विगत कुछ वर्षों से संसद में अभद्रता, उपद्रव और अराजकता देखी जा रही है। उससे भारत की संसद की गरिमा को ठेस पहुंची है। भारतीय लोकतंत्र की परंपराओं में गिरावट आ रही है। सांसद अपने आचरण से सभी को लज्जित करा रहे हैं। ऐसे सांसदों को जनता के हितों से कोई लेना देना नहीं है।
ऐसा नहीं है कि ऐसे सांसद किसी एक विशेष दल में है । ये हर दल में मिल जाएंगे। ऐसे सांसद करदाताओं के अरबों रुपए को बर्बाद कर रहे हैं।
इसी वर्ष मॉनसून सत्र मे संसद का समय विपक्ष द्वारा बहिष्कार करने में चला गया। कुल मिलाकर 114 घंटे का काम लोकसभा में होना था लेकिन काम हुआ सिर्फ 21 घंटे 14 मिनट। वहीं 112 घंटे का काम राज्य सभा में होना था, लेकिन काम हुआ सिर्फ 28 घंटे। यह बात देश को जानने की ज़रूरत है कि संसद की कारवाई में हर मिनट पर 2.50 लाख खर्च होते हैं। ये सारा खर्च जनता के पैसे पर की जाती है। कुल मिलाकर मॉनसून सत्र में 290 करोड़ 25 लाख हुआ होता अगर पुरा काम होता। इसमें कुल मिलाकर 73 करोड़ 85 लाख रुपए का सदुपयोग हुआ। ऐसा ही कुछ शीतकाल सत्र में होता दिख रहा है।
सरकार विपक्ष पर दोष दे रही है और विपक्ष सरकार पर दोष मढ़ रही है। सरकार विपक्ष पर अनुशासनहीनता का आरोप लगा रही है और सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर। ये सब 2010 में 2जी, 3जी, और कॉमन वेल्थ गेम्स के नाम पर हंगामा एवं गतिरोध की घटना को याद दिला रही है। 2010 में लोक सभा में सिर्फ 6% और राज्य सभा में 2% का काम हुआ था।
सवाल उठता है यह आरोप प्रत्यारोप कब तक चलता रहेगा ? आम आदमी के लिए कानून कौन बनाएगा ? बहुत जरुरी हो गया है कि राजनीतिक दल अपने सदस्यों के आचरण एवं व्यवहार में सुधार लाएं। ऐसे संसद सदस्यों की सदस्यता खत्म कर देनी चाहिए या चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। जनता के हित के लिए संसद में चर्चा होना चाहिए न कि टीवी चैनलों या सड़कों पर। अगर टीवी चैनलों या सड़कों पर ही चर्चा करना है तो संसद की क्या आवश्यकता है। क्यों पैसे की बर्बादी हो ?
सांसदों को यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया भर में भारत के बढ़ते कद की एक वजह भारतीयों का अटूट विश्वास है कि लोकतांत्रिक तरीकों से ही सामाजिक और आर्थिक स्थिती को बेहतर बनाया जा सकता है। सांसदों को यह भी भूलना चाहिए कि आम आदमी लोकतंत्र की आत्मा है और संसद आम आदमी की बड़ी ताकत है। इसलिए सांसदों के लिए जरुरी है कि वे लोकतंत्र की महान संस्थाओं को सम्मान करें जो एक चुने हुए प्रतिनिधि से आशा की जाती है।
आख़िरकार देश की सबसे बड़ी पंचायत हमारी संसद है। भारत की संसद दुनिया में लोकतंत्र की मिसाल माना जाता है। जनता की मांग को रखने और देशहित के मुद्दे पर बहस करने के लिए उपयुक्त मंच है। देश के हित के लिए नीतियां यहीं बनती है। हम यहां अपनी जनप्रतिनिधि भेजते है और वे प्रतिनिधि हमारी समस्या पर चर्चा करते हैं और कानून बनाते हैं जिससे देश की दिशा और दशा प्रदान की जाती है। तभी तो इसे लोकतंत्र की मंदिर भी कहा जाता हैं।