ढिबीजो शीख, सोमालिया
संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
विस्थापित होता सोमालिया
सोमालिया की राजधानी मोगादीशू के आस-पास शुष्क जलवायु व दक्षिण-पूर्व में गर्म और अद्ध-शुष्क कोपेन जलवायु वर्गीकरण बी.एस. के रूप में वर्गीकृत किया गया है।सोमालिया अफ्रीका का एक ऐसा देश है, जहाँ की गरीबी दिखती है, यहाँ पानी खेती व उद्योगों, यहाँ तक की पीने के पानी की भी बहुत बड़ी समस्या है। जबकि वर्षा और जनसंख्या के अनुसार कर्द देशों से समृद्ध है। परंतु जल के ठीक तरह से प्रबंधन नहीं होने के कारण और यहाँ के लोगों में काम करने की ललक का दर्शन नहीं है। इसलिए यहाँ के लोग सबसे ज्यादा बेपानी होकर उजड़े है। यहाँ के विस्थापितों की संख्या बहुत अधिक है। ये ज्यादातर फ्रांस और स्वीडन में बसे है।
मेरी स्वीडन यात्रा में मुझे सोमालिया के विस्थापितों से मिलकर बातचीत करने में बहुत सुविधा हुई। मेरे साथी ऋषभ खन्ना और सुनीता राऊत ने मुझे हर बार सोमालिया के विस्थापितों से मिलाया। मैंने जब भी उनसे बातचीत में पूछा कि आप अपने देश में वापस जाने में इच्छुक है तो सभी ने एक झटके में ही मना कर दिया। कुछ लोगों ने देश छोड़कर आने का कारण आपसी लड़ाई बतायी, पर ज्यादातर ने जल संकट से मजबूर होकर सोमालिया से विस्थापित होने का कारण बताया।
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इन विस्थापितों ने कहा कि हमारी सरकार उनके लिए पानी की उपलब्धता पर कोई ध्यान नहीं देती। इन्होंने कहा कि पहले हमारे यहाँ अच्छी बारिश होती थी लेकिन अब अतिवृष्टि और सुखाड़ दोनों की मार होती है। कभी-कभी खूब बारिश होती है, फिर कई साल बारिश नहीं होती है। अब तो बादल फट करके मिट्टी को साथ ले जाते है। अब अन्न उत्पादन करना भी मुश्किल है, अब हमारे लिए अन्न, जानवरों के लिए चारे का इंतजाम करना, सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। ऐसा लगता है कि हम कभी भी अपने देश वापिस नहीं लौट सकेंगे। अब तो हमें इसी देश (स्वीडन) को ही देश अपना बनाना है।
सोमालिया के हसन वहां अफ्रीका के शरणार्थियों के सर्वमान्य नेता थे। इनसे विस्तार से बातचीत में पता चला कि जो लोग पहले आये थे वे तो अफ्रीका में कबीलों की आपसी रंजिश व लड़ाई के कारण अफ्रीका छोड़कर आये थे। पिछले 10 वर्षो में जो लोग आ रहे थे वे जलवायु परिवर्तन का संकट झेल नहीं पा रहे थे। इसलिए देश छोड़कर यूरोप की तरफ आ रहे थे। अधिकतर शरणार्थी जल संकट के कारण स्टॉकहोम आये थे। यह अच्छी बात थी कि वे इन दुखी पीड़ित लोगों को यहाँ सहारा दे पा रहे थे ।
हसन ने बताया कि जलवायु परिवर्तन प्रभावित शरणार्थी बहुत बुरी स्थिति में यहाँ आते हैं। वे लाचार, बेकार और बीमार होकर आते है। उनकी चिकित्सा भोजन आदि कि व्यवस्था वे मिलकर ही करते हैं। अफ्रिकन का यहाँ अच्छा प्रभावी संगठन बना है। वही शरणार्थियों का सहारा है। एक दिन जब ये यहाँ जमते हैं, तब इनके साथ वृद्ध, बच्चे सभी होते हैं। सभी को सहारा पाने की आवश्यकता होती है। स्वीडन के लेग भी सहयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय भी उनकी बहुत मदद करते हैं। ऋषभ जैसे बहुत से युवा हमारा सहारा बने रहते हैं। हसन ने और बताया कि सोमालिया के जलवायु परिवर्तन शरणार्थी बड़ी संख्या में पहुँचने लगे हैं।
अब बड़ी संख्या में शरणार्थियों का यहाँ आना स्वीडनवासियों को भी अच्छा नहीं लग रहा है। स्टॉकहोम पर भी अफ्रीकन का दबाव बढ़ा है। इसलिए अब वहाँ से यूरोप के शहरों से आने वालों की संख्या घटनी चाहिए। विस्थापन रोकने का उपाय वहाँ होना जरूरी है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।