व्यंग्य: पति-पत्नी संवाद में स्वाद
– डॉ. गीता पुष्प शॉ*
पति: कहाँ हो?
पत्नी: इस्तरी कर रही हूँ।
पति: तुम स्त्रियों को सुबह-सुबह इस्तरी करने की क्या सूझती है?
पत्नी: दो बार चाय दे चुकी। नाश्ता दे चुकी आपकी शर्ट आयरन कर रही थी। यह लीजिए।
पति: गुड-गुड! टाई नहीं मिल रही…
पत्नी: अभी खोज कर देती हूँ।
पति: जल्दी करो, वरना ऑफिस को देर हो जाएगी।
पत्नी: देर रात तक टी.वी. देखते हैं। देर से उठते हैं। सुबह दो कप चाय के साथ जब तक पूरा अखबार घोलकर पी नहीं लेते तब तक न मुँह धोने जाते हैं, न नहाने। देर तो आप करते हैं, फिर चिल्लाते हैं।
पति: सुबह- सुबह भाषण मत दो। इस देश में भाषण सुनते-सुनते लोगों के कान पक गए हैं। अब पब्लिक के पास टाइम नहीं है।
पत्नी: यह लीजिए टाई। गले में फँदा लगाकर ऑफिस भागिए।
पति: खाक ऑफिस भागूँ। कमीज से दो बटन गायब हैं। जरा जल्दी से टाँक दो।
पत्नी: लाइए। पता नहीं क्यों धोबियों को हम पत्नियों से जनम-जनम का बैर है। वे बटन तोड़ते रहतेहैं और हम पत्नियाँ टाँकती रहती हैं। पता नहीं यह खेल कब खत्म होगा।
पति: हो गया… स्कूटर का पेट्रोल खत्म हो गया। अब बस से जाना पड़ेगा। मैं चला…
पत्नी: पहले यह कमीज तो पहन लीजिए वरना बनियान में आपको जाता देखकर लोग…
पति: गुड-गुड…तुम मेरा कितना ख्याल रखती हो। कौन कहता है कि तुम मेरी अर्धांगिनी हो। अरे तुम तो बटन टाँकनेवाली, चाय बनाने वाली, रोटी-सब्जी बनानेवाली आदी-प्याज हो। मेरे लिए ‘पंचमेल’अचार हो।
पत्नी: और आप मेरे लिए सरकार हैं।
पति: गुड-गुड… सरकार यानी गवर्नमेंट?
पत्नी: जी। आप सरकार से कम नहीं। वादे पर वादे करते हैं। कभी निभाते नहीं। कब से कह रही हूँ कि मिस्टर सिंह जिस तरह की सुन्दर साड़ियाँ लाकर अपनी पत्नी को देते हैं, आप वैसी साड़ियाँ वादा करके भी आज तक मेरे लिए नहीं लाए…
पति: मिस्टर सिंह काम कराने के बदले रिश्वत लेते हैं, तब लाते हैं बेशकीमती साड़ियाँ…
पत्नी: मेरा भी मन करता है कि आपकी लाई हुई सुन्दर साड़ियाँ पहनूँ, जिन्हें देखकर पड़ोसनें जल मरें। देखिए आप भी तो सबका काम करते हैं। दौड़-धूप करते हैं। बदले में कुछ…
पति: मैं सिद्धान्तवादी आदमी हूँ। ईमानदार हूँ। बताओ मैंने तुम्हारे पिताजी से एक पैसा भी दहेज लिया…नहीं न! तो पड़ोसनों को जलाने से बेहतर है, तुम भी मेरी माँ की तरह गर्मागर्म रोटियाँ बनाकर मुझे खिलाओ और सुखी रहो।
पत्नी: और आप मेरे पिताजी की तरह आटा सान दिया कीजिए।
पति: मैं और आटा ?
पत्नी: आटा गूंधने में क्या बुराई है? गाँव गए थे तो आपने देखा था न पिताजी सब्जियाँ भी काट देते थे। फिर माँ कितने प्रेम से बनाती थी… और आप चटखारे लेकर खाते थे।
पति: अच्छा बनता था तो जमकर खाता था।
पत्नी: मैं अच्छा नहीं बनाती ?
पति: बनाती तो हो, मगर हाय वे रोटियाँ, वे सब्जियाँ…वैसा स्वाद नहीं आता…
पत्नी: वैसा स्वाद परिवार वालों के सहयोग से बनाए भोजन में आता है। पिताजी का गूँधा आटा, माँ की सेंकी हुई रोटियाँ।पिताजी के हाथों कटी और माँ के हाथों बनाई गई सब्जियाँ। पिताजी के हाथों लगाए फूलों के पौधे और सुबह-सुबह माँ का फूलों को तोड़कर भगवान पर चढ़ाना…जीवन का असल स्वाद सहयोग में है। आजकल तो सरकार भी, दूसरी पार्टी के सहयोग के बिना चलना तो दूर, बन भी नहीं पाती है… आप तो मेरी सरकार हैं… मेरी गवर्मेंट हैं। ज़रा सोचिए, पति-पत्नी का साथ तो जीवन-भर का होता है…आपको देर हो गई, चलिए गेट तक छोड़ दूँ…
पति: चलता हूँ… मैं ऑफिस से लौटकर आटा गूँथ दूँगा, सब्जियां काट दूँगा, नर्सरी से फूल का पौधा भी ले आऊँगा।
पत्नी: अब आया स्वाद।
पति: हाँ, आज पहली बार इस सरकार को तुम्हारी जैसी जनता के भाषण में असली स्वाद आया।
पत्नी: गुड-गुड।
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*डॉ. गीता पुष्प शॉ की रचनाओं का आकाशवाणी पटना, इलाहाबाद तथा बी.बी.सी. से प्रसारण, ‘हवा महल’ से अनेकों नाटिकाएं प्रसारित। गवर्नमेंट होम साइंस कॉलेज, जबलपुर में अध्यापन। सुप्रसिद्ध लेखक ‘राबिन शॉ पुष्प’ से विवाह के पश्चात् पटना विश्वविद्यालय के मगध महिला कॉलेज में अध्यापन। मेट्रिक से स्नातकोत्तर स्तर तक की पाठ्य पुस्तकों का लेखन। देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। तीन बाल-उपन्यास एवं छह हास्य-व्यंग्य संकलन प्रकाशित। राबिन शॉ पुष्प रचनावली (छः खंड) का सम्पादन। बिहार सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा साहित्य साधना सम्मान से सम्मानित एवं पुरस्कृत। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से शताब्दी सम्मान एवं साहित्य के लिए काशीनाथ पाण्डेय शिखर सम्मान प्राप्त।