संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
लाओस को जल साक्षरता चलाने की जरूरत है।
लाओस एशिया का हरा-भरा देश है। मैं, जब थाईलैंड गया तो लाओस के साथियों ने मुझसे लाओस आने का आग्रह किया। यह देश मेरी विश्व शांति यात्रा का हिस्सा नहीं था। इसलिए वहाँ जाने का इच्छुक नहीं था। परंतु इन साथियों के आग्रह पर वहाँ चला गया। इस देश में यातायात एवं सड़कों की बहुत कमी है। यह देश विस्थापन की समस्या से बहुत ग्रसित नहीं है। यहाँ जल पर्याप्त है। इसलिए यहाँ अभी लोगों को बेपानी होकर उजड़ने का संकट नहीं है। लेकिन आगे आने वाले समय में यह संकट बढ़ सकता है। यहाँ बाढ़-सुखाड़ दोनों का प्रभाव है। इस प्रभाव के कारण भू-जल का पुनर्भरण होता रहता है। यहाँ के बाजार एशिया के दूसरे देशों की अपेक्षा भिन्न है।
इस देश को जितना मैंने समझा अभी लालची विकास का विनाश अपेक्षाकृत कम हुआ है। शायद इसलिए लोगों के जीवन-जीविका और जमीर का संकट अभी भयानक नहीं हुआ है। इस देश को प्रकृति का सम्मान करके आगे बढ़ने की संभावनाएँ बहुत है। मैंने यहाँ के विश्वविद्यालयों में जल साक्षरता चलाने की बात कही। इस देश को प्राकृतिक सम्मान के साथ आगे बढ़ना चाहिए। यहाँ के विश्वविद्यालयों में शिक्षाविदों को मैंने बहुत जोर देकर कहा कि, अभी आपका बहुत कुछ विनाश नहीं हुआ है। आप अभी से जल साक्षरता-जल उपयोग दक्षता हेतु युवाओं में दक्षता-कुशलता बढ़ाने का प्रयास करेंगे तो यह देश बेपानी नहीं होगा। इस देश को पानीदार बनायें रखने के लिए लाओस को जल साक्षरता चलाने की जरूरत है।
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लाओस दक्षिण पूर्वी एशिया में हिन्दचीन प्रायद्वीप पर स्थित देश है। यहाँ की राजधानी वियेंटाइन है। इस देश का क्षेत्रफल 88780 वर्ग मील है। इसके उत्तर में चीन एवं उत्तरी वियतनाम, दक्षिण में कंबोडिया, दक्षिण पश्चिम 2007 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 6521998 है। थाईलैंड की सीमा पर मेकांग नदी बहती है। यहाँ की जलवायु उष्णकटिबंधीय है। यहां की मुख्य नदी मेकांग थाईलैंड के साथ पश्चिम सीमा का एक बड़ा हिस्सा बनाती है। धान सर्वप्रमुख कृषि उपज है। सब्जियों में ककड़ी, टमाटर, प्याज, फलियाँ (बीन) एवं मिर्च आदि उगाई जाती हैं। अन्य कृषि उत्पादों में इलायची, मक्का, काफी, चाय, कपास, पटुवा तथा तंबाकू का स्थान आता है। पहाड़ी भागों में अफीम के पौधे भी उगाए जाते हैं। इस देश के पहाड़ों में अफीम के पौधे भी उगाए जाते है। टिन तथा सेंधा नमक प्रमुख खनिज है। इस देश में यातायात एवं शक्ति के साधनों की कमी के कारण उद्योग कम उन्नति कर पाए है। थोड़ी मात्रा में खान खोदने, लकड़ी चीरने, सीमेंट निर्माण, तंबाकू, धान एवं फर्नीचर संबंधी उद्योग होते हैं।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।