महाबलेश्वर: महाबलेश्वर के पंचगंगा मंदिर में 15 मई को आयोजित एक सभा में देशभर से आए लोगों ने भारत की नदियों को पुनर्जनन करने और उनकी सांस्कृतिक महत्ता को फिर से स्थापित करने का संकल्प लिया। इस सभा में कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से आए लोगों ने ‘आओ नदी को जानें’ अभियान की रूपरेखा तैयार की। यह अभियान 28 मई से शुरू होकर 5 जून, 2025, गंगा दशहरा तक चलेगा, जिसमें नदियों के किनारे यात्राएं आयोजित होंगी। इन यात्राओं का उद्देश्य नदियों और भारतीय संस्कृति के गहरे रिश्ते को समझना, उनकी पवित्रता को बहाल करना और समाज को उनकी जिम्मेदारी याद दिलाना है।
भारत में नदियां केवल जल स्रोत नहीं, बल्कि सभ्यता और संस्कृति की आधारशिला हैं। कुछ दशक पहले तक, जेष्ठ मास में लोग नदियों के तटों पर इकट्ठा होकर उनकी सफाई करते थे, ताकि वर्षा के मौसम में गंदगी नदियों में न जाए। यह परंपरा न केवल नदियों को स्वच्छ रखती थी, बल्कि भारतीय ज्ञानतंत्र का हिस्सा थी, जिसमें प्रकृति और संस्कृति का सामंजस्य था। इस ज्ञान के कारण ही भारत को दुनिया का गुरु माना जाता था। लेकिन अंग्रेजी हुकूमत और आधुनिक शिक्षा के प्रभाव में यह ज्ञान किताबों तक सिमट गया, और नदियों के प्रति हमारी जिम्मेदारी धूमिल पड़ गई। नतीजा यह हुआ कि हमारी नदियां प्रदूषित होकर कचरा ढोने वाली मालगाड़ी बन गईं।
‘आओ नदी को जानें’ अभियान इसी खोए हुए ज्ञान को व्यवहार में लाने की कोशिश है। इसके तहत लोग अपने-अपने क्षेत्रों में नदियों के किनारे श्रमदान करेंगे। महाराष्ट्र में 117 नदियों पर ‘चला जानूया नदीला’ कार्यक्रम चल रहा है, जिसमें नदियों की स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जा रही है। आंध्रप्रदेश में सत्यनारायण बुलिसेट्टी ने 9 मई को हंसलम देवी समुद्र किनारे से शुरू होकर महाबलेश्वर तक कृष्णा नदी की यात्रा शुरू की। कर्नाटक में डॉ. राजेंद्र पोद्दार ने कुडलसंगम से यात्रा शुरू की, जबकि हैदराबाद में वी. प्रकाश राव और ओडिशा में सुदर्शन दास ने कौनासोाना से वैतरणी नदी की यात्रा शुरू की। इसी तरह, अशोक ठक्कर ने कोना और सोने नदी की यात्राएं अपनी टीम के साथ शुरू की। ये यात्राएं नदियों के मौजूदा हालात को समझने और उन्हें पुनर्जनन करने का प्रयास हैं।
पिछले पांच दशकों में तरुण भारत संघ ने 23 छोटी नदियों को पुनर्जनन करने का अनुभव हासिल किया है। संगठन ने बाढ़ और सूखे से मुक्ति के लिए भूजल पुनर्भरण पर काम किया, जिसमें वर्षा जल को धरती में संग्रहित करने की अनूठी तकनीक अपनाई गई। यह तकनीक नदियों को सदानीरा बनाने में कारगर साबित हुई। इस स्वर्ण जयंती वर्ष में संगठन का लक्ष्य नदियों को फिर से जीवंत करना है। मैंने स्वयं अरवरी नदी की यात्रा कर रहे हैं, जहां 1995 में नदी को पुनर्जनन करने वाले लोगों को सम्मानित किया गया। चंबल क्षेत्र की सैरनी नदी को पुनर्जनन करने वाले 63 लोगों को भी सम्मानित किया गया। नेहरो, तेवर, बदह और भवानी जैसी छोटी नदियों की यात्राएं संगठन के कार्यकर्ता रणबीर और मुकेश जैसे साथी मिलकर कर रहे हैं।
30 मई 2025 को भीकमपूरा के तरुण आश्रम में स्वर्ण जयंती समारोह होगा, जिसमें गर्मी के कारण केवल कुछ पुराने साथी शामिल होंगे। संगठन का मानना है कि नदियों का पुनर्जनन जल संरक्षण से ही संभव है। इसके लिए स्थानीय सामग्री और भू-सांस्कृतिक विविधता को ध्यान में रखकर जल संरचनाएं बनाई जाती हैं। ये संरचनाएं न केवल प्रभावी होती हैं, बल्कि लंबे समय तक टिकाऊ भी रहती हैं। उदाहरण के लिए, स्थानीय सामग्री से बनी संरचनाएं पर्यावरण के अनुकूल होती हैं और क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखती हैं।
यह अभियान केवल नदियों की सफाई तक सीमित नहीं है। यह भारतीय समाज को उस ज्ञान से जोड़ने की कोशिश है, जो कभी हमें दुनिया का गुरु बनाता था। नदियों का पुनर्जनन केवल पर्यावरणीय सुधार नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता और संस्कृति का पुनर्जनन है। जब नदियां जीवंत होंगी, तभी हमारी सांस्कृतिक धरोहर भी समृद्ध होगी। यह यात्रा हमें नदियों के प्रति अपनी मानवीय जिम्मेदारी को फिर से अपनाने का अवसर देती है, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां स्वच्छ और जीवंत नदियों के साथ एक समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का उपहार पा सकें।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक।

