– प्रशांत सिन्हा
भारत सरकार द्धारा 1जुलाई 2022 से एकल उपयोग प्लास्टिक और पॉलिथीन के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है जिसकी मांग पर्यावरणविदों द्वारा वर्षो से की जा रही थी।
सरकार के इस निर्णय के अपेक्षित परिणाम तभी मिलेंगे जब इसका सख्ती से पालन किया जायेगा। दरअसल दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत प्लास्टिक कचरा प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है। इसलिए इससे निपटने के लिए स्ट्रॉ से लेकर सिगरेट के पैकेट तक की वस्तुओं पर एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर रोक लगाना आवश्यक था। इसने हमारी भूमि पर कब्जा कर लिया है। गांव, कस्बों और शहरों की इस्तेमाल किए गए सामानों से पटी पड़ी हैं जो मिट्टी में नहीं घुलता है और धीरे धीरे पानी मे चला जाता है और कुछ दिनों के बाद विभिन्न तरीकों से यह समुद्र में चला जाता है जिससे समुद्री जीव जंतुओं को नुकसान पहुंच रहा है। पक्षियों से लेकर मछलियों से लेकर अन्य समुद्री जीवों तक हर साल प्लास्टिक से लाखों जानवर मारे जाते हैं। ज्ञात है कि लुप्तप्राय प्रजातियों सहित लगभग 700 प्रजातियां प्लास्टिक से प्रभावित हैं। समुद्री पक्षी की लगभग हर प्रजाति प्लास्टिक खाती है। अधिकांश जानवरों की मौत उलझाव या भुखमरी के कारण होती है। ये प्लास्टिक मिट्टी और जल निकायों में प्रवेश करते हैं और छोटे छोटे कणों में टूट जाते हैं लेकिन विघटित नही होते। ये उस क्षेत्र के भूमि को क्षीण करता है। एकल उपयोग प्लास्टिक सौ से अधिक वर्षो तक मिट्टी और पानी में रहते हैं और विषाक्त रसायनों को छोड़ते हैं और इस तरह पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ऐसे में प्लास्टिक से पैदा होने वाला प्रदूषण को रोकना एक बहुत बड़ी चुनौती है। पर्यावरण के अलावा ऐसे प्लास्टिक से इंसान के स्वास्थ पर भी बुरा असर पड़ रहा है। डॉक्टर के मुताबिक प्लास्टिक के ये छोटे-छोटे कण हमारे शरीर में प्रवेश करने के बाद हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। प्लास्टिक उत्पादों में रासायनिक योजक होते हैं। इन रसायनों में से कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं जैसे हार्मोन से संबंधित कैंसर, बांझपन और एडीएचडी और ऑटिज़्म जैसे न्यूरोडेवलपमेंट विकारों से जुड़े हुए हैं। कई बार खाने पीने की चीजों की पैकिंग में केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी वजह से लोगों की इम्यूनिटी पर बुरा असर पड़ता है. सभी लोगों को प्लास्टिक के कंटेनर्स में खाने पीने के सामान की पैकिंग करने से बचना चाहिए और प्लास्टिक की बोतल के बजाय पानी के लिए बांस या कांच की बोतल का इस्तेमाल करना चाहिए.
