नई दिल्ली: भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) ने सिंधु जल संधि को पूर्ण रूप से निरस्त करने का सर्वसम्मत प्रस्ताव आज राजधानी के पूसा स्थित एपीजे सिंधु हॉल में आयोजित एक संवाद कार्यक्रम में पारित किया और केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान को एक ज्ञापन सौंपकर भारत सरकार से जल संसाधनों की स्वायत्तता सुनिश्चित करने हेतु कठोर निर्णय लेने की मांग की।
यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक ने स्पष्ट किया कि यदि देश की नदियों का पानी शत्रु राष्ट्र उपयोग करता है, तो यह राष्ट्रीय सम्मान के लिए अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा, “देशहित में किसान भारत सरकार के हर फैसले के साथ हैं, किंतु जल संसाधन की स्वायत्तता पर सरकार को कठोर निर्णय लेना होगा।” यह संवाद जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 निर्दोष नागरिकों के नरसंहार के पश्चात् भारत सरकार द्वारा सिंधु जल संधि के निलंबन और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के प्रारंभ के संदर्भ में आयोजित किया गया, जिसमें किसानों ने सरकार के इन ऐतिहासिक कदमों का पूर्ण समर्थन व्यक्त किया।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा उठाए गए कदमों ने पाकिस्तान पर गहरा प्रभाव डाला है। संधि निलंबन के अतिरिक्त, भारत ने पाकिस्तान के साथ निर्यात और वीजा पर रोक तथा राजनयिक उपस्थिति में कमी जैसे प्रतिबंध लागू किए, जो सीजफायर के बावजूद यथावत हैं। हालांकि, पाकिस्तान के साथ सीजफायर समझौते ने भारत के प्रतिकारी और प्रभावी सैन्य अभियानों को अस्थायी रूप से रोक दिया, जिससे पाकिस्तान को कुछ राहत मिली, किंतु उसकी समस्याएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं।
सबसे बड़ी चुनौती सिंधु जल संधि के निलंबन से उत्पन्न हुई है, जिसके कारण पाकिस्तान के हालात दिन-प्रतिदिन बिगड़ रहे हैं। भारत अब नदियों के जल को अपनी इच्छानुसार रोक और छोड़ रहा है, जिससे पाकिस्तान की कृषि, पेयजल, और आर्थिक व्यवस्था गंभीर संकट का सामना कर रही है। सीजफायर का निर्णय कई अंतरराष्ट्रीय कारणों से प्रभावित था, और पाकिस्तान के इस मुद्दे पर पीछे हटने के कारण भारत को इसे स्वीकार करना पड़ा। फिर भी, भारत संधि निलंबन से प्राप्त अनुकूल परिस्थितियों का स्वाभाविक रूप से लाभ उठाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।
इस संवाद में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, और उत्तर प्रदेश से सैकड़ों किसानों ने भाग लिया। भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश सिंह चौहान, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष महेंद्र सिंह रंधावा, राष्ट्रीय महासचिव धर्मेंद्र मलिक, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मांगेराम त्यागी, राष्ट्रीय सचिव उम्मेद सिंह, बाबा श्याम सिंह मलिक, आगरा मंडल अध्यक्ष राजकुमार तोमर, विपिन त्यागी, सुधीर पंवार, रामपाल जाट, हरपाल डागर, और सलविंदर सिंह कलसी सहित प्रमुख किसान नेता उपस्थित रहे। संवाद को अशोक बालियान, राजेश सिंह चौहान, धर्मेंद्र मलिक, सलविंदर सिंह कलसी, बाबा श्याम सिंह, रामपाल जाट, और हरपाल डागर ने संबोधित किया, जिन्होंने राष्ट्रीय हितों और किसानों के कल्याण के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।
