सेवन्नाह बाओबाब वृक्ष, सेनेगल
संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
अफ्रीका में जल के निजीकरण का सबसे बड़ा नमूना है सेनेगल
मैं सेनेगल 19 जून 2019 से 23 जून 2019 तक रहा था। वहाँ पर कुछ दिन रूक कर समस्या को जाना। राजधानी डकार के एयरपोर्ट के पास एक बिना पत्तों का बड़ा पेड़ दिखाई दिया। बहुत दूर काँटों वाला पेड़ भी देखने को मिला। जल निजीकरण को रोककर समुदायिकरण करने हेतु जल को समझने, सहेजने और समझाने वाली जल-साक्षरता पूरी दुनिया में फैलाने की लक्ष्य सिद्धि हेतु काम का शुभारम्भ मैंने डकार से शुरू किया।
सेनेगल की राजधानी डकार ‘विश्व जल मंच-2021’ को आयोजित कर उसमें दुनिया भर से लोगों को बुलाने के लिए 40 मिलियन यूरो खर्च को वहां करने के लिए अनुदान नहीं, कर्ज़ ले रहा है। जल मंच 2021 में आयोजन की फीस 4 मिलियन यूरो है। आयोजन खर्चा 40 मिलियन है।
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वहां 20 जून 2019 को विश्व जल मंच-2021 की ‘किक-ऑफ’ बैठक में जाकर मैंने कहा ‘‘विश्व जल समिति‘‘ का लक्ष्य दुनिया में जल सुरक्षा की जल नीति बनाकर दुनिया भर की राष्ट्रीय सरकारों से जल सुरक्षा का कार्य कराना है। उस दिशा में यह समिति क्या कर रही है? सेनेगल जैसे देश में ‘विश्व जल सम्मेलन’ आयोजित करने की फीस इस देश से नहीं लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्थाओं से लेनी चाहिए। विश्व जल मंच-2021 के आयोजन की जिम्मेदारी संयुक्त राष्ट्र संघ को लेनी चाहिए। यह गरीब सेनेगल चार मिलियन यूरो (विश्व जल समिति) को कर्ज़ लेकर दे रहा हैं। यह सेनेगल जैसा गरीब देश 30 मिलियन यूरो आयोजन पर खर्च करेगा। यह न्याय संगत नहीं है। सेनेगल की जनता की इस माँग में हम सेनेगल समाज के साथ हैं। पर यहां की सरकार इस आयोजन को करना चाहती है। उसका कहना है कि यह देश आगे बढ़ना चाहता है, इसलिए यहाँ विश्व सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया है। परन्तु कर्ज़ लेकर उत्सव आयोजित करना, इस देश की सेहत के लिए उचित नहीं है। इस देश की सेहत ठीक रखने हेतु विश्व जल समिति को इस देश से फीस नहीं लेनी चाहिए।
सेनेगल के पास विदेशी संस्थाओं का सहारा है। विदेशी कंपनियाँ, अब संस्थाओं का हिस्सा छीन रही हैं। वीरान उद्योग विकास दिखाता है। खुला खदान क्षेत्र बहुत है। बीच में कुछ खेत भी दिखते हैं। साधारण मिट्टी पत्थर की छत वाले घर हैं। घरों की बनावट से ही ग़रीबी दिख जाती है। पशु ज्यादा नहीं दिखते। शुष्क खजूरों के बीच अचानक चौड़ी-चौड़ी काली सड़कें दिखती हैं। वीरान एयरपोर्ट पर एक भी पेड़ और हरियाली नहीं दिखती। सेनेगल में झाड़ियाँ दिखती हैं। खारी रेतीली मिट्टी का बहुत बड़ा क्षेत्र ऐसा है, जिसमें कुछ भी पैदा नहीं होता। घास पेड़ कुछ भी नहीं है।
यहां का पहनावा, रहन-सहन, आचार-विचार, आहार-विहार सभी कुछ बहुत तेजी से बदल रहा है। बदलने का काम इन की आधुनिक शिक्षा ने किया है जो इन्हें इनके मूल व्यवहार से बहुत दूर ले जा रही है। अब तो आधुनिक शिक्षा में रक्षण, शिक्षण-पोषण बचा नहीं है। अब तो केवल अतिक्रमण, प्रदूषण व शोषण ही पढ़ाया-सिखाया जाता है। यही आधुनिक शिक्षा हमारी जीवन पद्धति को तेजी से बदल रही है।
