विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ.राजेन्द्र सिंह*
आज दिनांक 4 जनवरी 2022 को अलवर जिला के किशोरी गाँव के शासकीय माध्यमिक विद्यालय में बड़ी संख्या में स्कूल के विद्यार्थी व शिक्षक उपस्थित थे। किशोरी सरिस्का क्षेत्र में पड़ता हैं और यहाँ की सबसे बड़ी विरासत सरिस्का बाघ परियोजना है। इस जंगल के कारण कोरोना जैसी महामारी ने भी यहाँ के गांवों को अधिक प्रभावित नहीं कर पाया। क्योंकि जहाँ-जहाँ हरियाली होती है, वहाँ प्राण वायु ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है। इससे कोरोना के हमला करने की क्षमता कमजोर हो जाती है। यह कोरोना वायरस उन्हीं क्षेत्रों में ज्यादा प्रभावी हुआ, जहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक है। इस सरिस्का के जंगल के चारों तरफ के गांवों का जनसंख्या घनत्व अपेक्षाकृत कम है। लेकिन यहाँ के आसपास के लोगों को जंगल का महत्व समझकर-जानकर जंगल को बचाने का काम करना चाहिए। जल, जंगल, जमीन, जानवर हमारी धरोहर विरासत है।
मैंने यहां बच्चों को अपने व्यवहार को सदाचारी और सबके हित में बनाने के लिए लालच मुक्ति के पांच संकल्प दिलाए।
- बच्चों को सबसे पहले अपने गुरुओं का आदर करना चाहिए।
- जल, जंगल, जमीन, के संरक्षण के काम करना चाहिए।
- सरिस्का की विरासत को बचाना चाहिए।
- अच्छे पानी में गंदा पानी नहीं मिलने देना चाहिए।
- हरियाली बढ़ाने तथा अपने जीवन के व्यवहार से दूसरों को कष्ट ना हो, ऐसा व्यवहार अपनाने का संकल्प लेना चाहिए ।
सभी विद्यार्थियों ने खड़े होकर, स्वतः एक-एक विद्यार्थी ने संकल्प लिया।
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बच्चों की विद्या ऐसी होनी चाहिए जो प्रकृति से कम लेकर, प्रकृति को अधिक देती हो और उस विद्या के लिए जीवन में सबसे जरूरी है सादगी, सरलता, सहजता और समानता। यहां के बच्चों ने भी इन सारी बातों को समझ कर, अपनी जिम्मेदारी को निभाने की प्रतिबद्धता प्रकट की। आज का यह पूरा सत्र विरासत बचाने के लिए मानवीय लालच मुक्ति का उपाय क्या है, कैसे हम लालच मुक्त होकर त्याग और समर्पण के संकल्प को पालन करें, इस पर बच्चों से लंबी बातचीत हुई। बच्चों के साथ सवाल, जवाब और लंबी बातचीत से ही आज विरासत बचाने का संकल्प लिया गया। मैंने उनसे कहा कि उनका जीवन ही सबसे बड़ी विरासत है। इस जीवन को चलाने के लिए जो भी हमें कुछ चाहिए, वह सब हम अनुशासित होकर उपयोग करें। वह हम लालची होकर उपयोग ना करें।
हमारा लालच के बजाय त्याग कर ग्रहण करने का व्यवहार और संस्कार होना चाहिए। उन्हें ईशावास्योपनिषद का श्लोक समझाते हुए कहा कि भारतीय विद्या में त्याग कर ग्रहण करना ही सर्वोत्तम और सर्वोपरि माना है। लालच से ग्रहण करना न हमारे लिए अनुकूल होता है और ना ही सृष्टि के लिए अनुकूल होता है। इसलिए हमारे जीवन के व्यवहार में वह सब बातें हों, जो हमारे लिए भी अनुकूल हो और इस सृष्टि के लिए भी अनुकूल हो।
इसके बाद विद्यार्थियों ने अपने प्रधानाचार्य और अपने शिक्षकों को खड़े होकर यह बताया कि, हम आज के बाद इन पांचों संकल्पों का निर्वाहन करेंगे और अपना सम्पूर्ण जीवन सदाचारी से जियेंगे।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।