विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
बापू महात्मा गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटकर भारत आये और 1917 में साबरमती नदी के किनारे अपना ठिकाना बनाया था। उन्होंने ऐसी जगह खोजी जिसके एक तरफ अहमदाबाद की जेल और दूसरी तरफ श्मशान घाट। गुलाम देश में सत्याग्रही के दो ही ठिकाने होने चाहिएः सत्याग्रह करते हुए जेल जाना; या लड़ते हुए शहादत पाना। इसी त्याग समर्पण की तैयारी हेतु साबरमती आश्रम बना था।
सादगी से रहना, सच बोलना और सत्ता से नहीं डरना हर सच्चे इंसान का धर्म है। 1930 में, जब गांधी जी दांडी यात्रा पर निकल गए, तब भी वे इन्हीं तीन मूल्यों की रक्षा के लिए निकले थे, और जाते-जाते सभी से कह रहे थे कि, तीन मूल्यों को न भूलना, न किसी को भूलने देना।
आज बापू के तीनों मूल्यों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं! देश की आत्मा कुचली जा रही है, महात्माजी का नाम लेते हुए, देश को महात्माजी से अलग व उल्टी दिशा में ले जाया जा रहा है। देश की ऐसी बदहाली का मूक दर्शक बने रहना अच्छा नहीं है। आँखे खोल कर देखो, और आवाज मिलाकर बोलो।
देश के करोडों-करोडों किसान-मजदूर; छोटा धंधा-पानी करने वाले; छोटी आमदनी से अपना घर-परिवार चलाने वाले; नौकरी-पेशा करने वाले सभी इज्जत से जी सकते हैं और ईमान की रोटी खा सकते हैं, जब जीवन में सादगी होगी, जब सच बोलने का वातावरण हो और जब लोग सत्ता की सनक का प्रतिवाद करें, इस हेतु सादगी से, ऐसी शांत जगह पर सत्याग्रह साबरमती आश्रम बनाया था।
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आजादी की पुकार लगाई, देश ने सादगी में शान देखी, शांति में शक्ति का अनुभव किया और आश्रम से गांधी की पुकार सुनकर, आजादी की वेदी पर अपना बलिदान किया। आश्रम गूँगा-बेजान नहीं, आजादी का बलिदानी सिपाही बन गया, महात्माजी ने आश्रम को सिखायाः आजादी का मतलब है कि, इस देश का आम-आदमी जैसे रहता है, वैसे ही समाज, सत्ता को रहना; एक अच्छा व सच्चा आदमी जैसा होना चाहिए। वैसा बनना, वे खुद ऐसे ही थे, और हमें ऐसा ही बनाना चाहते थे। उनका आश्रम अब तक वैसा ही बना रहा है।
आज की सरकार साबरमती आश्रम पर फैशन लाद रही है। फैशन के विरूद्ध बोलने से रोका भी जा रहा है, सादगी की बोली, सच्चाई और समानता का बापूजी का रास्ता और बापू की आवाज को 1200 करोड़ रुपयों की चमक-दमक में दबाया जा रहा है।
हम चाहते हैं साबरमती आश्रम का दरवाजा उसी तरह खुला रहे जिस तरह महात्माजी ने उसे खोला था, देश के हर कोने से, हर तरह के लोग बे-रोक-टोक यहाँ आएँ, यहाँ की शांति, सादगी, पवित्रता व आदर्श जीवन शैली की पहचान लेकर जाएँ, हम सब महात्मा गांधीजी भले न बन सकें, लेकिन सारे हिन्दुस्तानी व सारी दुनिया के लोग आश्रम जब भी आएँ, तब यह जान ही सकें कि महात्माजी कैसे थे, कैसे रहते थे और कैसे रहने से हिन्दुस्तान व संसार का भला हो सकता है। बापू जी ने जैसा बनाया वैसा बनने से ही देश जहरीली हवा व पानी से, गैर-बराबरी के हिंसक समाज से, युद्धों के लहू-लुहान व आतंकवाद से क्षत-विक्षत संसार से मुक्त हो सकता है।
आपस में लड़ाने वाला, एक-दूसरे से डराने वाला भय, लालच व क्रूरता को हथियार बनाकर हमें कुचलने वाला यह विकास दरअसल विकास नहीं, हमारे ज्ञान का विस्थापन और विनाश है। सरकार आवाज बंद कराना चाहती है। आश्रम को वैभव के पर्दे में छिपा देना चाहती है, वह चाहती है कि महात्माजी जैसे थे, उसी रूप में, हम उन्हें नहीं देख सकें, न पहचान सकें, वह हमारे सामने अपना बाजारू गाँधी पेश करना चाहती है जो दूसरा कुछ भी हो, हमारा गाँधी नहीं हो सकता है।
महात्माजी के शरीर की हत्या हुई है, उनके विचार की हत्या हो रही है। अब उनकी स्मृतियों की भी हत्या करना चाहती है, इसे बचाने हेतु हम एक हो। हम सब जहाँ है, वहीं से बोलें कि, महात्माजी की स्मृतियों से कोई भी नही खेले, हमारा गांधी जैसा था वैसा ही हमारे पास रहने दो! गांधी रहेंगे तो आशा रहेगी कि? हम गिर कर भी उठेंगे, मर कर भी जी सकेंगे, अपना देश नया बना सकेंगे।
हम एक आवाज में कहेंः गांधी-विचार के जितना पास आ सकते हो आओ, लेकिन गाँधी जी के स्मृति-स्थानों से दूर ही रहो। दुनिया में बापू की स्मृतियों को जैसी है, वैसी ही रहने दो। सत्य, सुनना व सत्य पर चलना हम सबकी जरूरत है, अन्यथा सत्याग्रह का महात्मा जी का रास्ता खुला ही है।
आश्रम की सादगी महात्मा जी के वस्त्र की सादगी ही नहीं थी, उनकी आध्यात्मिक, कर्म यौगिक, सत्याग्रही की राष्ट्र हेतु त्याग और समर्पित लोगों को बनाने की जगह है। यह आज भी उसी प्रकार से प्रेरित कर रही है। आज की जीवंत विरासत है। इसे बचाने हेतु पूरी दुनिया तैयार है। यह किसी एक की बपौती नहीं है। पूरी दुनिया की विरासत है, संयुक्त राष्ट्र संघ ने बापू के जन्मदिवस को विश्व अहिंसा दिवस घोषित किया है। बापू के जिन मूल्यों को आधार मानकर विश्व अहिंसा का प्रतीक बनाया है। उन्हीं प्रतीक बिन्दुओं को महात्मा स्मृतियों को संरक्षित करने हेतु हम एक होकर सत्याग्रह करें।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।
Gandhi Ashram is an Indian Heritage. It should be preserved. It cannot be converted for Tourist pleasure.
Many important functions were held there over the century. Many freedom fighters and important people lived there for several years. There are great memories. The museum and Archives have great notes on them.