कविता
– पारस प्रताप सिंह*
कितना सुंदर लगता सब कुछ
कितना सुंदर लगता सब कुछ,
जब बारिश की बूँदे और अविरल-निर्मल लहरें हों,
हरे – भरे खेत और खलियान हों,
स्वच्छ हवा, स्वच्छ पानी हों और आसमान नीला हो,
पत्ती, फूल, पशु-पक्षी और कलियाँ हों,
तितली, भंवरों, हरियाली से भरी गलियां हों,
मुस्कुराते – खिल खिलाते चेहरे हों,
सूरज की चमक और चांद की शीतलता हो,
काश! ऐसा होता तो, कितना सुंदर लगता सब कुछ।।
निर्झर झरना झर – झर बहता हो,
मुझसे अपनी आप बीती सुनता हो,
ऊपर से नीचे जाता हो,
पाषाणों से टकराता हो,
उछल उछल कर , खेल खेल में,
प्रकृति का साथ निभाता हो,
सब की प्यास बुझाता हो,
काश! ऐसा होता तो कितना सुंदर लगता सब कुछ।।
*पर्यावरण कार्यकर्ता