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डॉ. राजेंद्र सिंह*
भारत के कोयले में लूट – घने जंगलों को काटकर खनन करने के लिए सरकार ने निजी कम्पनियों को छूट दे दी है। जबकि जंगलों को उजाड़े बिना, देश की जरुरत पूरी करने के लिए पर्याप्त कोयला भंडार भारत के पास मौजूद है। हमें समझ नही आ रहा है कि वन्य जीव अभयारण्यों को, जो कि जैव विविधता के खजाने है और प्रकृति अनुकूलन की राह पर देश को चलाने के रास्ते है, उन पर हमारी सरकार लूट की छूट क्यों दे रही है?
18 जून को 41 कोयला खदानों की नीलामी के विरुद्ध झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरन ने शनिवार को सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर करने का ऐलान किया है। इससे पहले सोरन ने भारत सरकार को अपनी चिट्ठी में लिखकर, इस समय कोयला खदानें नीजि कम्पनियों को देने के लिए रोक लगाने का निवेदन पत्र भेजा था। इनके साथ-साथ छत्तीसगढ़ के वन्य व पर्यावरण मंत्री ने जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध प्रदूषण बढ़ाने वाले इस उल्टे काम को रोकने के लिए निवेदन किया है। हसदेव आरण्य जैसे घने जंगलों में खनन नही होना चाहिए। इस खनन के विरुद्ध कांग्रेस भी लामबंद हुए है।
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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने इस नीलामी को निरस्त करने की अपील की है। 41 खदानों में से 29 खदानें तो झारखंड, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में है और बाकी 12 खदानें ओडिशा व महाराष्ट्र में दी है। ऊपर से बडी बेशर्मी के साथ भारत सरकार कह रही है कि इन खदानों के द्वारा हम कोरोना से बचने के लिए अवसर सर्जित करेगें व साथ में आत्मनिर्भर बनाने की भी बात कही है। अजीब बात है कि गृहमंत्री ने 2.8 लाख लोगों को नौकरी दिलाने और 33 हजार करोड़ का निवेश लाने के साथ-साथ, राज्य सरकारों को भी लालीपोप देने की बातें कोयला खनन के संदर्भ में कही है।
भारत सरकार के किसी भी नेता ने घनें जंगलों, जल, जमीन की बर्बादी को उजागर नही किया। इन खदानों से नदियां, जल, जंगल, जमीन, जानवर सब बर्बाद होगें, वह इस बात को छुपा रहे है।
इस नीलामी से हसदेव आरण्य का 87 प्रतिशत से अधिक क्षेत्रफल के घने जंगल नष्ट हो जायेगें। इसी तरह महाराष्ट्र में बंदेर और मध्यप्रदेश में गोटी टोरिया (पूर्व) कोयला खनन क्षेत्र 80 प्रतिशत से अधिक जंगलों से ढका हुआ है। दामोदर व बकरी जैसी नदियों का जलागम क्षेत्र पूर्णतः नष्ट हो जायेगा।
भारत सरकार ने घने जंगलों पर प्रतिबंधित कोयला खनन की नीति गो-गो को भी एक दम दरकिनार कर दिया है, क्योंकि अब जो खनन दिया जा रहा है वो परचु घने जंगलों में दिया जा रहा है। यह सरकार एक तरफ हर घर में नल और नल में जल, देने की बात कर रही है, लेकिन जल देने वाली नदियों को सूखाने व मारने का काम भी साथ-साथ कर रही है। यह कार्य देश के घने जंगलों में शुरु होने से जल का संकट पैदा होगा। इस बात पर सरकार ने विचार नही किया। दूसरी तरफ यह सरकार जलवायु परिवर्तन से लड़ने की प्रतिबद्धता भूल रही है और भारत की जंगलों कों बचानें वाली नीतियों को अनदेखी कर रही है।
