– डॉ. राजेंद्र सिंह*
सूचनाओं तथा जानकारियों को जोड़कर लाभ कमाने हेतु सीखने-सिखाने का प्रयास ही आधुनिक शिक्षा है
आज की शिक्षा लाभ कमाने का लालच बढ़ाती रहती है। हमें नदियों को स्वस्थ करने के लिए शिक्षा से ज्यादा विद्या जरूरी है। प्राचीन काल की विद्या और ज्ञान शुभ हेतु अर्जित करते थे। विद्या त्याग कर ही ग्रहण करने की प्रेरणा देती रहती थी। सूचनाओं तथा जानकारियों को जोड़कर लाभ कमाने हेतु सीखने-सिखाने का प्रयास ही आधुनिक शिक्षा है। यह मानवीय मस्तिष्क और बुद्धि को तेज करती है। यह बुद्धि प्रायः लाभ प्रतियोगिताओं में इंसानों को धकेल कर लाभ कमाने में ही सभी को लगा देती है। हमें लाभ के लिए लाचार बनाकर शोषण, प्रदूषण और अतिक्रमणकारी कामों में लगाती है।
आधुनिक शिक्षा से भारत दुनिया का कभी गुरु और शिक्षक नहीं बन सकता है। यह शिक्षा लोभी मन से लाभ हेतु प्राप्त की जाती है। विद्या सभी के साझे शुभ हेतु प्राप्त हो जाती है। विद्वान अपने विद्या से लाभ नहीं, शुभ हेतू काम करते थे। अतः विद्या पाकर वैद्य निःशुल्क सभी के आरोग्य रक्षण हेतु ‘‘धमार्थ काम मोक्ष और आयुर्वेद आरोग्य रक्षणम्’’ का सिद्धांत आयुर्वेद विद्वानों पर लागू होता था। गुरु भी अपने शिष्यों को गुरु ज्ञान प्रदान करते थे। इस सेवा के बदले शिष्य से सम्मानार्थी ही पुष्प रूपी द्रव्य प्राप्त करते थे। गुरुओं का जीवन तो स्वैच्छिक न्यूनतम साधनों से ही चलता था। ‘गुरु’ भी ज्ञान से आनंदमयी जीवन जीने में निपुर्ण होते थे।
ज्ञान का आनंद भौतिक, दिखावटी, अर्थ आधारित नहीं था। प्राकृतिक प्रेम की समृद्धि से समृद्ध था। प्रकृति से ज्ञानवान-विद्वान उतना ही लेता था, जितना अपने श्रम के तप से प्रकृति को त्यागकर जीवन जीता था।
ईशावास्योपनिषद् में इस हेतु जीवन के स्पष्ट निर्देश दिए हैं – ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृथरू कस्यस्विद् धनम्।।
यह निर्देश विद्या है। यह पुस्तकीय सूचनाएं नहीं है, जीवन जीने की अनुभूति है। जीवन कला के अनुभव है। इन्हीं अनुभवों की अनुभूति से भारत विद्वान बन कर दुनिया का गुरु बना था। आज भी यह विद्या हमें पंचमहाभूतों के योग से अपने अंदर के ज्ञान का आनंद प्रदान कराते हैं। भूमि, गगन, वायु, अग्नि, नीर (भगवान) के साथ प्रत्यक्ष रूप से जुड़ जाते हैं। इसी जोड़ को ‘‘योग’’ कहा जाता है। भारतीय साधना द्वारा अपने शरीर को आत्मा से जोड़कर रखने वाली साधना-सिद्धि को ‘‘योग’’ कहता था, इसी योग से हम विद्या में विश्व गुरु थे।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद् हैं।प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।