– मौलाना ए आर शाहीन क़ासमी (फ़ाज़िल दारूल उलूम, देवबंद)
एवं मकरंड अडकर (अधिवक्ता सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली)*
मोहम्मद सल्ला अल्लाह, अलेही सलाम ने कहा कि “तुम गाय के दूध को अपने लिए जरूरी या अनिवार्य कर लो क्योंकि इसमें दवा है और गाय के घी में बीमारियेां से शिफा है और उसके गोश्त खाने से बचो क्योंकि उसमें बीमारी है”
आज हमारे समाज में धर्म के नाम पर तनाव और परेशानी बढ़ गई है। ऐसा महसूस हो रहा है कि हम भारतीय एक दूसरे से परेशान और डर के साये में जी रहे है। असुरक्षा का यह एहसास दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है हम एक दूसरे से पूरे तरीके से अलग हैं यह सोच हमारे समाज में एक बीमारी की तरह फैल रही है जिस के कारण मुख्यरूप से दो धर्मों इस्लाम एवं सनातन धर्म के बीच दूरियां बढ़ती ही जा रही हैं ।
सनातन धर्म और इस्लाम वैसे तो ईश्वरवादी हैं। एक सही सनातनी या मुस्लिम ईश्वरवादी ही होता है।कुछ बातें जैसे मिसाल के तौर पर अगर हम गाय की बात करे तो सनातन संस्कृति में गाय का स्थान उच्च दर्जे का है । और गौ-माता भी कहा गया है। अगर हम यह कहें कि इस्लाम में भी गाय को बहुत ऊॅचा दर्जा दिया जाता है तो यह गलत नही होगा।
इस्लाम में गाय के स्थान के बारे मे कई गलतफहमियां अज्ञानता की वजह से हैं । यह बात सच है कि इस्लाम का मूलभूत ग्रंथ पवित्र कुरान है और यह मुसलमानों की श्रद्धा और ईमान है कि पवित्र कुरान में जो मार्गदर्शन है, वह अल्लाह या ईश्वर की तरफ से है, और इसलिए पवित्र कुरान का हर एक शब्द मुसलमानों के लिए हुकुम की ताकत रखता है। मगर हमारे लिए सुन्नत की भी बहुत ज्यादा अहमियत है, पवित्र कुरान में यह स्पष्ट आदेश है कि रसूल की बात भी खुदा की ओर से है। सूरह नंबर 53 अन् नज़म आयत नंबर 3,4 में है कि पैगम्बर अपनी ओर से कोई बात नहीं बोलते, मगर वही जो उनको अल्लाह की ओर से बताया जाता है। और उन्होंने जो मार्गदर्शन दिया उसका आदर करना उस पर अमल करना यह वाज़िब है।
रसूल के अमल को रसूल की सुन्नत कहते है और सुन्नतों के संग्रह या किताब को किताबुल सुनन कहा जाता है।इस संदर्भ में अगर हम हदीसों की ओर चलें तो हदीसों के जमा करने वालो को मुंहद्दिस कहा जाता है। उन्हीं में से एक इमाम अल्बानी ने अपनी किताब ‘‘सहीहुल जामे‘‘ में हदीस नंबर 6863 एक हदीस का जिक्र किया है कि अब्दुल्ला इब्ने मसूद हदीस को ब्यान करते हैं कि मोहम्मद सल्ला अल्लाह, अलेही सलाम ने कहा कि ‘”तुम गाय के दूध को अपने लिए जरूरी या अनिवार्य कर लो क्योंकि इसमें दवा है और गाय के घी में बीमारियेां से शिफा है और उसके गोश्त खाने से बचो क्योंकि उसमें बीमारी है।”
यहाँ पर मैं बता दूँ कि अब्दुल्लाह इब्ने मसूद बहुत बडे़ फकीह अर्थात इस्लामी धर्मशास्त्र के बडे़ ज्ञाता कहे जाते हैं और कुरान के व्याख्या करने वालों में बडे़ व्याख्या कर्ता हैं।विचारणीय है कि जिस चीज को नबी बीमारी कहते है, यानी दूसरे शब्दो में जिस चीज कों नबी घृणा या नापसंद करते हैं वह चीज मुसलमानों के लिए अच्छी कैसे हो सकती है?
