– ज्ञानेन्द्र रावत*
इंदौर: देश में अक्सर बहुतेरी मिसालें देखने-सुनने को मिलती हैं। उनके चर्चे भी बहुत होते हैं और सच यह भी है कि बहुतेरी मिसालें तो चर्चा के लिए ही होती हैं। लेकिन यहां हम एक ऐसी अनूठी घटना की आपके समक्ष चर्चा कर रहे हैं जिसकी मिसाल मिलना मुश्किल है, वह भी आज के जमाने में।
यह करिश्मा हुआ है इंदौर में। इंदौर के पास एक गांव बेटमा है। इस गांव के रहने वाले बीएसएफ के एक जवान आज से 27 बरस पहले शहीद हो गये थे। तब से उनका परिवार इस गांव में झोंपड़ी में रह कर जैसे-तैसे अपना गुजारा कर रहा था।
सरकारी राहत के चर्चे तो बहुत होते हैं लेकिन वह कितनों को और कितनी नसीब होती है, यह जग जाहिर है। इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता। इस शहीद परिवार की पीड़ा को समझा गांव के नौजवानों ने। उन्होंने आपस में चर्चा की और इसके लिए एक अभियान शुरू कर दिया। देखते ही देखते नौजवानों ने लोगों की मदद से 11 लाख की राशि इकट्ठा कर एक सुंदर सा मकान बना कर खड़ा कर दिया।
सबसे बड़ी बात यह कि उन्होंने उसे देने के लिए स्वाधीनता दिवस का दिन चुना और उस दिन शहीद की पत्नी को राखी बंधवा कर उसे भेंट कर दिया। विडम्बना यह कि इसका उन्होंने कोई प्रचार तक नहीं किया। लेकिन कहते हैं अच्छाई की खुशबू भी फैलने में देर नहीं लगती तो इसकी चर्चा भी चारो ओर होने लगी। होती भी क्यों नहीं आखिर बात ही अनूठी थी। नितिन मुदगल इस जानकारी के लिए बधाई के पात्र हैं जिनके माध्यम से देश-दुनिया को इंदौर के नौजवानों के इस गौरवशाली प्रयास के बारे में पता चल सका।
इस पुनीत कार्य के लिए इंदौर के ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है। आखिर उन लोगों ने काम ही ऐसा किया है। इसके लिए वह बधाई के पात्र हैं। जबकि होना यह चाहिए कि शहीदों के परिवारों के पुनर्वास के बारे में भारत सरकार ध्यान दे जो उसका दायित्व भी है और कर्तव्य भी। यह घटना देशवासियों के लिए प्रेरणादायक है। जय हिंद।
*वरिष्ठ पत्रकार एवं चर्चित पर्यावरणविद
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