चंद्र विकाश*
मेरे सपनों का भारत
अब न विदेश-परस्त विपक्ष बचा
शेष रहा न कोई बहाना।
स्वदेशी के उर्ध्वगामी मार्ग पर
है हमें अब लौट आना।।
गौ आधारित कृषि हो
हो कृषि आधारित उद्यम।
बने भारत एक बार फिर से
सुन्दर समृद्ध और सक्षम।।
अंत्योदय तक साधन पहुंचे
शिक्षा स्वास्थ्य हो निःशुल्क।
स्वदेशी हो भोजन, भवन,भूषा
स्वदेशी से सुसज्जित हो मुल्क।।
राम मंदिर, गौ एवं गंगा
सांस्कृतिक धरोहर हो संरक्षित।
हर क्षेत्र का हो समुचित विकास
आजीवन हो आजीविका आरक्षित।।
ग्राम, गुरुकुल, नगर, अरण्य हों
संस्कृतमय हो जन जीवन।
वेद उपनिषद की ज्ञानगंगा में
प्रकाशमय हो सबका मन।।
जल जंगल जमीन जानवर पर
हो स्थानीय ग्राम नगर समाज का अधिकार।
राजा प्रजा की करे सेवा तभी
खुशहाल हो कारीगरी, कारोबार।।
वसुधैव कुटुम्बकम के दर्शन से
पर्यावरण संकट से हम जाएँ उबर।
विश्वगुरु भारत का सम्मान हो
सोने की चिड़िया के उग आएं पर।।
स्वदेशी का विश्व प्रतिमान बने भारत
सहेज कर अपनी थाती।
होली हो फूलों के खुशबुदार रंगों से
दीपावली हो संग दीया और बाती।।
*स्वदेशी विचारक