जो लोग नबी पर ईमान लाए हैं उन सब के लिए इस बात पर गौर करना और अमल करना हमारी नज़र में अनिवार्य है। जिस चीज को नबी न पसंद करें, नबी का मानने वाला उसे पंसद करे यह नहीं हो सकता।
दूसरे स्थान पर सुनन-अलकुबरा हदीस नंबर 6863 में अब्दुल्लाह इब्ने मसूद से ही रिवायत है वह इस तरह बताते हैं कि मोहम्मद सल्लल्ला हो अलैही वसल्लम, ने कहा कि ‘‘कोई भी ऐसी बीमारी अल्लाह ने नहीं बनाई जिसकी कोई दवा न हो सिवाए बुढ़ापे के, तो तुम्हारे लिए जरूरी है कि गाय का दूध पियो इसलिए कि वह हर पेड़ की पत्ती को खाती है। पेड़ के पत्ते में बीमारी का इलाज है, इसलिए गाय का दूध पिया करो यह इस हदीस से समझ में आता है।
- तो दोनों हदीसों से यह साफ हो जाता है कि गाय का दूध मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत ही आवश्यक है ।
- हदिसों से गाय के दूध की फजीलत साबित होती है
- माँ के दूध के बाद दुनिया में सबसे बेहतर गाय का दूध है।
यह बात हदीस से भी पता चलता है। इसलिए हमारे हिंदू गाय को गौ-माता कहते हैं गौ-माता कहने का उदेश्य गाय का सम्मान करना होता है। यह भी एक तरीका है खुदा का शुक्र करने का।
कुरान ए मजीद की सूरह नंबर 14 आयात नंबर 7 में है कि अगर तुम खुदा का शुक्र अदा करोगे तो खुदा और ज्यादा तुम्हें देंगे और ना शुकरी करेंगें तो खुदा की ओर से तंगी और परेशानी होगी। इस वजह से मुझे शुक्र अदा करने की भावना से गाय को गौ-माता कहने मे न कोई हर्ज है, और न कोई परेशानी होगी।
इस सिलसिले में अगर पवित्र कुरान की ओर जाएं तो पवित्र कुरान में 9 जगहों पर हमको गाय का संदर्भ मिलता है सुरह नंबर 2 अल बकरा में 5 जगहों पर, सुरा नंबर 6 अल अन्आम में 2 जगहों पर सुरह युसूफ में भी 2 स्थानेां पर। इस तरह कुरान की सूरह यूसुफ नंबर 12 आयात नंबर 43 में भी गाय का जिक्र मिलता है। उसमें उस समय के बादशाह या राजा ने सपनों मे देखा था कि 7 मोटी गाय को सात दुबली गाय खा रही है। बादशाह ने अपने इस सपने का मतलब अपने दरबारी से पता करना चाहा तो एक दरबारी ने बताया कि बादशाह सलामत युसूफ जिसको आपने जेल में डाल रखा है मैं उनसे इस सपने का मतलब पूछ कर आता हूँ वह सपनों का मतलब अच्छा बताता है। ध्यान देने की बात यह है कि युसूफ जो बाद में पैगम्बर हुए उन्होंने इसका मतलब जो बताया हमें वह मतलब या ख्वाब की ताबीर कुछ अलग ही सोच देगी। उन्होंने कहा कि सात मोटी गाय का अर्थ है 7 साल देश में खुशहाली रहेगी और दुबली गाय का मतलब 7 साल तंगी और परेशानी रहेगी।
कुरान के अनुसार इसका मतलब यह हुआ कि गाय को स्वस्थ रखना मोटी-ताजा रखना और उसकी रक्षा करना इस्लाम में भी अच्छा माना गया है । और किसी भी रूप से ऐसा करना कि गाय अस्वस्थ हो जाए मुसलमान के लिए भी और हर इंसान के लिए परेशानी का कारण बनेगी। यही हमें युसूफ पैगम्बर के बताए गए सपने के मतलब यानी ख्वाब की ताबीर से पता चलता है किंतु आज तक हमने कुरान की आयात को इस नजरिए से समझा ही नहीं।
इसी प्रकार सूरह नंबर 2 अल-बकरा की आयात नंबर 67 मे गाय के वध करने की बात हज़रत मूसा के संदर्भ में की गई है। पूरी कहानी यह है कि लोगों ने अपने पैगंबर मूसा के जीवन काल में एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी, किन्तु हत्यारा कौन है यह जानना मुश्किल हो गया था उनमें का हर व्यक्ति दूसरे पर आरोप लगा रहा था। तो यहूदियों के पैगम्बर मूसा ने कहा कि अल्लाह तुम लोगों को गाय जबह (वध) करने अर्थात वध करने का आदेश देता है गाय कैसी होगी इसको भी विस्तार से पवित्र कुरान में बताया गया है। जब उन लोगों ने बताए हुए शर्तों के अनुसार गाय मिल जाने पर उसका वध (जबह) कर दिया तो उस वध की गई गाय के शरीर (जिस्म) के हिस्से को उस हत्या किए हुए व्यक्ति के शरीर पर मारने के लिए कहा गया। जैसे ही गाय के शरीर के एक हिस्से से उस व्यक्ति की लाश पर मारा गया वह जिंदा हो गया। वह जिंदा होकर अपने कातिल अर्थात हत्यारे का नाम बताया। इतनी देर ही वह जिंदा रहा, फिर वह मर गया। इस हवाले से गाय के वध करने का जिक्र आया है।
अब ध्यान देने की बात यह है कि इस आयत में गाय को वध करने और उसका मांस खाने का संदेश मिलता है या गाय के शरीर का करिश्मा (चमत्कार) साबित होता है ? आप समझदार हैं सोचिए!