इस शिक्षा से शांति-संतोष-समाधान-समृद्धि सब गायब है। केवल अधिकतम प्राकृतिक भोग करने से सोच और काम में जो प्रदूषण आ जाता है, वही आया हैं। शोषण में प्रदूषण लिप्त रहता ही है।
पूरी अफ्रीका की प्रगति रपट, जो मलाबो में खेती के विषय हुए परिवर्तन घोषणा में सेनेगल ने 3.8 अंक पाया जो बाद में 3.9 है। इसके बाद सबसे नीचे जाने वाला देश है। ऊपर जाने में सबसे आगे रवांडा 6.1 तथा 5.6 अंक पाने वाला माली देश है। खेती में मोरक्को को 3.5 व इथोपिया को 5.3 अंक मिले हैं। ऊपर-नीचे जाने वाले देशोंं के विषय में अफ्रीका यूनियन की रपट बताती है कि जो देश सबसे नीचे तेजी से जा रहे हैं, उनमें जल के व्यापार को निजीकरण ने जकड़ लिया है, इसलिए यह अच्छी खेती नहीं कर पा रहे हैं।
अब कम्पनियाँ अपने षड्यन्त्र को छिपाने हेतु उत्सव कराती हैं। देशों को लूटकर कर्ज़दार बनाती हैं। देश मिट जाते हैं, नेता चमक जाते हैं। सेनेगल के नेता और सरकार भी इसी षड्यंत्र के शिकार हैं। वर्ष 2021 में क़र्ज़ लेकर विश्व जल मंच करने का निर्णय इसका प्रमाण है । देश बेपानी होकर उजड़ेगा तथा लाचार, बेकार और बीमार बनेगा, नेताओं को इससे कोई लेना देना नहीं दिखता ।
इस देश में पहले फ्रांस का राज था। अब भी फ्रांस की कम्पनी स्वेज का ही जल-राज है। वही लोगों पर पानी के मनमाने भाव लगा रही है। अब फ्रांस की दूसरी कम्पनी वियोलिया ने भी इस विश्व जल मंच के माध्यम से प्रवेश कर लिया है। इस कम्पनी ने कहा ‘विश्व जल सम्मेलन का 70 प्रतिशत किराया पंडालों से वापस आ जाएगा। अभी तक 15 प्रतिशत तक ही वापस आया है।
फ्रांस में ही सबसे पहले जल का निजीकरण हुआ था। इसी देश में जल व्यापार की सबसे पुरानी और बड़ी कम्पनियाँ मौजूद हैं। पुरानी विवन्डी, अब वियोलिया व स्वेज आदि सात कम्पनियों द्वारा दुनिया के जल पर कब्ज़ा करने का प्रयास चल रहा है जिस पर कई बार हम जैसे जल संरक्षकों, पर्यावरणविदों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने चिंता जाहिर की है। पहले सेनेगल का जल प्रबंधन, यहाँ का जल निगम करता था। अब स्वेज कम्पनी करती है। तभी से यहाँ का जल बहुत महँगा हैं। खरीदकर पानी पीना गरीब के लिए बहुत कठिन होगा। इन वजहों से लोग दुःखी होकर आन्दोलनरत हैं।
हमने सेनेगल की जनता व मीडिया सभी को विश्व जल मंच का फंडा समझाया, लेकिन इसका आयोजन तो होना ही है यहां। ‘किक ऑफ’ रुका नहीं। भारत, फ्रांस, ईराक, ईरान, स्वीडन आदि देशोंं के लोगों ने जल कम्पनियों के षड़्यन्त्र को समझाया है । फिर भी विश्व जल मंच 2021 डकार को आयोजित करना तय हो ही गया है।
‘किक ऑफ’ बैठक में दुनिया के दुनिया के 53 देशोंं के 254 लोग शामिल हुए । 400 लोग सेनेगल के थे।बहुत से लोगों ने बहुत से सवाल पूछे। विश्व जल समिति के खिलाफ भारत ने फ्रांस की अदालत में मामला क्यों दर्ज़ किया? बताएँ? विश्व जल समिति ने गरीब देशोंं से जल उत्सव करने की 4 मिलियन फीस क्यों ली है? गरीबों को ऐसे जल उत्सवों के आयोजन में संयुक्त राष्ट्र संघ मदद क्यों नहीं कर रहा है?
