कोरोना बनाम समाज
-खुशबू
कटक: महामारी की मार झेल रहे विश्व में बहुत हैं जो मानवता को बचाने में लगे हुए हैं। कुछ के पास साधन है तो कुछ अपने पेशे की बदौलत — जैसे कि डॉक्टर, नर्स, पुलिस कर्मी या दुकानदार — लोगों की सेवा में जुटे हैं। ऐसे कई समाज सेवी भी हैं जो आगे बढ़ चढ़ कर इस विपदा में गरीबों का पेट भर रहे हैं। सच ही तो है कि संकट के दौर में ही मनुष्य की सही पहचान होती है।
परन्तु ऐसा नहीं है कि सिर्फ साधन संपन्न ही इस मुश्किल दौर में आगे आये हैं। काफी बड़ा एक ऐसा तबका भी है जो साधन हीन होते हुए भी बेबस नहीं है और काफी कुछ करना चाहता है और कर भी रहा है। कहते हैं ना जहां चाह वहाँ राह! इसी कहावत को सच करते हुए साधन ना होते हुए भी केवल अपनी ज़िद की बदौलत कोरोनावायरस महामारी के बीच लोगों की सहायता करने के लिए कटक शहर में रहने वाले 45 वर्षीय डॉ. अभय रंजन पटनायक एक कोरोना वारियर के रूप में सामने आए। लोगों के लिए कुछ कर गुजरने की चाह ने उन्हें नित नए राह दिखाए ताकि वे लोक परोपकार में बढ़ चढ़ के भाग ले सकें। आखिर बचपन से ही दूसरों के लिए जीने का एक जज़्बा उन्हें चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत देता रहा है।
पटनायक फार्मेसी का बिजनेस करते हैं और उनकी पत्नी मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर हैं। जब लॉक डाउन लगा तो उनकी पत्नी को मिले पास की मदद से ही उन्होंने स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क साधा और लोगों की सहायता के लिए अनुमति ले ली। परन्तु सिर्फ यही तो काफी नहीं था। संक्रमण के एक ऐसे दौर में जब किसी को भी घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं थी, और खुद के भी संक्रमित होने का खतरा कायम था और जो अभी भी कायम है, ज़रूरतमंदों की पहचान कर उन तक राहत सामग्री पहुंचाना एक बड़ी चुनौती थी। परन्तु पटनायक ने एक रास्ता – सोशल मीडिया का – खोज ही लिया। सोशल मीडिया का सदुपयोग करते हुए पुलिस और सामाजिक संगठन के साथ मिलकर जरूरतमंद लोगों के लिए अखबारों में इश्तेहार दिए ताकि जरूरतमंद लोग उन्हें फ़ोन या ई-मेल करके उनसे सहायता मांग सकें। फिर तो उनकी ७-८ लोगों की एक पूरी टीम ही बन गयी। मजरूह सुल्तानपुरी का यह शेर – मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया — पटनायक के ऊपर सटीक बैठ रहा था। कुछ गैर सरकारी संस्थाएं (एन जी ओ) उनके संपर्क में आ गयीं और इन संस्थाओं से रसद ले वे और उनके साथी वालंटियर्स उन्हें ज़रूरतमंदों तक पहुंचाने लगे – कटक और भुवनेश्वर शहर की बस्तियों में जरूरतमंद लोगों को दाल ,आटा ,चावल और दवाइयों के लिए पैसे साथ ही जरूरतमंद महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन।
इस काम के लिए उनका और उनके साथियों का बाइक और स्कूटर काफी काम आया परन्तु यह काम तो अभी अधूरा था। अनलॉक और साथ ही कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देख इन्होनें लोगों में कोरोना महामारी और सोशल डिस्टेंसिंग के बारे में जागरूकता फैलाने का भी जिम्मा ले लिया । इनका और इनके सहयोगियों का यही सन्देश होता – “आप सरकार के लिए केवल एक संख्या है परंतु अपने परिवार के लिए आप सब कुछ हैं।” यह एक सशक्त सन्देश था और फिर तो लोगों को यह समझना आसान हो जाता कि घर से बाहर जाते वक्त मास्क पहनना क्यों ज़रूरी है और क्यों दूसरों से 6 फीट की दूरी बनाकर रखना चाहिए और क्यों घर पर आकर तुरंत स्नान करना चाहिए । यदि काम ज्यादा जरूरी नहीं है तो घर से ना ही निकले !
