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किसानों को सरकार से मिली बड़ी निराशा,जल्द आंदोलन का आगाज
– चौधरी राकेश टिकैत*
पंचों की बात सिर माथे, पर खूंटा वहीं गढ़ेगा”। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पुरानी कहावत को चरितार्थ कर दिखा दिया है।
निर्मला सीतारमन द्वारा आज किसानों के लिए घोषित आर्थिक पैकेज में कृषि ऋण को तीन माह के आगे बढ़ाने एवं नए किसान क्रेडिट कार्ड से लोन दिए जाने के अलावा नया क्या है? हमारे नीति निर्धारकों को यह बात कब समझ में आएगी कि अगर हमारे कृषि ,कृषि उद्योगों के लिए अनुकूल माहौल होता तो उन्हें ऋण की आवश्यकता कहा थी। बैंक उन्हें ऋण देने में इतना नहीं हिचक रहे होते। बैंकों के पहले से ही यह राशि पड़ी है। पर नया ऋण लेकर कोई भी जोखिम उठाने की स्थिति में नहीं है। हमारे किसान,कृषि उद्योग और न ही बैंक।
कारण साफ है कि भारत एक गहरे आथिक संकट के जाल में फंसा है। यह आर्थिक संकट का जाल कोरोना की ही देन नहीं है, बल्कि कोरोना पूर्व का है। कोरोना संकट ने इसमें आग में घी का काम किया है। भारत में नोटबन्दी और जीएसटी से तबाह हुई अर्थव्यवस्था को मोदी सरकार द्वारा कुछ समय तक ‘मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप, स्मार्ट सिटी, सांसद ग्राम, विदेशी निवेश, पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था जैसे जुमलों से ढकने की कोशिश की गई। पर पिछले वित्तीय वर्ष के तीसरी तिमाही के आंकड़े आने तक खुद मोदी सरकार मान चुकी थी कि हमारी विकास दर अब 4.5 प्रतिशत पर रहेगी।कृषि की विकास दर 2.7 पर सिमट चुकी है। जिसके आधार पर सरकार किसानों की आमंदनी दोगुनी करने का दम भरती है। इससे बाजार में मांग का भारी अभाव पैदा हो गया। यानी देश में आम आदमी की क्रय शक्ति में भारी गिरावट आ चुकी थी।
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तब तमाम अर्थशास्त्रियों, विपक्षी दलों, , ट्रेड यूनियन से लेकर किसान संगठनों ने सरकार से मांग की थी कि देश में अगर लिक्विडिटी (तरलता) को बढ़ाना है तो आम लोगों के हाथ में पैसा देना होगा। इसमें मज़दूरों की न्यूनतम मजदूरी व न्यूनतम वेतन में बृद्धि, मनरेगा में 200 दिनों का काम और शहरी गरीबों के लिए भी मनरेगा जैसे स्कीम लाना, किसानों को उनकी उपज की लागत का डेढ़ गुना दाम और सरकारी खरीद की गारंटी, देश के हर किसान के लिए एक न्यूनतम आय की गारंटी स्कीम,किसानों के लिए सम्मान निधि की राशि को बढ़कर 24000 सालाना , किसानों का सभी तरह के ऋण माफ करना,फल,सब्जी,दूध,पोल्ट्रीफार्मर, मधुमक्खी पालक,मछली उत्पादक किसानों के नुकसान की भरपाई, जैसे उपाय किये जाने की मांग थी । पर मोदी सरकार बड़े कारपोरेट घरानों पर देश का धन और संसाधन लुटाती रही है।
पर आज वित्त मन्त्री निर्मला सीतारमन की घोषणाओं में कहीं भी किसानों,मजदूरों की मांगों को स्थान मिलता नहीं दिखा। मार्च-अप्रैल के वेतन बिना ही भूख से लड़ते-मरते मजदूरों का बड़ा हिस्सा अपने गांवों की ओर लौट रहा है। केंद्र व राज्य सरकारों की पूर्ण उपेक्षा से इतनी अमानवीय तकलीफों को झेल कर जो मजदूर गांव लौटे हैं, उनका बड़ा हिस्सा सामाजिक आर्थिक सुरक्षा की गारंटी के बिना जल्दी वापसी नहीं करेगा। जिससे कई राज्यो की खेती प्रभावित होगी।
दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि कोरोना संकट ने बाजार में मांग का और भी बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। जीवन के लिए बहुत जरूरी वस्तुओं को छोड़ बाकी उत्पादों की मांग तब तक नहीं बढ़ेगी, जब तक देश के 80 करोड़ मजदूरों-गरीबों-किसानों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ जाती। ऐसे में बैंक ऋण का झुनझुना स्थिति में सुधार नही लाया जा सकता। किसानों को सरकार से बड़ी निराशा मिली है।
सरकार की घोषणाओं से किसान आत्मनिर्भरता की नही आत्महत्या की तरफ रुख करेगा। जिस आत्मनिर्भरता की बात सरकार कर रही है उसको हासिल करना खेती के बिना हासिल करना कठिन ही नही असंभव है। किसान बेमौसम मार पहले से ही झेल रहे है। देश का किसान अपने को ठगा महसूस कर रहा है। किसानों के नुकसान की भरपाई व ऋण माफी हेतु भारतीय किसान यूनियन जल्द ही रणनीति तय कर बड़े आंदोलन का आगाज करेगी।
* चौधरी राकेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। यहाँ प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।[the_ad_placement id=”sidebar-feed”]