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विशेष
काला पानी और लिपुलेख पर भारत के राष्ट्रपति को उत्तराखंड के एक पूर्व मंत्री की गुहार
परम आदरणीय महामहिम श्री राष्ट्रपति जी,
भारत का नागरिक एवं उत्तराखंड का निवासी होने के कारण तथा उत्तराखंड राज्य निर्माण में गिलहरी जैसी भूमिका होने के कारण मैंने अपना कर्तव्य समझा कि मैं इस पत्र के माध्यम से आपको कष्ट दूँ।
देश की सेनाओं के मुखिया तथा संविधान के रक्षक होने के नाते आप तो जानते ही हैं कि देश की सीमाओं की रक्षा हेतु पहली रक्त की बूँद अधिकतर उत्तराखंड के वीर सपूत की होती है और हमें उस पर गर्व भी है।मैं अपना सौभाग्य मानता हूँ कि मैं उस जिले से जहाँ के सपूत वीर गब्बर सिंह को पहला विक्टोरिया क्रॉस अपने अदम्य साहस और वीरता के लिये मिला था।
नेपाल ने भारत के अभिन्न हिस्से काला पानी और लिपुलेख ( जो कि उत्तराखंड राज्य में पड़ता है) को नक़्शे पर अपना क्षेत्र दिखाकर यहाँ के निवासियों की भावना को आहत किया है और उनमें इस बात को लेकर रोष है। नेपाल से अधिक रोष उनमें अपनी केंद्र सरकार के प्रति है, क्योंकि केंद्र सरकार का रवैय्या लुंज-पुंज है।
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नेपाल के प्रधानमन्त्री के वक्तव्य के बाद मैंने काला पानी, लिपुलेख से लेकर माणा तक के सीमांत क्षेत्र के निवासियों से बात की है।वे सब बहादुर लोग हैं और जीवित रहने के लिये प्रकृति से लेकर जंगली प्राणियों से संघर्ष कर जीवित रहते हैं।दुःख का विषय यह है कि हम अभी तक इन सीमांत क्षेत्रों तक मूलभूत सुविधायें भी मुहैय्या नहीं करवा पाये हैं।
लोगों में थोड़ी चिंता इस बात से है कि नेपाल के प्रधानमन्त्री ने अत्यन्त नकारात्मक बात कही है और कहा कि “भारत का कारोना, चीन के कारोना से ज़्यादा ख़तरनाक है।”
आज दूसरी चिंता का विषय है, पड़ोसी देशों से हमारे मधुर सम्बन्ध कटुता की ओर बढ़ रहे हैं। मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि नेपाल व तिब्बत से लगी सीमाओं पर बन रही चिंतनीय स्थिति का संज्ञान लेकर इस भ्रम को समाप्त किये जाने हेतु आप भारत सरकार को निर्देशित करने की कृपा करें।
मैं इस पत्र को माननीय प्रधानमंत्री, माननीय रक्षा मन्त्री, माननीय विदेश मंत्री व उत्तराखंड के माननीय मुख्यमंत्री को भी संज्ञानार्थ मेल कर रहा हूँ।
अंतर्मन से आभार के साथ,
भवदीय,
किशोर उपाध्याय*
*लेखक उत्तराखंड सरकार के पूर्व मंत्री तथा जाने माने पर्यावरणविद हैं। यहां प्रकाशित उनके निजी विचार हैं। [the_ad_placement id=”sidebar-feed”]
बोचरक महोदय, आफ्की बिचार राय मानवीय चेतना महान उपच हे! स्विकार्या हे! लेखिन आफ दुनियाँका जो बि जग्गा जाओ आफको परिचय भारतिय कहाँ जाती हे इस्मे कोहि दिगत नहि है । लिपु लेख लिम्पियधुरा ओर कालापानीके मामिला मे कोहि नेपाल ओर नेपाली आपकि ए sentimentका मानेका नहि। आगे जो बि हो जे बि हो नेपाली ओ स्विकार्लेका लेकिन आप कि भावना आप्की रहेका कोहि किसिका नहि । आपका पिता जि ओर दादा जि ने नेपालका भजन गाता थ क्यु कि ओ नेपाली था, अवि आप के पुस्तासे भारतीय हुवा, बस आगे गुलाम मत होना मेरा ओर नेपालीका यहि सुझाव देता हे