समाज सेवा सुनने में तो एक आसान कार्य लगता है पर है नहीं। यह कार्य जुझारू लोग ही कर सकते हैं। हमने झाँसी के संजय सिंह के बारे में यहां लिखा था कि किस प्रकार वे लोगों की सेवा कर रहे हैं इस विपत्ति के काल में। संजय निरंतर ज़रूरतमंदों के संपर्क में रहे और फिर वही हुआ जिसका डर था। वे खुद भी कोरोना से ग्रसित हो गए पर कहते हैं ना कि ऊपरवाला सब देखता है और न्याय करता है। संजय अब कोरोना से उबर गए हैं और लोगों के लिए काम करने का उनका जज़्बा और बढ़ गया है हालांकि अभी पूरी तरह से ठीक होने में उन्हें कुछ दिन और लगेंगे।
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पटनायक के सामने एक अलग ही तरह की चुनौती है। उनके बूढ़े माँ बाप उनके साथ ही रहते हैं और लोगों के बीच काम करते हुए उन्हें यह भी ध्यान देना रहता है कि वह अपने माता पिता का भी ख्याल रखें और यह सुनिश्चित करें कि वे इस बीमारी से दूर रहें। उन्होंने बताया कि वह अपने घर में किस तरह सावधानी बरतते थे यदि कोई भी सामान जैसे राशन सब्जी दूध आदि चीजों को पहले सैनिटाइज करते उसके बाद ही उसका प्रयोग करते। साथ ही उनका लोगों को जागरूक करने का काम भी एक अनूठे अंदाज में सोशल मीडिया द्वारा ही अधिकतर होता – फेसबुक पर लाइव वीडियो द्वारा। लॉक डाउन के दौरान और अभी भी उनकी कोशिश यही रहती कि अपना ज्यादातर कार्य घर से ही करें। पर साथ ही मोहल्ले टोले की साफ़ सफाई के लिए भी वे तत्पर रहते और जहां भी कूड़ा कचरा दिखाई देता तो म्युनिसिपेलिटी के साथ मिलकर उसे साफ करवाते। उनके शहर में पहला करोना मरीज बाहर से आया था और उन्हें संतुष्टि है कि अब उनके शहर में करोना के मरीज ना के बराबर ही है।
डॉ अभय रंजन पटनायक ने उड़ीसा के ढेंकानाल स्कूल से 12वीं करने के बाद मद -इन -इलेक्ट्रो होमियोपैथी की पढ़ाई की और उसके बाद उन्होंने फार्मेसी बिजनेस खोला। परंतु सामाजिक सेवाओं में रुचि होने के कारण उन्होंने बिजनेस के साथ-साथ सामाजिक सेवाएं भी शुरू कर दी । उन्होंने भविष्य में ऐसे ही कुछ सामाजिक कार्य करने के निर्णय लिए हैं जिसमें से उनका सपना है कि वह किन्नरों के लिए ओल्ड एज होम बनाएं और वह युवा पीढ़ी को समझाएं की सामूहिक परिवार और फैमिली वैल्यू क्या होती है। अपने इन सभी सपनों को पूरा करना और इसी के साथ अपना जीवन समाज सेवा में व्यतीत करना चाहते हैं – “अभी भी समाज सेवा कर रहे हैं और अपना पूरा जीवन समाज सेवा में व्यतीत करेंगे”।
समाज को पटनायक जैसे समाजसेवियों की काफी आवश्यकता है जो खुद के स्वार्थ से ऊपर उठ सिमित साधन होते हुए भी परोपकार के कार्य कर एक उदहारण पेश करें। ऐसे में रहीम का एक दोहा काफी प्रासंगिक होगा — यों, रहीम सुख होत है उपकारी के संग। बॉंटनवारे को लगे ज्यों मेहंदी को रंग।। अर्थात दूसरों की भलाई करने वाला उसी प्रकार से सुखी होता है जैसे दूसरों के हाथों पर मेहंदी लगाने वाले की उंगलियां खुद भी मेहंदी के रंग में रंग जाती हैं।