तहकीकात
– श्वेता रश्मि*
शिक्षा को लेकर सरकार एक तरफ तो कमर कस कर नेशनल एजुकेशन पालिसी के लिए प्रयासरत है , जो वर्तमान समय की जरूरत भी है और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक दिशा निर्देशन भी। लेकिन सवाल ये है कि शिक्षा में जो भ्रष्टाचार जड़े जमाये बैठा है उसे ठीक किये बिना कैसे इसको अमल में लाया जा सकेगा?
सतर्कता जागरूकता सप्ताह अभी 2 नवंबर को ही समाप्त हुआ है । एक तरफ केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ रोज वेबिनार कर रहे है दूसरी तरफ प्रधानमंत्री इसे अपनी मन की बात से सार्वजनिक मंचों पर सांझा कर रहे है लेकिन उच्च शिक्षा और शिक्षा के अन्य जरूरतों को पूरा करने का दायित्व जो राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् (एनसीटीई) पर है, वहाँ व्याप्त भ्रष्टाचार का खात्मा किये बिना क्या यह संभव है?
परिषद् का कार्य है शिक्षा में गुणवत्ता और अपने स्तर पर समय समय पर कसौटी पर शिक्षण संस्थानों को देखना जिसके लिए 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जस्टिस वर्मा आयोग की की रिपोट को लागू करना जिसमें ये बातें सुझाई गई थी। आवेदन करते समय संबद्ध विश्वविद्यालय/निकाय से एनओसी अनिवार्य निरीक्षण/निगरानी के लिए मुख्यालय और क्षेत्रीय समितियों दोनों द्वारा पारदर्शी उपयोग के लिए आवेदन का प्रावधान, शुल्क का भुगतान,टीम की रिपोर्ट का दौरा,आदि ऑनलाइन कम्प्यूटरीकृत कम्प्यूटरीकृत। प्रत्येक शिक्षक शिक्षा संस्थान को परिषद् द्वारा मान्यता प्राप्त एक मान्यता प्राप्त एजेंसी से प्रत्येक 5 वर्षों में अनिवार्य मान्यता प्राप्त होनी चाहिए।
लेकिन इन नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए बड़ी तादाद में से ऐसे फ़र्ज़ी संस्थान है जिनपर परिषद् तमाम शिकायतें आने के बाद भी आंखे मूंदे बैठा है, फर्ज़ीवाड़ा भी ऐसा जिसमें कॉलेज के पास खुद परिषद् के गाइडलाइंस के हिसाब से योग्यता ही नहीं है और ना इंच भर जमीन पर क्या मजाल जो करवाई हो जाये। हमारे पास सूत्रों के हवाले से पुख़्ता जानकारी है परिषद् के अंदर बैठे कुछ आला अधिकारी खुद ऐसी फाइलों को अभयदान देने के लिए जाने जाते है। उदाहरण के तौर पर उनके अधीन क्षेत्रीय कार्यालय में आने वाले वाराणसी के महादेव महाविद्यालय का मामला अभी कुछ दिन पहले से काफी सुर्ख़ियो में है।लेकिन होनी वाली शिकायत पर कोई कारवाई की पुष्टि न होना ना सिर्फ परिषद् के आला अधिकारीयों पर सीधे सीधे उसके चेयरमैन डॉ बनवारीलाल नटिया की बतौर प्रशासक उनकी उपयोगिता पर एक प्रश्न चिन्ह लगाता है।
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सूत्रों की माने तो महादेव महाविद्यालय सिर्फ एक अकेला केस नहीं है जिस पर अभी तक कोई स्पष्टीकरण नहीं हुई है बल्कि ऐसे और भी अन्य केस हैं जो विभिन्न राज्यों से आये हैं। इस सारे मामलों की तहकीकात मंत्रालय को जरूर करनी चाहिए क्योंकि अंत में जबावदेही शिक्षा के स्तर को सुधारने की सिर्फ और सिर्फ उसकी की है। मंत्रालय को यह भी सुनिश्चित करना होगा की नॉमिनेटेड सदस्य की वहीं लाये जाएं विभागों में जिनका शिक्षा में उच्चतम योगदान हो।
*श्वेता रश्मि दिल्ली स्थित पत्रकार हैं ।