बिहार चुनाव 2020
– प्रशांत सिन्हा
चुनाव आयोग कुछ वर्षों से घोषणा पत्रों को गंभीरता पूर्वक ले रहा है। 2015 की बिहार विधान सभा में चुनाव आयोग ने राजनितिक दलों से घोषणा पत्र तैयार करते समय दिशा निर्देश का ठीक ढंग से पालन करने और साथ ही जारी होने के बाद घोषणा पत्र की एक प्रति भी उपलब्ध कराने को कहा था। आयोग ने हालांकि इस बात का कोई कोई कारण नहीं बताया कि घोषणा पत्र की जरूरत क्यों है ? लेकिन चुनाव के दौरान अक्सर घोषणा पत्र के जरिए मतदाताओं को प्रभावित किया जाता हैं इसलिए अच्छा होगा कि संदर्भ देने के मकसद से उसके पास इसकी प्रति हो। चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के लिए घोषणापत्र जारी करने के समय सीमा निर्धारित की है जिसमें स्पष्ट किया गया है कि मतदान से पहले और प्रचार थमने के बाद चुनावी घोषणापत्र जारी नहीं होंगे।
2020 विधान सभा चुनाव के लिए बिहार में सभी दल अपने अपने घोषणापत्र जारी कर चुके हैं । जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने अपने घोषणा पत्र में सात निश्चय – 2 के तहत युवा शक्ति, महिला सशक्तिकरण, हर खेत को सिंचाई के लिए पानी, स्वच्छ गांव एवं शहर और सभी के लिए स्वास्थ्य सुविधा का वादा किया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ” भाजपा है तो भरोसा है ” के सूत्र वाक्य पर काम करने की प्रतिबद्धता जताते हुए पार्टी ने घोषणा पत्र जारी किया जिसे संकल्प पत्र का नाम दिया गया है। इसमें एक लक्ष्य, पांच सूत्र और 11 संकल्प को साकार करने की वचन बद्धता है। बिहार के सभी निवासियों को मुफ्त में करोना का टीका लगाने का वादा भी किया है। उसमे यह कहा गया है कि 2020-2025 में बिहार को ” आत्मनिर्भर बिहार ” बनाने का लक्ष्य है। इसके साथ ही 19 लाख लोगों को रोज़गार देने का रोड मैप तैयार किया गया है। ग्यारह संकल्प में करोना टीका, मेडिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में , अगले तीन साल में तीन लाख शिक्षकों की नियुक्ति, आई टी हब, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना, दरभंगा में ऐम्स अस्पताल बनाना, धान, गेहूं के बाद दलहन की खरीद एम एस पी पर, पक्का मकान , खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, मछली उत्पादक राज्यों में पहला दर्जा दिलाना एवं किसान उत्पाद संघों को बेहतर आपूर्ति चेन बनाना शामिल है। बिहार चुनाव के लिए एनडीए ने अपना घोषणा पत्र जारी नहीं किया है। एनडीए ने अपना रिपोर्ट कार्ड जारी किया है।
लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के चिराग पासवान ने घोषणा पत्र ” बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट ” विजन डॉक्यूमेंट जारी किया है। उन्होंने ” नया बिहार, युवा बिहार ” बनाने का वादा किया है। इसके साथ ही उन्होंने अयोध्या में श्री राम मंदिर की तरह माता सीता का भव्य मंदिर बनाने का वादा भी किया।
