रविवारीय
– मनीश वर्मा ‘मनु’
मैं अक्सर लोगों को यह कहते हुए पाता हूं “अभी मीटिंग में हूँ ” या फ़िर “मीटिंग से लौट कर बात करता हूँ “, वगैरह वगैरह। आपका भी कभी न कभी, कहीं न कहीं इससे पाला जरूर पड़ा होगा। सच कहूं तो व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए बड़ा ही अटपटा सा शब्द है। आपको ऐसा नहीं लगता है, यह बहुत ही सपाट, नीरस और औपचारिक सा शब्द है “मीटिंग” ?
अरे भई ! जहां कुछ लोग मिल गए, कुछ बातें करनी है तो बस आवाज़ लगा दिया। ” अरे भाई जरा दो चार चाय भेजना ” । अगर घर पर हों तो, ” अजी सुनती हो, जरा दोस्तों के लिए चाय तो लाना ” । और अगर ” अजी ” का मिज़ाज ठीक हुआ तो साथ में पकौड़ियां भी आ जाती है। इतने पर ही तो बात बन जाती है।
कॉफ़ी ने तो बस अभी अभी जन्म ही लिया है। अभी थोड़ा लंबा समय तय करना है उसे।
हां! कभी कभी अगर थोड़ी महत्वपूर्ण और गंभीर बात करनी है तो चाय की संख्या बढ़ जाती है। चाय दो चार पेग ज्यादा हो जाती है। पर इस पेग की खासियत है। एक ख़ास किस्म का नशा है इसमें। आपने खाना नहीं खिलाया, चलेगा । पर, यार उसने तो ” चाय ” के लिए भी नहीं पूछा। बात दिल से लग जाती है। बंदा इमोशनल हो जाता है।
भाई , कुछ शब्द हैं ना वो भारत, भारत की संस्कृति और यहां की आवोहवा, मौसम और मिज़ाज के साथ मेल नहीं खाती है। कनेक्ट करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। बुरा मानों या भला यह शब्द आपको राजकीय विद्यालयों के शब्दकोष में ढूंढ़े नहीं मिलेगा। यह तो पब्लिक स्कूल में बहुतायत से पाया जाता है । हालांकि यह विवाद का विषय हो सकता है। पर , अभी तक किसी ने इसपर अपनी प्रतिक्रिया खुल कर व्यक्त नहीं किया है। वरना टी आर पी के बढ़ने में देर कहां थी। खैर! यह द्वंद तो चलता ही रहेगा।
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हमारे लिए तो लोगों से खुलकर मिलना जुलना ही मीटिंग है। इसे हम बड़े प्यार, आदर और सम्मान से “ बैठक ” कहते हैं । चाय तो बस एक बहाना है। टाइम पास करने का जरिया है। लोगों के साथ खुलकर बैठ लिए। एक दूसरे के साथ पारिवारिक और सामाजिक बातें कर लिए। दोनों ही जगह जहां मौका मिला टांगें अड़ा दी। पूरे विश्व भर की राजनीति वहीं बैठे बैठे निपटा दिए। बस हो गई अपनी मीटिंग यानी कि हमारी “बैठक” । क्यूं हर वक़्त यह सपाट और नीरस से सरकारी और औपचारिक शब्द के महाजाल में उलझें?
हां ! एक बात तो भूल ही गए! अपने कई चरणों यथा – स्काइप, ज़ूम और न जाने क्या क्या से गुजरता हुआ शब्द “मीटिंग” अब अपने एक नए वैरिएंट के साथ सामने आ गया है। बड़ा ही अजीब वैरिएंट है यह। तमाम वैक्सिनेशन के बाद भी जाने का नाम ही नहीं ले रहा। पता नहीं ‘बूस्टर डोज’ के बाद शायद कुछ बदलाव आए।
यह नया वैरिएंट है ‘वेबेक्स मीटिंग’। बिल्कुल वन वे ट्रैफिक है भाई। रूबरू मिटिंग में तो ध्यान को बंटाने वाले बहुत तत्व थे, पर यहां तो भगवान बस आपका ही सहारा है। रक्तचाप के मरीज बढ़ते हुए पाए जा रहे हैं। भगवान करें यह वैरिएंट अब आगे मयूटेट न करे।