छठ आस्था का महापर्व होने के साथ-साथ जीवन-पद्धति की सीख देने वाला त्योहार है, जिसमें साफ-सफाई, शुद्धि व पवित्रता का विशेष महत्व होता है। इसलिए लोक-आस्था के इस महापर्व को स्वच्छता का राष्ट्रीय त्योहार घोषित किया जाना चाहिए। साथ ही, ऊर्जा संरक्षण, जल संरक्षण, रोग-निवारण व अनुशासन के इस पर्व को पूरे भारत में मनाया जाना चाहिए। इससे जनकल्याण के कार्यो के प्रति लोगों की दिलचस्पी बढ़ेगी और स्वच्छ भारत की परिकल्पना को साकार करने में मदद मिलेगी।
दरअसल, छठ पर्यावरण संरक्षण, रोग-निवारण व अनुशासन का पर्व है और इसका उल्लेख आदिग्रंथ ऋग्वेद में मिलता है। छठ को राष्ट्रीय त्योहार घोषित किए जाने से देश के कोने-कोने में फैले जलाशयों की सफाई के प्रति लोगों में जागरूकता आएगी और इससे जल-संरक्षण अभियान को भी गति मिलेगी।
हिंदू धर्म अपने आप में एक दर्शन है, जो हमें जीवन-शैली व जीना सिखलाता है। प्रकृति-पूजोपासना का महापर्व छठ के पीछे जो दर्शन है, वह विश्वव्यापी है। शायद यही कारण है कि के इस पर्व के प्रति लोगों में आस्था आज न सिर्फ देश में, बल्कि विदेशों में भी देखी जाती है। दिल्ली के अलावा, मुंबई, सूरत, अहमदाबाद समेत देश के विभिन्न महानगरों में पूर्वाचली प्रवासी धूमधाम से छठ मनाते हैं। यही नहीं, मॉरीशस, फिजी व अमेरिका समेत कई देशों में भी पूर्वाचली भारतीय प्रवासी छठ मनाने लगे हैं, जिसे देखकर विदेशी लोगों में इस पर्व के प्रति आकर्षण बढ़ा है।
दीपावली पर लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, तो छठ पर नदी-तालाब, पोखरा आदि जलाशयों की सफाई करते हैं। जलाशयों की सफाई की यह परंपरा मगध, मिथिला और उसके आसपास के क्षेत्रों में प्राचीन काल से चली आ रही है। दीपावली के अगले दिन से ही लोग इस कार्य में जुट जाते हैं, क्योंकि बरसात के बाद जलाशयों और उसके आसपास कीड़े-मकोड़े अपना डेरा जमा लेते हैं, जिसके कारण बीमारियां फैलती हैं।
इस तरह छठ जलाशयों की सफाई का भी पर्व है। आज स्वच्छ भारत अभियान और नमामि गंगे योजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मनपसंद परियोजनाओं में शुमार हैं। पिछले कुछ सालों से मोदी सरकार स्वच्छता अभियान और गंगा की सफाई को लेकर तेज मुहिम चला रही है। इन दोनों कार्यक्रमों का लोक-आस्था का पर्व छठ से सैद्धांतिक व व्यावहारिक ताल्लुकात हैं।
सैद्धांतिक रूप से सरकार का गंगा सफाई योजना का जो मकसद है, उसे बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड में लोग सदियों से समझते हैं और छठ से पहले जलाशयों की सफाई करते हैं। व्यावहारिक पक्ष की बात करें तो स्वच्छ भारत की जो परिकल्पना है, वह जनभागीदारी के बिना संभव नहीं है। नीति व नियमों से किसी अभियान में लोगों को जोड़ना उतना आसान नहीं होता है, जितना कि आस्था व श्रद्धा से। खासतौर से जिस देश में धर्म लोगों की जीवन-पद्धति हो, वहां धार्मिक विश्वास का विशेष महत्व होता है।
छठ पूजा में सूर्य की उपासना की जाती है। साथ ही, कठिन व्रत व नियमों का पालन किया जाता है। इस तरह यह प्रकृति पूजा के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक और लोकाचार में अनुशासन का भी पर्व है। कार्तिक शुल्क पक्ष की षष्ठी व सप्तमी को दो दिन मनाए जाने वाले इस त्योहार के लिए व्रती महिला चतुर्थी तिथि से ही शुद्धि के विशेष नियमों का पालन करती है। पंचमी को खरना व षष्ठी को सांध्यअघ्र्य और सप्तमी को प्रात:अघ्र्य देकर पूजोपासना का समापन होता है।
छठ में कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य का ध्यान करने की प्रथा है। जल-चिकित्सा में यह ‘कटिस्नान’ कहलाता है। इससे शरीर के कई रोगों का निवारण होता है। नदी-तालाब व अन्य जलाशयों के जल में देर तक खड़े रहने से कुष्टरोग समेत कई चर्मरोगों का भी उपचार हो जाता है। हम जानते हैं कि धरती पर वनस्पति व जीव-जंतुओं को सूर्य से ही ऊर्जा मिलती है। सूर्य की किरणों से ही विटामिन-डी मिलती है। पश्चिम के देशों में लोगों को सूर्य की रोशनी पर्याप्त नहीं मिलने से उनमें विटामिन-डी की कमी पाई जाती है और उन्हें इस विटामिन की कमी से होने वाले रोग का खतरा बना रहता है। इसलिए रोग से बचने के लिए लोग दवाओं से विटामिन-डी की अपनी जरूरत पूरी करते हैं।
भारत की अक्षांशीय स्थिति ऐसी है कि देश के हर भूभाग में सूर्य का भरपूर प्रकाश मिलता है। सूर्य को इसलिए भी रोगनाशक कहा जाता है, क्योंकि जिस सूर्य की किरणें जिस घर में सीधी पहुंचती हैं, उस घर में कीड़े-मकोड़ों का वास नहीं होता। यही कारण है कि यहां लोग पूर्वाभिमुख घर बनाना पसंद करते हैं।
छठ का त्योहार जाड़े की शुरुआत से पहले मनाया जाता है। जाहिर है, जाड़े में सूर्योष्मा का महत्व बढ़ जाता है। इसलिए सूर्य की उपासना कर लोग उनसे शीत ऋतु में कड़ाके की ठंड से बचाने का निवेदन करते हैं। वहीं, यह जल संरक्षण का भी पर्व है।
प्रकृति पूजा हिंदू धर्म की संस्कृति है। इसमें यह परंपरा रही है कि जिस जीव से या जीवेतर वस्तु से हम उपकृत होते हैं, उसके प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। इसीलिए हमारे यहां नदी, तालाब, कुआं, वृक्ष आदि की पूजा की परंपरा है। ऋग्वेद में भी सूर्य, नदी और पृथ्वी को देवी-देवताओं की श्रेणी में रखा गया है।
प्रकृति पूजोपासना के पर्व छठ को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ते हुए केंद्र व राज्य सरकारों की ओर से और श्रद्धालुओं की मदद से देश के विकास में इस पर्व का योगदान सुनिश्चित करना एक सकारात्मक पहल होगा।
*डॉ बीरबल झा प्रख्यात शिक्षाविद् व मिथिलालोक फाउंडेशन के चेयरमैन हैं। साथ ही वे ब्रिटिश लिंग्वा के प्रबंध निदेशक हैं।