भाग 1
-ज्ञानेन्द्र रावत*
देश कोरोना महामारी के चंगुल में है। कोरोना के प्रकोप से सर्वत्र हाहाकार है। देखा जाये तो देश में कोरोना के चलते हुई मौतों का सही आंकडा़ कभी सामने नहीं आ पायेगा। इसमें किसकी भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, यह अब किसी से छिपी नहीं है। लोग अस्पताल में भर्ती होने के लिए, दवाई के लिए, आक्सीजन के लिए दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। हालत यह है कि अस्पताल में बैड नहीं हैं, वैंटीलेटर नहीं हैं, आक्सीजन नहीं है और तो और अस्पताल ले जाने को एम्बुलैंस तक नहीं है। सबसे ज्यादा समस्या तो आक्सीजन की है। आक्सीजन के अभाव में ऐसे में बहुतेरे घरों में, कुछ अस्पताल ले जाते बीच में, कुछ अस्पताल के बाहर, कुछ बीच सड़क पर दम तोड़ रहे हैं। इन हालात में भी हमारे देश में कुछ लोग दवाई, इंजैक्शन, आक्सीजन , कोरोना वैक्सीन की कालाबाजारी कर अपनी तिजोरियां भरने में लगे हुए हैं। सबसे दुखदायी और शर्मनाक बात तो यह है कि जो अस्पताल में मर गये, वहां और शवगृहों में मरने वाले का चेहरा दिखाने तक के लिए मरने वाले के परिवार वालों से पांच सौ-हजार रुपये की मांग की जा रही है। ऐसे समाचार दिल दहला देते हैं कि क्या हो गया भरत के इस देश को। ऐसा लगता है कि मानवता नाम की कोई चीज बची ही नहीं है। कम से कम नेताओं और तो और सत्ताधारी नेताओं से तो इसकी उम्मीद करना ही बेमानी है जिन्होंने सत्ता की खातिर देश की जनता को इस हाल तक पहुंचाने और मौत के मुंह में झोंकने में अहम भूमिका अदा की है।
इसके बावजूद देश में कुछ संगठन और व्यक्ति ऐसे भी हैं जिन्होंने कोरोना संक्रमण काल के इस भयावह दौर में जबकि अधिकांश स्वार्थ के वशीभूत हो लूट और कालाबाजारी के धंधे में लिप्त हैं, वहीं कुछ ने अपने कार्यों से मानवता की अनूठी मिसाल पेश की है। देश, समाज को ऐसे राष्ट्र भक्तों पर गर्व है।
यहां हम कुछ ऐसे ही वीर राष्ट्रभक्तों की चर्चा कर रहे हैं जिन्होंने इस संकट की घडी़ में अपना सर्वस्व जनता की सेवा में लगा दिया।
असलियत यह है कि ऐसे हजारों लोग हैं जो निस्वार्थ भाव से अपना सब कुछ होम कर चौबीसौ घंटे इस महामारी के दौर में अपनी जान की परवाह न कर सेवा कर देश बचाने के यज्ञ में अपनी आहुति दे रहे हैं। हमें मां भारती के ऐसे सपूतों पर गर्व है। इतिहास में इनका नाम गर्व से लिया जायेगा।
*वरिष्ठ पत्रकार