– डॉ. राजेन्द्र सिंह*
त्रिगुट ही समाज को आत्मनिर्भर नहीं बनने देता
आज की सरकारी परियोजनाएं तो नेता, अधिकारी, व्यापारी त्रिगुट को ही पुष्ट करती है। समाज द्वारा सम्पादित कार्य सबको चुनौती देते हैं। अधिक खर्च कम लाभ किसी खास को ही लाभ देने वाला होता है और जरूरतमंद गरीब को लाभ पहुँचाना अलग है। यह सब अलगाव और दूरियाँ गरीब को मौन बनाती हैं। नेता अधिकारी, व्यापारी पैसे वाले बनते जाते है। जैसे अब कोविड-19 में ये ही तीनों मालामाल बने है।
हमारी भूमिका समाज को आगे बढ़ाने का अहसास कराना है। समाज अपने कार्य स्वयं कर सकता है, वैसा आभास स्वयं करके दिखाना भी हमारा काम रहा है। इस प्रक्रिया से समाज में अत्याधिक बदलाव आया। पानी से परिवर्तन-प्रक्रिया चली हैं। इसे ही आज सरकारें, नेता, अधिकारी सब रोकने में लगे हैं। हर समय समाज के आत्मगौरव और आत्मविश्वास को तोड़नेवाले हमले हम पर हुए है। इन हमलों से हम लोग कई बार ठिठक भी गए लेकिन रुके नहीं।
जिस व्यक्ति और समाज की कुदरत से प्यार होता है, वह अपने पसीने से सामाजिक कृतज्ञता पूरी करता जाता है। इसके बदले मैंने पानी की कभी कोई प्रतीक्षा नहीं की, बल्कि अपने समाज से सीखकर ही उन्हें जोड़ने की कोशिश में ही लगा रहा। इसीलिए समाज भी देखकर जुड़ता चला गया। जहाँ समाज जुड़ा वहाँ कुछ अच्छा हुआ। वहीं सरकारी कोशिश उसे तोड़ने में लगी रही। आज भी लगी हुई है। मैं, भी अपने काम में लगा हुआ हूँ।
आज समाज की निंदा छोड़कर उसकी कुछ अच्छाइयों और क्षमताओं पर ध्यान देकर उसकी ताकत बढ़ाएं । इससे सामाजिक सत्ता के समीकरण बदल सकते हैं। केवल इतना ही नहीं सम्पूर्ण बदलाव की दिशा में प्रक्रिया चालू होगी। हमें केवल समाजोन्मुखी राजनेता नहीं चाहिए, बल्कि आज समाजोत्कर्षी बनाने वाली प्रक्रिया चलाने वाले ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता भी चाहिए जो समाज को खड़ा करके काम में लगाएँ।
समाज में बंदरबाँट करने वाले नेता ही अधिकारियों को नोट बनाने के अवसर देते हैं। अधिकारियों की लूट-फूट से समाज को बचाना आज आवश्यक है। इस हेतु समाज को निडर और अनुशासित बनना जरूरी है। ऐसा केवल श्रमनिष्ठा से ही हो सकता है। श्रम निष्ठा से जल सहेजना सबसे बड़ा पुण्य कर्म है, इसे ही बढ़ाने हेतु हमने जल सहेजने के अभिक्रम को चलाया है। इससे लाखों महिलाओं में आत्मीगौरव एवं आत्मविश्वास पनपा। इन्होंने और कई काम ऐसे ही शुरू किए। जंगल-गोचर जैसे संसाधन पुनर्जीवित करने में जुटे हैं। किन्तु सभी क्षेत्रों, जिलों में एक जैसी ही समस्याएँ राजनेताओं, अधिकारियों ने पैदा की। दौसा में तो हमारे कार्यकर्ताओं को पुलिस द्वारा उठवा दिया, आगे उसका काम बनाने नहीं दिया। जबकि ग्रामीण अपनी गाँव की जमीन पर बना रहे थे। गाँववासियों को अपनी समृद्ध पानी परम्परा को पुनर्जीवित करने पर भी रोक तो सरकार ही लगा रही है।
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अरवरी नदी पुनर्जीवित होने, सदानीरा बनने पर यहाँ के ग्रामीणों ने अपने पुरखों की शांति हेतु नदी के किनारे अरवरी माता का मंदिर बनाया। अब तक वे अपने पुरखों के फूल लेकर हरिद्वार जाते थे। अब गाँव में ही अरवरी नदी को गंगा मानकर यहीं पर सब संस्कार शुरू कर दिए हैं। इस समृद्ध विचार के भवन को जिलाधीश, अलवर ने तुड़वा दिया था, लेकिन ग्रामीणों ने इसे पुनः बना लिया।
मैं, बस यह अनुभव करता हूँ जहाँ भी स्वयं समाज प्रयास करे, उसे हमारा बौद्धिक वर्ग, सरकारी अधिकारी, नेता अपना विरोध ही मानने लगते हैं। इसमें उल्टा उन्हें अपना काम, अपनी जिम्मेदारी, अपनी भूमिका तलाश कर अच्छे काम सम्पादित करने में जुटना चाहिए। तभी तो हमारा समाज खड़ा होगा। सबकी भूमिका समाज को खड़ा करना है। समाज खड़ा होगा तभी हमारी सरकार और हमारा राष्ट्र समृद्ध बनेगा।
आजादी से पूर्व मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ता में कोई अंतर नहीं दिखता था। ज्यादातर स्वदेशी समाचार पत्र समाज के प्रयासों को प्रतिष्ठित करते थे। आज भी इस काम की आवश्यकता है। ऐसा होने से ही जन साधारण परिवर्तन और सनातन विकास की प्रक्रिया में जुड़ेगा। इसे जोड़ना आज सबका सबसे पहला व जरूरी काम है। यही भगवान का असली काम है। भ-भूमि, ग-गगन, व-वायु, अ-अग्नि और न-नीर यही योग पंचमहाभूत भगवान है। इसे जब तक हम जानते थे, तब तक हम त्रिगुट के भरोसे नहीं रहते थे। स्वाबलम्बी बनकर स्वयं आत्मनिर्भर बनते थे। आज तो आत्मनिर्भरता के केवल नारे हैं।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।