पवित्र कुरान में सुरा अल-अनआम में भी आयात नंबर 146 मे गाय शब्द का जिक्र आया है। इस आयत में भी मुसलमानों के नहीं बल्कि यहूदीयों के संदर्भ में है कि उनके लिए हमने गाय की चर्बी को अवैध कर दिया था। और आयत नंबर 144 मे ऊंट और गाय का जिक्र आया है यहां पर गाय का जिक्र हलाल जानवरों के (हलाल जिसको खाना इस्लामी धर्म शास्त्र के अनुसार वैध व जायज है) संदर्भ में है। किंतु इससे गाय के गोश्त को खाने का आदेश नहीं मिलता है। मुसलमान के लिए गाय का गोश्त खाना जरूरी है यह इस आयत से प्रमाणित नही होता है।
कुरान की आयत और मोहम्मद (सल्लल्ला) की हदीस दोनों को मिलाकर समझा जाए तो यह प्रमाणित होता है कि कुरान के अनुसार गाय हलाल जानवरो की सूची में है। मोहम्मद ने हदीस के माध्यम से यह स्पष्ट कर दिया है कि उसके गोश्त में बीमारी है और दूध में शिफा है। यदि गाय को पवित्र कुरान में हराम या अवैध जानवरों की सूची मे रखा जाता तो फिर उसका दूध और घी भी मुसलमानों के लिए हराम हो जाता। क्योंकि इस्लामी धर्मशास्त्र का यह सिद्वांत है कि जिसका कुल हराम है उसका जुज भी हराम है। अर्थात् जो चीज पूरे तौर पर हराम हो तो उस चीज का छोटा हिस्सा भी हराम ही होगा। इसलिए पवित्र कुरान में गाय को हलाल जानवरों की सूची मे रखा गया ताकि उसका दूध पीना और घी खाना भी हराम न हो जाए।
इसलिए इस्लाम का कानून बनाने वाले मोहम्मद (सल्लल्ला) ने अपनी हदीस के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है कि गाय के मांस और दूध की क्या स्थिति या क्या हैसियत है। मोहम्मद (सल्लल्ला) की बातों को कितनी मोहब्बत से लेना चाहिए मुसलमान इस सिलसिले में हमसे ज्यादा जानते है।
इस लेख को लिखने वालों में से एक, मौलाना ए आर शाहीन क़ासमी, दारूल उलूम देवबंद के फाजिल है और उन्होंने हदीसों की बाकायदा पढ़ाई की है मगर ताज्जुब की बात यह है कि सहिह अल बुखारी की एक हदीस उनके पढ़ने में आई और वह चौंक गये और हदीस का अंदरूनी मतलब जानने की कोशिश वह साल भर से कर रहे है। इस बारे में उन्होंने तो अल्लाह से भी हिदायत की दुआ मांगी और जो भी नूर नसीब हुआ वह हम आपके साथ बांटना चाहते है। हदीस नंबर 4081 सही बुखारी के किताबुल मगाजी में है, उसमें मुहम्मद (सल्लल्ला) अपने एक सपने (ख्वाब) का जिक्र करते हुए कहते हैं कि रऐतु फीहा बकरन (कि मैंने ख्वाब में गाय देखी) फइजा हुमुल मुअमिनूण यौम उहद (इसका मतलब वही ईमान वाले हैं जो गजवा उहद में शहीद हुए) ।
मुहम्मद (सल्लल्ला) को ख्वाब में गाय जीव को शहीद के प्रतीक के रूप में दिखाया गया। इस बात से कोई इन्कार नही कर सकता कि इस्लाम में शहदत का दर्जा बहुत ज्यादा है। शहीद व्यक्ति ऐसा होता है कि उसका सारा गुनाह माफ करके उसे जन्नत फिरदौस नसीब होता है।हममें से मकरंड अडकर सनातनी हैं और उन्हें गाय देखकर कृष्ण की याद आती है तो उनके जेहन मे गाय के लिये पूज्य भाव उभरता है। यहां हमने रसूल की बात की उनके अनुसार गाय शहीद मुअमिन का प्रतिक है उनके अनुसार गाय का दर्जा इस्लाम में कितना ऊॅचा है यह हम महसूस करते हैं । क्या मुसलमान भी इस पर गौर करेंगे हम आशा तो कर ही सकते है। अगर सनातन मान्यता के अनुसार गाय को संभालना और स्वस्थ रखना उनका फर्ज है तो मुसलामानों को भी ऐसी ही भावना रखनी पडे़गी अपने अल्लाह व रसूल की बातों का आदर करने के लिये।
*उपरोक्त लेख इसके लेखकों के शोध पर आधारित हैं और उनके निजी विचार हैं।
Kuch bhi likh mara,, sidhe sidhe bol dete ki gaye goshet ko khane se bache dusre dharem ki astha ka mamla he, or hadees me bhi gaye goshet me bimariyon ka zikr he,,