहुंचने की चाह के चलते रास्ते में ही मौत के मुंह में चले गये, तो कुछ सड़क हादसे और कुछ वाहनों की चपेट में आने तो कुछ बस-ट्रक पलटने से मौत के मुंह में चले गये। कई रेल की चपेट में आये वह अलग।उद्योग धंधे चौपट होने से जहां अर्थ व्यवस्था चौपट हुयी वहीं उद्योगों के मालिक तबाही के कगार पर पहुंच गये, वहीं कंपनियों में कार्यरत कामगार कंपनी-उद्योग बंद होने से दाने-दाने को मोहताज हो गये। छोटे दिहाडी़ मजदूर और घरेलू कामगारों का तो कोई पुरसाहाल तक न था।
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अब कोरोना महामारी की इस दूसरी लहर की मार और भी ज्यादा घातक सिद्ध हो रही है। ऐसे में आज मद्रास उच्च न्यायालय ने इसका ठीकरा चुनाव आयोग पर फोड़ते हुए कहा है कि रैली-दर-रैलियों के आयोजन पर अंकुश न लगा पाने के लिए चुनाव आयोग के अफसरों पर हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए। कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी ने कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर उभरने के लिए राजनैतिक दलों की चुनावी रैलियों को चुनाव आयोग द्वारा अनुमति दिये जाने पर सख्त फटकार लगाई और कहा कि इसके लिए पूरी तरह चुनाव आयोग जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि लोगों का स्वास्थ्य सबसे अहम है। यह चिंताजनक है कि संवैधानिक अधिकारियों को उनके दायित्व की याद दिलानी पड़ती है। अहम बात यह है कि जब कोई जीवित रहेगा तभी वह संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल कर सकेगा। मुख्य न्यायाधीश ने चुनाव आयोग को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि दो मई हेतु कोरोना प्रोटोकाल सुनिश्चित करने के लिए कार्ययोजना नहीं बनाई तो तत्काल प्रभाव से मतगणना रोक दी जायेगी।
क्यों नहीं साथ ही अदालत को उनका भी संज्ञान लेना चाहिए जो चुनावी रैलियों मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय दर्शाता है कि देश भयावह संकट के दौर में हैको ऐतिहासिक बता रहे थे ?
अब तो लोगों को यह भी संदेह होने लगा है कि क्या सरकारी आंकड़े सही भी हैं या नहीं। क्या सरकार कोरोना महामारी की भयावहता को छिपा रही है? यदि नई यॉर्क टाइम्स जैसे और भी कई अंतर्राष्ट्रीय अखबारों की मानें तो उनके अनुसार कोरोना की मार के असली आंकड़े सरकारी आंकड़ों से कई कई गुना ज्यादा हैं। एक हिंदी अखबार के अनुसार जिस दिन कानपुर में कोरोना संक्रमितों की प्रशासन द्वारा मौतों की तादाद तीन बताई जा रही थी उस दिन कानपुर शहर के गंगा घाटों पर बने शमशानों पर चार सौ छियत्तर कोरोना संक्रमितों का दाह संस्कार हुआ था। इस खबर की पुष्टि होनी चाहिए परन्तु इस दावे को सिरे से नकारा भी नहीं जा सकता। कारण अस्पतालों में न बैड है, न आक्सीजन है, न दवाई न वैंटीलेटर।
सर्वत्र हाहाकार है कि अस्पतालों में आक्सीजन नहीं है। सरकार की सारी कोशिशों के बावजूद सरकारी आंकड़ों के ही मुताबिक पिछले लगभग हफ्ता भर से दो हज़ार से ज्यादा कोरोना के मरीज रोज़ाना मर रहे हैं और रोजाना नए संक्रमितों की तादाद साढ़े तीन लाख के आस पास है जो पूरी दुनिया में रोजाना हो रहे संक्रमितों की तादाद का 50 प्रतिशत है जो भारत में कोरोना के संक्रमण की भयावहता को दर्शाता है।
असलियत तो यह है कि आम आदमी तो आम आदमी, सरमायेदार, बडे़ बडे़ आदमी, अधिकारी, पुलिस अधिकारी, नेता, शिक्षाविद, डाक्टर, डाक्टर भी मेडीकल कालेज के बिना आक्सीजन मौत के मुंह में जा रहे हैं। सरकार की इस बाबत नाकामी का सबूत यह है कि बीते साल माह मार्च में ही इस बात के संकेत ही नहीं बल्कि चेतावनी मिलनी शुरू हो गयी थी कि साल 2021 की शुरूआत में ही देश में आक्सीजन की किल्लत का सामना करना पडे़गा। इसके बाबजूद न तो सरकार ने आक्सीजन प्लांट लगाए जबकि अधिकांश राज्यों में आक्सीजन प्लांट तक नहीं हैं ।और तो और 80 हजार टन आक्सीजन दूसरे देशों को और भेज दी। इसे सरकार के कारकुरान, कर्णधारों और देश के नीति नियंताओं का मानसिक दिवालियापन ही कहा जायेगा और कुछ नहीं।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।