रविवारीय: ज़िन्दगी को यूं ना निकलने दें
– मनीश वर्मा ‘मनु’
एक ख़बर जो अखबार की सुर्खियों में थी यह सोचने को मजबूर करती है कि ज़िन्दगी को यूं क्यों निकलने दें? ख़बर थी कि एक लड़के ने अपनी प्रेमिका के साथ हुई मामूली बहस के दौरान खुद को गोली मार अपनी जान ले ली।
अटपटा सा नहीं लग रहा है ? मुझे तो सहसा विश्वास ही नहीं हुआ। लगा, ऐसा नहीं हो सकता है।
क्यूं भाई, क्या हो गया है आजकल युवाओं को? इतने इमोशनल क्यों हो गए हो भाई! क्या मिला अपनी जान लेकर! क्या कुछ हासिल कर लिया आपने। ज़िन्दगी बड़ी ही अनमोल है! अगर आप इतने मजबूत हो कि अपनी जान देने में थोड़ा सा भी वक्त नहीं लगाते हो , तो भाई फिर तो सोचने वाली बात है। इतनी कायराना हरकत क्यूं। सिर्फ इतनी सी तो बात थी लड़की ने तुम्हारी बात नहीं मानी। उसे लेकर इतनी अधिकारत्मकता क्यूं ? क्या उसे यह अधिकार नहीं कि वह अपने तरीके से, अपने दिमाग से सोच विचार कर निर्णय ले सके। अपनी जान लेकर क्या मिला तुम्हें? अपने परिजनों के लिए जिंदगी भर का दुःख छोड़ गए। जब जब तुम्हारी याद आएगी एक टीस सी उठेगी। एक हूक बनकर रह जाएगी तुम्हारी यादें। सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी यादें। फिर, जिसके लिए तूमने जान दी, माना तुम उससे बेइंतहा प्यार करते थे। दिवानगी की हद तक। तभी तो ऐसा निर्णय लिया। कभी एक पल के लिए भी सोचा, तुम्हारे इस तरह जान देने के बाद उसका क्या होगा? तुम्हारी यह प्रेम लहरी पुलिसिया कार्रवाई में उलझ कर रह जाएगी। किसी को कुछ नहीं मिला। नाहक जान दे दी । अरे, अभी तो ज़िन्दगी शुरू हुई थी। बहुत आगे तक जानी थी।
खैर! तुम मानसिक रोगी थे। तुम्हारा मरना ही शायद बेहतर था। तुम अगर जिंदा होते तो शायद प्रतिदिन मरने और मारने की बातें करते। भावनात्मक रूप से असंतुलित व्यक्ति थे तुम।
अरे, जिंदगी का सफ़र तो थपेड़ों के समान होता है। तुम कब तक बर्दाश्त कर पाते? जो जिंदगी का एक छोटा थपेड़ा बर्दाश्त नहीं कर पाया! हवा के एक छोटे से झोंके ने पुरी दुनिया बदल दी। एक साथ कई लोगों की जिंदगी ख़त्म हो गई।
अब शायद, तुम्हारे सोचने का समय आ गया है। बतौर युवा पुरे समाज को, देश को तुमसे आशाएं हैं। तुम्हारे लिए अब भीड़ का हिस्सा बन उसके पीछे चलने का नहीं बल्कि आगे आकर नेतृत्व थामने का वक्त है। अपने आप को, अपनी भावनाओं को संतुलित रखने का वक्त है। राह चलते यूं जिंदगी कुर्बान न करें मेरे दोस्त। ज़िन्दगी से भागना तो कायर का काम है। इस सफर में समस्याएं तो आएगीं। पर, उन समस्याओं से भागा नहीं करते। मुकाबला करते हैं। जब कभी ऐसी समस्या आए जिसका हल आपके पास नहीं है तो अपनों से बातें करें। अपनी समस्याओं को उनके सामने रखें। हल जरूर निकलेगा। ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका हल नहीं है।
बस, ज़िन्दगी को यूं ना निकलने दें। बड़ी अनमोल होती है।
Excellent.
भावुक परंतु दिल के करीब अद्भुत लेखनी
टॉपिक के द्वारा युवा पीढ़ी को शानदार मार्गदर्शन ।
सचमुच में जिंदगी बड़ी हीं अनमोल होती है।
👌
निस्संदेह जीवन सिर्फ अनमोल ही नही अपीतु एक अविस्मरणीय यात्रा हे जिसके हर एक लिए अलग अलग मायने हे। केवल गंतव्य पर पहुंचने के बाद ही इस अलौकिक यात्रा का अवलोकन किया जा सकता हैं।
युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा पूर्ण लेख। आशा करे की इसका संज्ञान लेवे।
युवाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण संदेश। मेरा यह मानना है कि इस यह सिर्फ़ युवाओं पर ही नहीं बल्कि यह सभी उम्र के लोगो पर लागू है।
इसी तरह अपनी लेखनी का उपयोग समाज कल्याण हेतु करते रहें 🙏
नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक एक प्रेरक आलेख।
Uttam lekh…
Chod de saari duniya kisike liye
Ye munaasib nahin aadmi ke liye….
समाज के युवाओं को ऐसा संदेश देना अति आवश्यक है । उन्हें उनके दाइतवों और समाज के प्रति उनके कर्तव्यों का बोध कराना बहुत ही महत्वपूर्ण है । ज़िन्दगी को यूं ना निकलने दें एवं इस गीत की को सर्वदा याद रखें कि “रुक जाना नहीं तू कहीं हार के काँटों पे चलके मिलेंगे साये बहार के” । भावना रखिए किंतु दुर्भावना को हावी नहीं होने दीजिए । बहुत ही प्रेरक लेख ।