
चम्बल में पुनर्जीवित सैरनी नदी का एक दृश्य
वर्ष 1974 -75 में में जौरा, मध्यप्रदेश में डॉ एसएन सुब्बाराव और पी वी राजगोपाल ने बागियों के समर्पण के लिए काम पूरा किया था। यही काल था जब मैं बागपत के पास स्थित अपने मूल गांव डौला को बाढ़ मुक्त करने की तैयारी कर रहा था। इसी काल में अहिंसा की कोख से जन्मे स्वयं सेवी संस्थान तरुण भारत संघ ने जयपुर विश्व विद्यालय में अग्नि पीड़ितों की सेवा का काम किया था। इस काम को पूर्ण होने के बाद, इसने सुखाड़ से उजड़े लोगों का जल संरक्षण के कामों में लगाकर पुनर्वास किया। साथ ही साथ बहुत सारे अलग-अलग गांव में ग्राम समुदायों के साथ जैसे बंजारे, सपेरे, गाडूलिया लुहार और कुमहरो के साथ रोजगार से पुनर्वास का काम किया।
वर्ष 1985 में तरुण भारत संघ ने अलवर जिले के गोपालपुरा गांव में सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलकर, अपने काम की डिजाइन तैयार की। इस डिज़ाइन में जिनके लिए काम करना है, उन्ही से काम सीखना मुख्य था। सबसे पहले गोपालपुरा गांव में सुखाड़ मुक्ति का काम शुरू किया था। सुखाड़ मुक्ति के काम से गोपालपुरा गांव पानीदार बन गया। इसके बाद आसपास के गांव में यह काम बहुत तेजी से फैल गया। धीरे – धीरे इस काम की सुगंध राजस्थान,चंबल में भी पहुंच गई और फिर चंबल में इस क्षेत्र की बागी की पत्नी भगवती का तरुण भारत संघ के साथ मिलकर जल संरक्षण का काम शुरू करवाया। और उसने अपने पति की बंदूक छुड़वाकर, फरारी से मुक्ति दिलाकर, जल संरक्षण के काम में लगा दिया। यह सारे काम तरुण भारत संघ की सोची समझी डिजाइन थी। तरुण भारत संघ ने कभी भी बागियों को बंदूक छोड़ने के लिए अपनी तरफ से नहीं कहा। बंदूक छुड़वाने के लिए तरुण भारत संघ ने वातावरण तैयार किया व जल संरक्षण का काम और इनके पोषण की व्यवस्था करके, इनको अपने पैरों पर खड़े करके, काम करना सिखाया।
धीरे – धीरे बदलाव की हवा राजस्थान के चंबल क्षेत्र में भी बागियों के बीच चल पड़ी। इस हवा ने वर्ष 2025 तक 6 हजार से ज्यादा बागियों को खेती करना सिखा दिया। जिनके पास एक जानवर नहीं था, अब उनके पास सैकड़ो भैंसे हैं। जिनके पास सेर भर सरसों या गेहूं पैदा नहीं होता था, उनके पास सैकड़ो क्विंटल गेहूं और सरसों है। एक तरह से जीवन को बदलने वाली गहरी लहर चंबल के क्षेत्र में बदलाव ले आई। चंबल को पानी के प्रेम की लहर ने बदल दिया। यह बदले लोग चंबल में पानी का संरक्षण करके, बड़े शांतिमय समृद्ध किसान बन रहे है। अब 6 हजार से अधिक लोगो ने अपना सहजता से बागीपन छोड़कर, शांतिमय समृद्ध किसान बनने का रास्ता पकड़ लिया है।
चंबल में बदलाव के बीज संत विनोबा भावे ने वर्ष मई 1960 में बोए थे। इन बीजों को बोने की तैयारी प्रसिद्ध बागी मानसिंह के पुत्र तहसीलदार सिंह ने नैनी जेल से बाबा को पत्र लिखकर आमंत्रित किया था। इन्होने कहा था कि, “अब चंबल में कुछ बागी अपने हथियार छोड़ने के लिए तैयार है। उन्हें कोई आप जैसी अध्यात्मिक शक्ति आकर ;शांति के रास्ते पर लगाएगी तो बड़ा कल्याण होगा।”
