मुकेश के सौवें जन्मदिन पर भावभीनी श्रद्धांजलि
– मनीश वर्मा ‘मनु’
हिंदी सिनेमा के जब सर्वकालीन महान गायकों की बात हो रही हो तो जुबां पर मुकेश चन्द्र माथुर जिन्हें हम सभी मुकेश के नाम से जानते हैं उनका भी नाम आना स्वाभाविक है। भारतीय फिल्म जगत में बहुत सारे गायक हुए हैं। सभी एक से बढ़कर एक। सभी बहुत लोकप्रिय। अपनी अदाकारी भरी मस्तमौला अंदाज़ में गायकी के लिए मशहूर किशोर कुमार , मखमली और रेशमी आवाज के मालिक तलत महमूद। शास्त्रीय रागों पर आधारित या फिर तेज थिरकते संगीत वाले गीत हो, हर तरह के गानों को आसानी से गाने वाले महान गायक मोहम्मद रफी साहब या फिर मन्ना डे को कौन भूला सकता है? एक से बढ़कर एक गाने गाए इन लोगों ने। सभी महान गायक थे और उनमें कौन ज्यादा बेहतर था यह आज तक उनके असंख्य फैंस के बीच एक बहस का मुद्दा है पर फिर भी, मुकेश की बात ही कुछ और थी। जब गाते थे तब ऐसा लगता था मानो बिल्कुल दिल से आवाज निकल रही हो। अपनी गायकी में डूब से जाते थे मुकेश। उनके गाने के बोल ऐसा लगता था कि गीतकार ने सिर्फ और सिर्फ उन्हीं के लिए लिखा हो। गायक कम फिलोस्फर ज्यादा। उनके गाए हुए हर गाने में एक संदेश छुपा रहता था। कृष्ण के गीता की तरह उनकी गायकी थी। बिल्कुल शांति से कल कल बहती हुई नदी की तरह। उनकी आवाज़ की पहचान तो वॉइस ऑफ़ द मिलेनियम के तौर पर भी है।
“सजन रे झुठ मत बोलो , खुदा के पास जाना है” बस थोड़ा गुनगुना कर देख लें मर्म समझ में आ जाएगा। पत्नी के सामने गुनगुना दें “जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे” आज़ भी उतना ही प्रासंगिक है। तब की तो बात ही कुछ और होगी। “कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे, तड़पता हुआ जब कोई छोड़ दे” इस गाने के बोल और मुकेश की दर्द भरी आवाज को सुनकर भला कौन संजीदा हुए बिना रह सकता है? किसके आंखों की कोर गीली नहीं होंगी?
“कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है” क्या अंदाज थे उनके गाने के। क्या युवा, क्या बुजुर्ग किसको उन्होंने अपनी आवाज का दिवाना नहीं बनाया? उनके दिल की गहराइयों से निकले रोमांटिक गानों की तो बात ही कुछ और थी।
फिल्म आस का पंक्षी का वो गीत “तुम रूठी रहो, मैं मनाता रहूँ ” काश वो आवाज़ फिर से रूबरू सुनने को मिलती। फिल्म मिलन का वो मशहूर गीत “सावन का महिना, पवन करे सोर ” हो या फ़िर फ़िल्म हिमालय की गोद का वो बेहतरीन गीत “ चांद सी महबूबा हो मेरी“। किस किस का नाम लूँ, किस किस को छोड़ूं? पूरी पुस्तक बन जाएगी पर मुकेश की गायकी के जलवे खत्म नहीं होंगे।
मुकेश 10 बच्चों में से छठी संतान थे और बचपन से ही उनका रूझान संगीत की ओर था। जब मुकेश महज 17 साल के ही थे तो उनकी प्रतिभा को पहचान उनके रिश्तेदार और उस ज़माने के मशहूर एक्टर मोतीलाल को बम्बई ले आये थे और उनका संगीतकारों से परिचय करवाया ।
फिर तो जो जलवा 1945 में आई फ़िल्म पहली नज़र में गाए उनके पहले गीत “दिल जलता है तो जलने दे” से शुरू हुआ वो आज तक बदस्तूर जारी है। 27 अगस्त 1976 को अमेरिका के डेट्रॉइट में ह्रदय गति रुकने से इनकी हो गई थी मौत पर ऐसा लगता ही नहीं कि वो हमारे बीच नहीं हैं।
बहुत से कलाकारों को उन्होंने अपनी आवाज दी। साठ के दशक में उस वक्त के मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार के लिए भी उन्होंने बहुत से गाने गाए। पर राजकपूर की तो वे आवाज थे। उनकी मृत्यु पर राज कपूर का कहना “मेरी तो आवाज ही चली गई” ।
22 जुलाई उनकी जन्मतिथि है। आज अगर वो होते तो उनके जीवन की सेंचुरी होती। पर, नहीं वो तो महज 53 साल की उम्र में ही इस नश्वर संसार को छोड़ गए थे। गायकी में फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार का मिलना सर्वप्रथम उनसे ही शुरू हुआ था। उनके गाए हुए गीत “सब कुछ सीखा हमने, ना सीखी होशियारी” के लिए पहला फिल्मफेयर पुरस्कार 1959 में उन्हें दिया गया था। सन 1974 में “कई बार यूं ही देखा है” फ़िल्म रजनीगंधा का वो गीत याद करें। इस गाने के लिए उन्हें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार दिया गया था। उन्होंने कई अभिनेताओं के लिए पार्श्व गायन किया उनकी तुलना किसी से भी नहीं हो सकती है। अतुलनीय हैं वो।मैं बहुत छोटा था जब उनकी मृत्यु का समाचार रेडियो के माध्यम से प्रसारित हुआ था। सभी सन्न रह गए थे। पता नहीं उनकी गायकी में क्या कशिश थी। उनके गीतों के बोल सुनकर मैं बड़ा हुआ हूँ। आज भी जब गुनगुनाने की बात आती है तो बड़ी सहजता से मैं उनके गाने गुनगुनाता हूँ। उनके गाने के बोल इतने सहज और जीवन के दर्शन से भरे होते हैं ऐसा लगता है कि वो बोल एक आम इंसान के जीवन से जुड़े हुए हैं। उन्होंने पार्श्व गायन के क्षेत्र में इतनी बड़ी लकीर खींच दी है कि उसे छोटी करना लगभग नामुमकिन सा लगता है। अब तक तो नहीं हुआ। आगे नहीं कह सकते।
“जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां” जीवन दर्शन से भरा हुआ मुकेश की आवाज में एक नायाब गीत।
उनकी सौवें जन्मदिन पर बहुत से लोगों ने अपने अपने तरीके से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित किया।उनके परिवार जनों ने 22 जुलाई 2023 को दक्षिण मुंबई के मुकेश चौक पर उनके फैंस के बीच उनकी 100वीं जयंती मनाई। वाकई वो हकदार हैं इसके। उन्हें भावपूर्ण और विनम्र श्रद्धांजलि।
मेरे प्रिय गायकों में एक ।इनकी एक अलग ही आवाज थी और ये हमेशा अपनी सीमा मे रह कर गाते थे।मन्ना डे मेरे सबसे प्रिय गायकों में थे जिनके गायन मे शास्त्रीय संगीत की पकङ मन को तरंगीत कर देती थी।परन्तु मोहम्मद रफ़ी,किशोर कुमार,तलत महमूद,हेमन्त कुमार के समकालीन रहते हुए भी मुकेश जी के गायन मे एक अलग बात थी।