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दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेतृत्व वाले महागठबंधन के घोषणापत्र भी जारी हुआ। महागठबंधन का सबसे ज्यादा जोर बेरोजगारी दूर करने पर है। अगर वह सरकार में आते हैं तो उनका फैसला दस लाख बेरोजगारों को सरकारी नौकरी देने की है। सरकारी नौकरी में बहाली के लिए छात्र छात्राओं से कोई आवेदन शुल्क नहीं लिया जाएगा , राज्य में कर्पूरी श्रम वीर सहायता केंद्र बनेंगे। किसी भी आपदा के वक़्त प्रवासी व उनके परिवार को बिहार सरकार से मदद मिल सकेगी। मनरेगा के तहत प्रति परिवार के बजाय प्रति व्यक्ति को काम का प्रावधान न्यूनतम वेतन की गारंटी एवं कार्य दिवस को 100 से 200 दिन किया जाएगा। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में दस लाख नौकरियां, कृषि, कर्ज माफी, पंद्रह सौ बेरोजगारी भत्ता, बिजली बिल में पचास फीसदी छूट और हाल में आए तीन कृषि कानूनों को समाप्त करने समेत कई वादे किए गए हैं। कांग्रेस के घोषणपत्र में कई बातें महागठबंधन के सहयोगियों से मिलती जुलती है। राजद का घोषणा पत्र में बेरोजगारों को दस लाख नौकरी देने का वादा किया गया है। कैबिनेट की पहली बैठक में पहली दस्तखत के साथ शुरू होगी बहाली की प्रक्रिया। संविदा प्रथा को खत्म कर सभी कर्मचारियों को स्थाई किया जाएगा और समान काम का समान वेतन दिया जाएगा। सभी विभागों में निजीकरण को समाप्त किया जाएगा। नियोजित शिक्षकों, वेतनमान कार्यपालक सहायकों, लाइब्रेरियन उर्दू शिक्षकों की बहाली की जाएगी आदि।
पिछली बार 2015 में महागठबंधन और एनडीए ने अलग अलग संकल्प व घोषणा पत्र जारी किए गए थे। चुनाव के बाद सरकार महागठबंधन की बनी लेकिन कुछ ही दिनों बाद ही राजनीतिक समीकरण बदले और सरकार एनडीए की बन गई। इसके बाद भी घोषणा पत्र जदयू की ओर से तैयार संकल्प पत्र सभी तत्वों को मिलाकर सात निश्चय – 1 लागू हुआ। ऐसा इसलिए कि दोनों राजनितिक समीकरणों में सत्ता की कमान नीतीश कुमार के हांथ में रही। सात संकल्प में जैसे स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड जारी करना, हर घर नल,जल, पक्की नाली योजना आदि थे जिसे नीतीश कुमार ने अपने कार्य काल में इन्हें ज़मीन पर उतारने की कोशिश की है। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के दृष्टि पत्र में मेक इन बिहार, डिजिटल बिहार का नारा दिया था। 2016 दिसंबर तक सभी गावों के हर घर में बिजली, मेरिट में आने वाली लड़कियों को स्कूटी , छात्रों को लैपटॉप , स्कूली बच्चों के लिए स्वास्थ्य कार्ड इत्यादि थे।
सार यह है कि बिहार में सत्ता की दौड़ के लिए चुनावी वादों के रथ पर सभी दल सवार हो कर अपनी घोषणा पत्र या संकल्प पत्र जनता के सामने पेश कर रहें हैं। घोषणा पत्र राजनीतिक प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं जो लोकतंत्र का परचम बुलंद करता है। यह अनिश्चित की स्थिति वाले मतदाताओं को किसी दल में सत्ता में आने पर उसके कार्यकाल की झलक दिखाने जा जरिया हो सकता है।
इस चुनाव में सभी दलों के घोषणा पत्र को देखकर लगता है कि विकास का मुद्दा पीछे रह गया है और नौकरी का मुद्दा प्रमुख हो गया। रोज़गार की सवाल ने सभी दलों को परेशान कर रहा है। बेरोजगार की संख्या में वृद्धि के कारण राजनीतिक दल नौकरियां देने की भरोसा दे रहे हैं। पहले से ही बढ़ती बेरोजगारी चिंता का विषय थी और करोना काल में आग में घी डालने का काम किया। जातिवाद की जगह नौकरी मुद्दा बना यह शकुन की बात है। नौकरी सृजन भी विकास का ही हिस्सा है।
Excellent bro