भारत में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का एक सर्वे के अनुसार देश में हर दिन 26 हजार टन प्लास्टिक कचरा निकलता है, जिसमें से सिर्फ 60% को ही इकट्ठा किया जाता है. बाकी कचरा नदी-नालों में मिल जाता है या पड़ा रहता है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, भारत में हर साल 2.4 लाख टन सिंगल यूज प्लास्टिक पैदा होता है। इस हिसाब से हर व्यक्ति हर साल 18 ग्राम सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा पैदा करता है. एक रिर्पोट के अनुसार बाजारों में मिलने वाले खाद्य पदार्थों या पान मसाला के रैपर एकल उपयोग प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है। प्लास्टिक बैग, प्लास्टिक की बोतलें, अनुपयोगी इलेक्ट्रॉनिक सामान इत्यादि प्लास्टिक कचरे की श्रेणी में आते हैं। प्लास्टिक महंगा नही होता है इसलिए यह अधिक उपयोग किया जाता है। जबसे पॉलिथीन बाजार में आया कपड़े, कागज और जूट की जगह पॉलिथीन का प्रयोग होने लगा।
विश्व स्तर पर भी यह स्वीकार किया गया है एकल उपयोग प्लास्टिक समुद्री वातावरण के साथ स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 80 देशों ने प्लास्टिक के एकल उपयोग पर पूरी तरह या आंशिक तौर पर प्रतिबंध लगा रखा है। अफ्रीका के तीस देशों में पूरी तरह से प्रतिबंध है वहीं यूरोप में इसके इस्तेमाल पर कहीं अतिरिक्त कर लगा दिया गया है या तो कही अलग से शुल्क लगाया जाता है।
इसके बावजूद दुनिया भर में हर साल 30 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार करीब 100 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में जाता है जिसके कारण व्हेल जैसे गहरे समुद्र में रहने वाले स्तनधारियों की आंत में बड़ी मात्रा में माइक्रो प्लास्टिक पाया है।
19वीं सदी के मध्य में हुई प्लास्टिक की खोज दुनिया में धूम मचा दी। कुछ घरों को छोड़कर कोई ऐसा घर नही मिलेगा जहां पॉलिथीन की मौजूदगी न हो। दुनिया के सभी देशों में इससे निर्मित वस्तुएं इस्तेमाल की जाती है।अगर प्लास्टिक और पॉलिथीन को इस्तेमाल करने से नही रोका जाए तो भविष्य में धरती पर कचरा ही कचरा होगा। इसलिए इसके लिए सभी को जागरुक होना पड़ेगा। सभी को अपने साथ कपड़े या कागज का बैग रखना चाहिए। प्लास्टिक के पतले ग्लास, स्ट्रॉ को अविलम्ब रोक की जरुरत है। पारंपारिक तरीका जैसे मिट्टी के बने बर्तन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। प्लास्टिक की पीईटीई और एचडीपीई की सामानों का इस्तेमाल करना चाहिए। इस तरह की प्लास्टिक की आसानी से रीसायकल हो जाती है। इस तरह की प्लास्टिक को न तो जमीन के नीचे और न पानी में रखने की कोशिश करना चाहिए। इसे जलाना तो पर्यावरण के लिए बहुत नुकसानदायक है। यदि प्लास्टिक बैगों और प्लास्टिक से बने अन्य वस्तुओ का उपयोग तुरंत नही बंद कर सकते तो कम से कम उन्हे फेंकने से पहले जितनी बार भी हो सके उनका पुनरुपयोग करे। इस प्रकार से हम प्लास्टिक कचरे को कम करने में और प्लास्टिक प्रदूषण के रोकथाम में अपनी महात्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है।
प्रकृति ने मानव को अन्य जीवों की अपेक्षा एक विलक्षण वस्तु ” मस्तिष्क ” प्रदान किया था जिसका लोगों ने दुरुपयोग किया। उसने भौतिकवाद के चक्कर में पड़कर और स्वार्थ लोलुप्तावश सम्पूर्ण प्रकृति और पर्यावरण संकलन को क्षत विक्षप्त कर दिया।
सरकार और संस्थाओं के आलावा प्रत्येक नागरिकों की जिम्मेदारी है कि एकल प्रयोग प्लास्टिक की इस्तेमाल न खुद करें और दूसरों को रोकें। ऐसा करने से न केवल पर्यावरण की रक्षा करने में मददगार बनेंगे बल्कि स्वस्थ समाज की दिशा में भी आगे बढ़ेंगे।
मानव का भौतिकवाद और असंतुष्ट लोभ ने पॉलिथीन के अंधाधुंध प्रयोग से पर्यावरण को तीव्रता से नष्ट किया है। जिन एकल उपयोग प्लास्टिक का प्रतिदिन इस्तेमाल हो रहा है वह पृथ्वी पर जन जीवन के लिए एक गंभीर संकट बन गया है जिससे समाज का एक बड़ा तबका अभी भी अनभिज्ञ है।