रविवारीय
– मनीश वर्मा ‘मनु’
ट्रांसफर, पोस्टिंग, रिटायरमेंट, विजिलेंस, प्रोमोशन , इन्क्रीमेंट, कारण पृच्छा ( प्रेम पत्र) आदि कुछ ऐसे शब्द हैं जो आपकी जिंदगी से चिपके रहते हैं, जब आप नौकरी में होते हैं। वैसे, यह शब्द आपको नौकरी के बाद भी कहां चैन लेने देते हैं ! चिपके ही रहते हैं ! बिल्कुल , वैसे ही जैसे बच्चा गर्भ में अपनी मां के साथ रज्जू नाल से जुड़ा होता है।
ख़ैर! यह सब तो चलता ही रहता है। नौकरी की है तो यह सब चलता ही रहेगा। आपकी नौकरी के साथ ही साथ कदमताल करते हुए। किसी ने सच ही कहा है “नौकरी ना करी, और करी तो न , ना करी “।
ख़ैर! यह सब बातें हैं और बातों को क्या दिल से लगाना। बस, इन्हें हावी ना होने दें अपने ऊपर। इनके साथ जीना सीख लें। अगर इनके साथ आपने जीना सीख लिया तो समझ लीजिए आपने अपने जीवन की दुश्वारियों पर विजय प्राप्त कर ली। फ़िर ब्लड प्रेशर, शुगर, दिल का रोग , सर्वाइकल आदि जो वीआईपी रोग हैं ना, जो आपको हमेशा से डराते आए हैं वो भला आपका क्या बिगाड़ पाएंगे। वो ख़ुद आपसे दूरियां बना लेंगे। जब तक नौकरी है , मान के चलिए यह सब किसी न किसी रूप में चलता ही रहेगा।
इसका ज्योतिष शास्त्र से भी कोई लेना देना नही है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर आपका समय अच्छा भी चल रहा हो, तो भी यह आपको एक अदद इन्क्रीमेंट या फ़िर प्रोमोशन नहीं दिलवा सकता है। बस सब कहने सुनने और मन को दिलासा देने की बात है। प्रोमोशन आना है तो आएगा। अपने तय समय पर ही आएगा। हां, एक उत्सुकता तो होती ही है। थोड़ा थोड़ा डर भी लगता है। सामाजिक प्रतिष्ठा के साथ जो थोड़ी जुड़ी हुई होती है।
पता नहीं विजिलेंस ने क्या सोच रखा है। सरकारी नौकरी के बीते दिन एक चलचित्र की तरह आंखों के सामने से एक एक कर गुज़र रहे हैं । पता लगाने की कोशिश की जा रही है। कहीं कुछ फांस तो नहीं रह गई। इधर उधर से ताक झांक कर पता करने की नाकामयाब कोशिश ।
चलिए विजिलेंस ने तो अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनोसी) दे दिया पर क्या? अभी तो बहुत कुछ बाकी है मेरे दोस्त। मैच तो बिल्कुल आखिरी ओवरों तक जाना है। कहीं अंत में कुछ लोगों का वार्षिक कार्य मूल्यांकन (एसीआर) में कुछ कमी न रह जाए। फ़िर से वही कवायद। शुरुआत फ़िर से करनी होगी। और हां सब कुछ होने के बाद विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) तो बची हुई ही है। पता नहीं कब बैठेगी। खड़े खड़े थक नहीं जाती है।
चलिए अब सब कुछ ठीक ठाक हो गया। जानना दिलचस्प रहेगा। प्रोमोशन के बाद पोस्टिंग। हां कभी कभी नियमित तौर पर प्रशासनिक कारणों से स्थानांतरित भी किए जाते हैं। कभी कभी ये सब बाधाएं महसूस होती हैं। पर, प्रक्रिया है। नौकरी की अनिवार्यता है। सब को गुजरना पड़ता है। आज जो हमारी पोस्टिंग तय कर रहे हैं। मनपसंद पोस्टिंग या यूं कहें सुविधाजनक पोस्टिंग के लिए हम जिनके सामने अपने तमाम कोशिशों को रखते हैं, बड़ी विनम्रता से अपनी बातों को रखते हैं, उन्हें भी कहीं न कहीं इन्हीं बातों से दो चार होना पड़ता है। भाई सभी नौकरी ही तो कर रहे हैं।
भाई वाकई नौकरी तो हम करते हैं पर किसके लिए? शायद यक्ष प्रश्न है। एक पुरा का पुरा परिवार अगर पोस्टिंग ग़लत हो गई तो बिखर जाता है। ट्रांसफर और पोस्टिंग तो नौकरी की अनिवार्यता है। कभी प्रशासनिक कारणों से तो कभी नियमित तौर पर यह तो होता ही रहता है। होना भी चाहिए। पर, एक बात कम से कम एक बार बंदे से पूछ तो लीजिये । देखो भाई जाना तो है ही। बस सोच कर बताओ। यह विकल्प है तुम्हारे पास। बात मान लिजिए। क्या फ़र्क पड़ता है। कम से कम बेचारे का परिवार नहीं बिखरेगा। बच्चे परिवार का मतलब समझ पाएंगे। नौकरी तो बेचारा निभाएगा ही।
बेहतर आउटपुट के लिए परस्पर संवाद बहुत जरूरी है। पुरानी व्यवस्था को कहीं दूर कर मानव संसाधन विभाग की परिकल्पना कुछ सोच कर ही लाई गई थी। औपनिवेशिक व्यवस्था तो बहुत पहले ही खत्म हो गई थी।
चलिए अब रिटायरमेंट की ओर रुख करते हैं। यह तो जिस दिन आपने जन्म लिया मतलब नौकरी की शुरुआत की , रिटायरमेंट की तिथि तो उसी दिन तय हो जाती है कुछ अपवादों को छोड़कर। आप इस धरती पर आएं भिन्न भिन्न किरदारों को निभाने के लिए। सच्चाई है – आप एक उम्दा अभिनेता है। मान लीजिए। समय के साथ ही साथ आपके रोल में परिवर्तन होता रहता है। आश्रमों की बात याद करें एक रोल अदायगी ही तो थी।
रिटायरमेंट भी एक रोल अदायगी ही है। आप जिंदगी की दूसरी पारी खेलने जा रहे हैं। शिद्दत से खेलें इस पारी को। पहली पारी ने आपको अनुभव का भंडार बना दिया है। यह पारी आपकी सहज , स्वाभाविक और आत्मविश्वास से लबरेज होनी चाहिए । सब कुछ समय ही तो। इससे बड़ा और बेहतरीन निर्देशक कोई नहीं।आप चिंता छोड़ दें। यह आपसे बेहतरीन अभिनय करवा लेगा। सिर्फ और सिर्फ इसे ही मालूम है आपसे कब और कौन सा रोल करवाना है। फ़िर चिंता किस बात की। बस मस्त रहें, स्वस्थ रहें, आनंदित रहें।