बिना जवाब दिए ही आयोजन की रूपरेखा बनी है।
सेनेगल और पूरे अफ्रीका एवं एशिया को जल-साक्षरता की जरूरत है। जल व्यापार की जरूरत नहीं है। सभी देश अपने जल का प्रबन्धन कैसे करें यह समझना, जल सहेजना और जल उपयोग दक्षता बढ़ाकर कम जल खपत से अधिक उत्पादन बढ़ाने का काम करना सभी की जरूरत है। यह कार्य लोकतान्त्रिक सरकार को करना चाहिए। सरकारों को अपने विश्वविद्यालयों व शिक्षण संस्थानों को जल संरक्षण एवं जल उपयोग दक्षता बढ़ाने वाले कार्यों को प्राथमिक काम मानकर करना होगा, तभी कोई देश पानीदार बनेगा। विश्व जल समिति का काम तो सरकारों को जल सुरक्षा हेतु सक्षम बनाने में मदद करना है, ग़रीब देशोंं के जल व्यापार से लाभ कमाना नहीं है। लेकिन यह संस्था अब लाभ कमाई हेतु सक्रिय नज़र आती है। वह सरकारों की क्षमता बढ़ाने का अपना मूल काम नहीं कर रही। जल से कमाई में ही जुटी है।
1997 में मरकेश में इस संस्था के पहले मंच पर दुनिया की जल सुरक्षा कायम करने का लक्ष्य अब यह संस्था क्यों भूल गई हैं? इस ‘किक ऑफ’ बैठक में विश्व जल समिति को अपने लक्ष्य को याद रखना सबसे ज्यादा जरूरी हैं।
जल व्यापार नहीं, जीवन है। जल को जीवन बनाने की दिशा में ही काम करना जरूरी है। इस दिशा में भारत का अपना अनुभव है। जल से जुड़कर सूखी, मरी नदियों को पुनर्जीवित किया जा सकता है। लोगों की ग़रीबी मिटाकर, समृद्ध बनाया जा सकता है।
सेनेगली सामाजिक नेताओं की बैठक करके उसमें एकमत होकर पानी का निजीकरण नहीं, समुदायिकरण करने की माँग हुई है। अफ्रीका में जल संकट के कारण देश उजड़ रहे हैं। लेकिन कम्पनियाँ यहाँ ‘विश्व जल समिति’ द्वारा एक जल-उत्सव मनाने की तैयारी कर रही हैं। इस उत्सव के विरुद्ध लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है। अवाडू ने कहा ‘हमें दिखावा नहीं, जल अधिकार चाहिए’। मनान्डू ने कहा- हम सरकारी दिखावे के विरुद्ध इकट्ठे होकर विरोध करेंगे।
डकार बैठक में पपजोक नामक व्यक्ति ने आकर कहा- स्वेज कम्पनी में फ्रांस का तो बस एक ही मालिक है, शेष सभी तो सेनेगली हैं, अफ्रीकन हैं। इसलिए इस कम्पनी ने सेनेगल को शुद्ध जल पिलाने का पैसा लेकर अच्छा काम किया है। इसके काम में बाधा पैदा करना ठीक नहीं। मीटिंग में आए लोगों ने कहा हम तो ‘विश्व जल मंच-2021’ को यहाँ आयोजित होना चाहिए या नहीं? यह बात कर रहे हैं। स्वेज के विषय में अभी नहीं, फिर कभी बात करेंगे। तब झगड़ा शान्त हुआ।
जोयल जोश फ्रांस से आए, उन्होंने कहा- ग़रीब सेनेगल को जल उत्सव द्वारा कर्ज़दार बनाकर कम्पनियाँ इन पर पहले जैसा कलोनियल रूल कायम करना चाहती हैं। आप समझे; इस जल उत्सव से किसे लाभ है? यह यहाँ क्यों आयोजित किया जा रहा है? आयोजित करने वाले कौन हैं? आदि सवाल पूछे। ममाडू इस बैठक का संचालन कर रहा था। उसने इन सवालों पर चर्चा किए बिना ही चर्चा को आगे बढ़ा दिया।
सिद्धींग सार व कुभांजू ने एक आवाज में कहा कि इस जल उत्सव के आयोजन पर 34 मिलियन खर्च करने की बजाय, इतना पैसा वर्षा जल संरक्षण करके जल उपलब्ध कराने पर खर्च करना चाहिए। शिक्षक संघ के नेता अक्लाईगई ने कहा हमारे देश के विद्यालयों में पेयजल व्यवस्था नहीं है। बच्चे बेपानी होकर मर रहे हैं। सरकार जल उत्सव क्यों मना रही है? हमें ऐसे उत्सव का विरोध करना होगा; अन्यथा हमारी अगली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।
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