सिंधु जल संधि, जो 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित हुई थी, सिंधु बेसिन की छह नदियों—रावी, ब्यास, सतलुज (पूर्वी प्रवाह) और सिंधु, झेलम, चिनाब (पश्चिमी प्रवाह)—के जल का बंटवारा करती है। इस संधि के अंतर्गत पश्चिमी नदियों—सिंधु, झेलम, और चिनाब—का 80% जल पाकिस्तान को आवंटित था, जबकि भारत को मात्र 19.5% जल प्राप्त होता था, जिसमें से भारत केवल 90% उपयोग करता था। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के पश्चात् भारत ने संधि को निलंबित कर इन नदियों के जल को नियंत्रित करना प्रारंभ किया। भारत ने न केवल जल प्रवाह को रोका, बल्कि बांधों में जल स्तर बढ़ने पर बिना पूर्व सूचना के उसे छोड़ना भी शुरू किया। परिणामस्वरूप, पाकिस्तान की कृषि, पेयजल आपूर्ति, और अर्थव्यवस्था गंभीर संकट का सामना कर रही है। पाकिस्तान की एक बड़ी आबादी का जीवन और उसकी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा सिंधु बेसिन की नदियों पर निर्भर है। संधि निलंबन से उसके कृषि कार्य, पेयजल उपलब्धता, और आर्थिक स्थिरता पर गहरा प्रभाव पड़ा है, और यह संकट स्थिति अनुकूल न होने पर विकराल रूप धारण कर सकता है। विशेष रूप से, पेयजल की कमी पाकिस्तान की बड़ी आबादी के लिए भयावह हो सकती है, जो कुछ ही महीनों में उसे भारत के समक्ष झुकने के लिए मजबूर कर सकती है।
पाकिस्तान ने इस मुद्दे को विश्व बैंक के समक्ष उठाने का प्रयास किया, किंतु विश्व बैंक ने स्पष्ट किया कि उसकी भूमिका केवल मध्यस्थ की थी और अब वह इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। इसके पश्चात् पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र का रुख करने की योजना बनाई, लेकिन भारत ने वियना संधि विधि सम्मेलन के अनुच्छेद 60 और 62 का उल्लेख करते हुए कहा कि पाकिस्तान द्वारा सीमापार आतंकवाद को बढ़ावा देने के कारण संधि की मूल भावना का भौतिक उल्लंघन हुआ है, जिसके आधार पर निलंबन वैध है। पाकिस्तान ने एक ओर इस कदम को युद्ध की धमकी दी, दावा करते हुए कि यदि भारत संधि को समाप्त करता है और जल प्रवाह को रोकता है, तो वह इसे युद्ध मानेगा और पूर्ण शक्ति से इसका विरोध करेगा। दूसरी ओर, पाकिस्तान ने भारत के जलशक्ति मंत्रालय से संधि निलंबन पर पुनर्विचार और सीधी बातचीत की गुहार लगाई। पाकिस्तान के जल संसाधन सचिव सैय्यद अली मुर्तजा ने बातचीत की इच्छा जताई, और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने दिल्ली की दीर्घकालीन चिंताओं पर चर्चा करने की तत्परता दिखाई। पाकिस्तान के अनुरोध पत्र को जलशक्ति मंत्रालय ने विदेश मंत्रालय को अग्रेषित किया, किंतु विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि संधि सद्भावना और मित्रता की भावना में हुई थी, जिसे पाकिस्तान ने आतंकवाद को प्रोत्साहन देकर तार-तार कर दिया। अतः इस मुद्दे पर पुनर्विचार का कोई प्रश्न नहीं उठता।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा कि 1965, 1971, और कारगिल युद्धों के बावजूद भारत ने इस संधि का सम्मान किया, किंतु अब “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकता।” उन्होंने स्पष्ट किया कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’, जिसके अंतर्गत भारतीय सेना ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों और वायु रक्षा प्रणालियों को निष्क्रिय किया, केवल स्थगित किया गया है, समाप्त नहीं। जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि भारत के हितों के साथ कोई समझौता नहीं होगा और भारत के हिस्से की एक-एक बूंद देश में ही रहेगी। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संवाद में कहा कि संधि निलंबन से भारत नई सिंचाई योजनाएं विकसित कर रहा है, जो किसानों को दूसरी हरित क्रांति लाने का अवसर प्रदान करेगी। उन्होंने कहा, “सिंधु जल पर हमारे किसानों का अधिकार है, और इसकी एक-एक बूंद का उपयोग कृषि, बिजली उत्पादन, और विकास के लिए किया जाएगा।”
