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रविवार पर विशेष
रमेश चंद शर्मा*
गाँव हमेशा से ही दाता, देने वाला रहा है। खाद्य सामग्री गाँव देता, सुरक्षा के लिए सैनिक गाँव देता, कारखानों, खदानों, उद्योग धंधों के लिए मजदूर गाँव देता, दूध गाँव देता, कपड़ों के लिए कपास गाँव देता, सब्जी फल गाँव देता, चीनी के लिए गन्ना गाँव देता। यह सब देने वाला गाँव जो देवता कहलाना चाहिए, आजकल दीन हीन है। धन धान्य, फल फूल, श्रमजीवी, सादगी से भरा जिंदा गाँव दीन हीन, कमजोर, भूखा, बीमार, उदास, हताश। दूसरी और प्रदूषित, भीड़ भाड, बनावटी, प्राणहीन हलचल वाला, शोषक, स्वार्थी, मैं में घुसा, परजीवी, कंक्रीट से भरा, लोभी, दिखावटी, झूठी चका चौंध से भरा शहर, महानगर सब कुछ। वाह रे वाह, व्यवस्था, न्याय, आधुनिकता, विकास, विज्ञान।
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गाँव में कार्तिक स्नान, कार्तिक फेरी, संक्रांति, उत्तरायण का कार्यक्रम, गंगा स्नान, निर्जल्ला ग्यारस, गर्मी में दौगड़ भरना, खेतों में पेड़ों पर पक्षियों के लिए पानी के छीके बांधना, जोहड़, जोहड़ी की छंटाई करना, मिट्टी निकालना इस मिट्टी का उपयोग लिपाई पुताई, चिनाई में, खेतों में डालने के लिए किया जाता। एक पंथ दो काज होते। जल स्रोत की सफाई, हमारे घर खेत का सुधार। हमारे गाँव की एक जोड़ी में कभी काई नहीं होती थी, कहा जाता था, यह किसी ऋषि की तपस्या का फल है। नारनौल से थोड़ी दूरी पर ढ़ोंसी का पहाड़ है, इसके बारे में प्रसिद्ध है कि च्यवन ऋषि ने यहीं पर च्यवनप्राश बनाया था।
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गाँव की अपनी एक व्यवस्था होती थी। चुनाव ने उसको तहस नहस कर दिया। पहले मनाव चलता, होता, किया जाता था। उसके स्थान पर अब चुनाव आ गया। चुनाव में दल की दलदल, पार्टी ने गाँव को नये पार्ट, टुकड़ों में बाँट दिया। पहले बंटा गाँव और बाँट दिया गया। आए थे हरी भजन को ओटन लगे कपास। एक व्यक्ति, एक वोट, एक समान, एक ताकत, इससे एक बराबरी का अहसास तो क्षणिक सा आया मगर व्यवस्था में जो बदलाव अपेक्षित था, वह नहीं हुआ। वही ढाक के तीन पात, नए रूप में सामने आने लगे।
धीरे धीरे इसकी कमियां बढ़ने लगी। विकेन्द्रित होने के स्थान पर केन्द्रीयकरण को ही मजबूती मिलीI सत्ता महानगरों में सीमित हो गई। शहर फल फूलने लगे और गाँव उजड़ने लगेI गाँव से हर चीज़ का पलायन होने लगा। गाँव के धंधे उजड़ गए, गाँव बोझ लगने लगे। गाँव से विकास के नाम पर जो भी पाईप, सूत्र जुडा उसने गाँव से खीचने का ही काम किया। गाँव में साधन, साध्य, साधना का अभाव बढ़ा। गाँव को प्राण हीन बनाने की सोची समझी या अनजानी लहर चली। जो देश गाँव, गंगा, गाय, गायत्री, गौतम, गाँधी के नाम से जाना, पहचाना जाता है। इन सबकी दशा और दिशा बिगाड़ने के खुलकर कदम उठाएं गए।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।
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