कोयले की जरुरत का गणित देखे तो, भारत का कुल उत्पादन 72 करोड़ टन रहा है। जबकि कोयले की कुल खपत 80.1 करोड टन रही है। भारत में 14800 करोड टन के भंडार प्रूबोज कौल है। जिसके लिए नए जंगलों के गो – गो क्षेत्रों को काटने की जरुरत नही है।
कोल इंडिया की रिर्पोट के मुताबिक भविष्य में भारत को 150 करोड़ टन कोयले की सलाना जरुरत का अनुमान है। इस हिसाब से घने जंगलों के बाहर अभी भी हमारे पास 14800 करोड़ टन का भंडार है। इस प्रकार अगले कई दशकों तक भारत को अपने जंगलों को बर्बाद करके कोयला खनन करने की आवश्यकता नही हैं। फिर भी सरकार अपनी जैव विविधता के भंडारों को नष्ट करने का कार्य क्यों कर रही है? यह हमारी समझ से बाहर है। देश में अभी 600 से अधिक कोल ब्लॉक है। 50-60 कोल ब्लॉक में से ही अधिकांश कोयला निकाला जाता है। इसलिए जंगलों में खनन की नीलामी करना भारत के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, जल अन्न की सुरक्षा के विपरीत है। हमारी सरकार को ऐसा नही करना चाहिए।
सरकार के इस गलत काम को रोकने के लिए हम सभी को एकजुट होकर जल, जंगल, जमीन , जंगलवासी और जंगली जानवरों को बचाने के लिए एक मुहिम खड़ी करनी चाहिए। इस मुहिम की शुरुआत जिन पांच राज्यों में कोयला खनन के पट्टे दिए गए है, वहीँ से होनी चाहिए।
हम सब को यह स्पष्ट होना चाहिए कि यह खनन केवल उन पांच राज्यों का नुकसान नही करेगा बल्कि यह पूरे देश व दुनिया के पर्यावरणीय संकट को जन्म देगा। इसलिए हम सभी की इस काम के लिए बराबर जिम्मेदारी है।
कोविड महामारी के बुरे वक्त जबकि सरकारों को इस महामारी से बचने के लिए एक जुट होकर काम करना चाहिए। ऐसे में भारत के जल, जंगल, जमीन, जंगलवासियों व जंगली जानवरों के विरुद्ध सरकारी मोर्चा खोलना उचित नही है। परन्तु यदि सरकार ने यह कोयला खदानें रद्य नही की तो सरकार को विरोध झेलना ही पड़ेगा।
हमारी सरकार को इस संकट की घड़ी में जब कोविड-19 के अलावा टिड्डों की मार , समुद्री चक्रवात, भूकंप, और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के साथ ही चीन के साथ सरहद पर सामना करना पड़ रहा है, उसे संगठित होकर कोविड़-19 के शिकारी के शिकार बनाने में जुटना चाहिए। हमारी सरकार वैसा नही करके बल्कि उसी चीन के बताये रास्ते पर चल रही है। इसलिए आर्थिक प्रतियोगिता के वैश्विक जंजाल में दुनिया का सबसे बड़ा नेता बनने की चाह हमारे देश के विरुद्ध है।
भारत की जनता को सोचना चाहिए कि भारत की आत्मनिर्भरता के लिए जल, जंगल, जमीन, को बर्बाद करके आर्थिक लाभ के लिए अपनी सनातन सम्पदा को निजी कम्पनियों को सौंपना खतरनाक है। यह भारत की जनता समझ रही है, लेकिन कोविड महामारी के समय ही सरकार ने गलत कदम उठाकर अपने विरुद्ध भारत की जनता का विरोध झेलना पडे़गा।
भारत के जंगलों को नष्ट करके कोयल खनन हेतु नीलामी करना नैतिकता व न्याय नही है। मैं जानता हूं कि यह भारत सरकार की नजर में भी नैतिक व न्याय संगत नही होगा। फिर भी भारत सरकार ने चंद कंपनियों के दबाब में आकर भारत के लोकतंत्र पर सवाल खड़े कराये हैं। भारत की जनता जीविका, जीवन, जमीर, जलवायु परिवर्तन, जल, अन्न, स्वस्थ्य सुरक्षा हेतु नैतिक व न्याय की लड़ाई के लिए एक जुट होकर, साझे भविष्य को नष्ट करने वाले कोयला खनन की नीलामी को रुकवायेगी।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।
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