संधि निलंबन से भारत को सिंधु बेसिन की छह नदियों—रावी, ब्यास, सतलुज, सिंधु, झेलम, और चिनाब—का जल अपनी आवश्यकतानुसार उपयोग करने की स्वतंत्रता प्राप्त हुई है। इससे जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, और उत्तर प्रदेश को कृषि, पेयजल, और अन्य आवश्यकताओं के लिए अधिक जल उपलब्ध हो रहा है। वर्तमान में, रावी, ब्यास, और सतलुज के जल का लाभ इन राज्यों को मिल रहा है, और राजस्थान की इंदिरा गांधी नहर में जल की आवक में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसके अतिरिक्त, हरियाणा और पंजाब के बीच वर्षों से चला आ रहा जल विवाद समाप्त होने की संभावना है, क्योंकि अब किसी भी राज्य में जल की कमी नहीं रहेगी। उत्तर भारत में बढ़ी जल उपलब्धता से भाखड़ा जैसे बांधों में बिजली उत्पादन में भी खासी वृद्धि होगी, जिससे बिजली की कमी दूर होगी। भारत अब सिंधु, झेलम, और चिनाब नदियों के जल का अपने उपयोग के लिए नियोजन कर रहा है, और इसके लिए मध्यकालिक और दीर्घकालिक योजनाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है। भारत ने पाकिस्तान के साथ नदियों से संबंधित डेटा साझा करना भी बंद कर दिया है, जिससे पाकिस्तान की बेचैनी और घबराहट और बढ़ गई है।
पीजेंट्स वेल्फेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक बालियान ने कहा कि वियना संधि विधि सम्मेलन के अनुच्छेद 60 और 62 भारत को संधि निलंबन का पूर्ण अधिकार प्रदान करते हैं। यह कदम जल प्रवाह पर भारत के नियंत्रण को सशक्त करता है, जिसमें शुष्क मौसम में जल रोकना और मानसून में छोड़ना शामिल है। उन्होंने इसे एक मजबूत राजनीतिक संदेश बताया। भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश सिंह चौहान ने कहा कि यह निर्णय पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, और लद्दाख के किसानों को नई ऊर्जा और अवसर प्रदान करेगा।
किसानों द्वारा सौंपे गए ज्ञापन में केंद्र सरकार के साहसी और रणनीतिक कदमों का पूर्ण समर्थन व्यक्त किया गया। ज्ञापन में जम्मू-कश्मीर में हुए नरसंहार का उल्लेख करते हुए कहा गया कि पाकिस्तान की आतंकी नीतियों ने भारत को यह कदम उठाने के लिए बाध्य किया। किसानों ने मांग की कि सरकार जल संसाधनों की स्वायत्तता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भविष्य में भी ऐसे ही दृढ़ निर्णय लेती रहे। धर्मेंद्र मलिक ने कहा, “हमें कानूनी अधिकार है कि हम इस संधि पर पुनर्विचार करें और इसे समाप्त करें। यदि भारत सरकार किसानों को जल उपलब्ध कराए, तो हम दूसरी हरित क्रांति लाने को तैयार हैं।”
यह संवाद और ज्ञापन किसानों की एकजुटता और राष्ट्रीय हितों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह स्पष्ट करता है कि भारत अपने जल संसाधनों पर पूर्ण नियंत्रण चाहता है। पाकिस्तान के लिए यह संकट गहरा रहा है, और यदि स्थिति अनुकूल न रही, तो यह विकराल रूप धारण कर सकता है। पानी का मुद्दा इतना गंभीर है कि यह पाकिस्तान को कुछ ही महीनों में भारत के समक्ष झुकने के लिए मजबूर कर सकता है। किसानों का यह संकल्प और सरकार का दृढ़ रुख भारत के जल संसाधनों और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है।
(ग्लोबल बिहारी ब्यूरो से अतिरिक्त इनपुट्स के साथ)
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।

