रविवारीय
– मनीश वर्मा ‘मनु’
मनु की बात
जब कोई व्यक्ति फंतासी में जीता है तो एक समय ऐसा आता है जब वह दिवास्वप्नों की दुनिया में चले जाता है, कल्पनाओं और फंतासी में खो जाता है। ऐसा चाहे अनचाहे अमूमन सबके साथ ही होता है। फंतासी है ही ऐसी चीज।
सपने तो जनाब नींद में आते हैं। जहां कुछ भी स्वप्न के रूप में आ सकता है। पर, यह तो खुली आंखों का सपना है। आप इसमें खो जाते हैं। इसमें आप वही देखते हैं जो आप देखना चाहते हैं। आप ही इसके निर्माता निर्देशक और पटकथा लेखक भी होते हैं।
ऐसा ही एक सपना मनु ने भी देखा है। खुली आंखों का सपना। दिवास्वप्न कह सकते हैं। हां! दिवास्वप्न ही तो है।
नींद आंखों से कोसों दूर होती है। आप बस अगर बिस्तर पर हैं तो आंखें बंद कर सिर्फ करवटें बदल रहे होते हैं, या फ़िर आप बेख्याली में डूबे होते हैं और धीरे धीरे कल्पनाओं के सागर में चले जाते हैं ।आप उसे अपने मुताबिक जैसा आप चाहते हैं बिल्कुल वैसा ही परवान चढ़े देखते हैं।
अब मनु तो किसी भी क्षेत्र में कोई ऐसा लब्धप्रतिष्ठित नाम तो है नहीं और ना ही सामाजिक तौर पर पहचाना जाने वाला कोई बड़ा सा नामचीन व्यक्ति। वो तो बेचारा एक आम आदमी है। कैटल क्लास का एक सदस्य। उसे तो रोटी दाल की जद्दोजहद से फुरसत मिले तब तो कुछ सूझे।
बाजारवाद के इस दौर में जो प्लस प्वाइंट्स होने चाहिए, वो तो है ही नहीं उसके पास। फ़िर बेचारा मनु क्या करे । बेचारा मनु चौराहे पर खड़ा है। किधर जाए, कुछ पता नहीं।
अब तो उसके पास एक ही रास्ता बचा और वो है बेख्याली में कल्पनाओं के विस्तृत समंदर में गोते लगाए और अपने आप को फंतासी की दुनिया में धकेल दे। छोड़ दे अपने आप को। कहीं ना कहीं किनारा तो मिलेगा ही। थपेड़ों से लड़ने से फायदा नहीं। आखिरकार सहारा तो चाहिए। और जब तक सहारा नहीं मिलता तो जीवन जीने का मकसद कैसे पुरा होगा। और यह भी नहीं हो सकता कि मोर सिर्फ और सिर्फ जंगल में नाचे। उसे तो सार्वजनिक तौर पर नाचना है। अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना है। लोगों के बीच रहना है उसे।
अब लीजिए। सभी के दिन फिरते (बदलते) हैं। तो बेचारे मनु का क्या कुसूर। उसने तो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा है। उसके भी दिन फिरे ।
कल्पनाओं के सागर में गोते लगाते हुए मनु के मन की बात “साहब” ने सुन ली। साहब ने अब बातों ही बातों में मनु की चर्चा कर दी। दो चार शब्द मनु के बारे में कह दिया। साहब ने मनु के बारे में दो चार शब्द क्या कह दिया , मनु तो रातों रात प्रसिद्ध हो गया। यही तो चाहता था मनु। अब तो मनु के बल्ले बल्ले। पांव उसके ज़मीन पर नहीं पड़ रहे हैं। अब तो उसके दिन वाकई फ़िर गए। जिंदगी ही बदल गई उसकी। जो मनु पहले एक खोटे सिक्के के समान था। अस्तित्व विहिन, पहचान विहिन। हर किसी के लिए एक प्रयोग की वस्तु। हर वक़्त उसे अपनी उपयोगिता सिद्ध करनी होती थी।
जी हां! बहुत सुधार है ! काम अच्छा है! अक्सर ऐसा सुनने वाला बेचारा मनु।
उम्र के लगभग आधे पड़ाव के बाद भी अगर किसी को अपनी सार्थकता सिद्ध करनी पड़े ? फ़िर तो भगवान ही मालिक है।
तो वाकई मनु के दिन फ़िर गए। साहब ने मनु के मन की बात सुन ली और उसे अपने मन की बात में शामिल जो कर लिया। मनु के तो मानो जैसे सारे ख़्वाब ही पुरे हो गए। सारे जहां में एक सैलाब जैसा उमड़ पड़ा। अचानक से जैसे मनु एक सेलेब्रिटी हो गया। लोगों की बधाईयां और शुभकामनाओं का दौर ख़त्म ही नहीं हो रहा था। मिलने जुलने वालों का तांता लगा हुआ था। प्रेस वाले एक फ़ोटो के लिए पंक्तिबद्ध खड़े थे। पत्रकारों ने तो जैसे सोच ही लिया था। पूरा इंटरव्यू करना ही करना है। मनु बेचारा कुछ समझ नहीं पा रहा है। आखिरकार यह हो क्या रहा है। वो अपने आप को आइने में देख समझने की नाकामयाब कोशिश कर रहा है। समझ ही नहीं पा रहा है। अचानक से जैसे उसकी दुनिया बदल सी गई है। बार बार वह अपने पैरों को जमीन पर टिका कर सच्चाई से अपने आप को अवगत कराने की कोशिश में लगा है।
तभी दरवाजे की घंटी बजती है। घंटी की आवाज़ से अचानक मनु की तंद्रा भंग होती है। सोया तो वो था नहीं। नींद कहां उसे आई थी। बस आंखें बंद करके दिन में सपने देख रहा था। कल्पनाओं का जो सैलाब उमड़ा पड़ा था।अब अचानक से थम सा गया। फंतासी से अब वो बाहर आ गया था। फ़िर से मेरा मनु, आप सभी का मनु वही मनु था।
सुबह से शाम दाल रोटी की मशक्कत में लगा हुआ। जिंदगी की जद्दोजहद के साथ कदमताल करता हुआ।यही तो हक़ीक़त है उसके जिंदगी की।
मनु के मन की बात मन में ही दबी रह गई। साहब के मन की बात तो कहीं दिवास्वप्न थी। कल्पनाएं थी मनु की। कुछ वक़्त के लिए मनु फंतासी की दुनिया में खो गया था। उसके मन की बात सिर्फ और सिर्फ फंतासी थी और कुछ नहीं बस फंतासी।
अद्भुत लेखनी मनोभावों का अद्भुत संप्रेषण हृदय से आपका आभार
धन्यवाद छवि जी
खूब
अति सुन्दर और यथार्थपूर्ण अभिव्यक्ति ।
फंतासी भी क्या बुरा है , कुछ देर के लिए ही सही हम सिरमौर्य की तरह जी तो लेते हैं ।