इन्ही के पत्र से बाबा विनोबा भावे ने अपने कार्यकर्ताओं को इस काम में लगाया। इनके पत्र के बाद यदुनाथ सिंह कार्यकर्ता को इस काम में लगाया।
विनोबा भावे के सामने मई 1960 में 20 खतरनाक बागियों ने अपने हथियारों का समर्पण किया था। उस वातावरण को और तेज करने में 12 वर्ष लगे । 14 अप्रैल 1972 को जौरा, मध्यप्रदेश में लोकनायक जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में महात्मा गांधी की मूर्ति के सामने अपनी बंदूकों को समर्पित किया। इसके बाद यह सिलसिला और दो-तीन बार समय-समय पर चलता रहा।
वर्ष 1976 में तालाब शाही पर राजस्थान में भी बागियों का समर्पण हुआ था। बहुत ही चमत्कारी बात यह है कि, यह बागी लंबे समय के बाद जेल से छूटकर बिना हथियारों के जब वापस आए, तो इन्हे समाज ने सम्मानपूर्वक स्वीकार किया और यह भी समाज में शांति से रहकर, एक से एक अच्छे काम करते रहे। इन्हे बहुत सारे पशुओं को चराने, खेती करने के लिए ग्वालियर और उसके आसपास जमीनें भी दी गई।
इन सब कामों का संचालन बाद में डॉ एसएन सुब्बाराव ने जौरा, महात्मा गांधी सेवा आश्रम बनाकर, संचालित किया और बाद में काम में पी वी राजगोपाल भी जुड़ गए। यह काल था जब चंबल में खूंखार बागियों के हथियार समर्पण के बाद, समाज उस काम में लग गया। लेकिन बहुत सारे क्षेत्र में जब यह वापस लौट के आए, तो मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में जहां पानी था, वहां तो यह लोग खेती में लग गए। लेकिन राजस्थान का एक बड़ा हिस्सा चंबल का जो इन बागियों की नर्सरी निर्माण का एक बड़ा क्षेत्र बन गया था। वहां पानी की कमी के कारण लूटपाट, हत्या, चोरी, डकैती, अपहरण जैसे धंधे में लगे हुए थे।
यहां वर्ष 1988 में तरुण भारत संघ ने पानी का का काम बागियों की महिलाओ के साथ मिलकर शुरू किया था। महिलाएं जो लाचारी, बेकारी और बीमारी से ग्रस्त थी, यहां तरुण भारत संघ के कार्यकर्ताओं ने मिलकर पोषण और रोजगार के काम शुरू किए। इनमे सबसे खास काम बागियों की जमीन पर पानी का प्रबंधन करना है । इस पानी के प्रबंधन की शुरुआत करते ही जगदीश नभेरा और निर्भय सिंह जैसे बागियों को अदालत से मुक्ति मिलने के बाद, इन्होंने बंदूक छोड़कर तरुण भारत संघ के साथ मिलकर पानी का काम शुरू किया। अपराधिक काम छोड़कर शांतिमय जीवन जीने लगे।
तरुण भारत संघ की चंबल के बागियों के अपराधिक गति विधियों से समाधान का सरल रास्ता बागियों की अदालत में उपस्थिति कराकर, मुक्ति दिलाने का काम किया। इन सभी बागियों के जीवन में धीरे-धीरे न्यायपालिका और तरुण भारत संघ पर विश्वास बना और इनमें बदलाव की हवा बहने लगी। अब इस बदलती हवा ने सम्पूर्ण चंबल क्षेत्र में शांति और सद्भावना बना दी है। तरुण भारत संघ अपनी पूरी ऊर्जा के साथ इस क्षेत्र के जल संरक्षण और नदी पुनर्जीवन के काम में अब भी दिन रात लगा हुआ है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक और तरुण भारत संघ के चेयरमैन हैं।