दुनिया की नदियां – 1
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
ओटावा नदी पर बढ़ते विकास और नये बसते-बढ़ते शहरों की आबादी ने इसे मार दिया था। कनाडा ने 19वीं शताब्दी में इस नदी की हत्या कर दी थी। मैं इस नदी की हत्या के बाद इसका पुनर्जीवन देखने और समझने हेतु 21वीं शताब्दी के आरंभ में वहां गया था। कनाडा में मेरे मित्रों ने ही मुझे इस नदी को दिखाया। मैंने इसके उद्गम से संगम तक की 40 दिन की यात्रा और सहभागी प्रशिक्षण किया था। यह मेरे जीवन की भारत से बाहर पहली नदी यात्रा थी।
अभी तक मैंने अपने देश में 12 छोटी-छोटी नदियों को पुनर्जीवित करने हेतु 1200 गांवों के समुदायों को नदी पुनर्जीवन के कार्यों में जोड़ दिया था। 11800 से अधिक जल संरचनाओं का निर्माण हो चुका था। इससे इन्होंने 2.5 लाख कुओं का पुनर्भरण का कार्य किया था। सत्तर लाख लोग लाचार-बेकार-बीमार होकर उजड़कर, अपने गांव को छोड़कर शहर जा चुके थे। जैसे ही इनके जोहड़ बने तो, कुओं में पानी आ गया। तब ये लोग धीरे-धीरे वापस अपने गांव में आकर खेती करके पुनर्वासित हो गये थे। नदी पुनर्जीवन के अपने अनुभव बाँटने हेतु ही मुझे ओटावा नदी यात्रा करायी गयी थी।
मेरी पूर्वी दुनिया का अनुभव पश्चिमी-उत्तरी दुनिया के साथ बाँटने हेतु मेरी कनाडा और उत्तरी अमेरिका की दो नदियां – ओटावा (कनाडा) और हड़सन (संयुक्त राज्य अमेरिका) की यात्रा में मैंने भी बहुत कुछ सीखा। हड़सन नदी यात्रा और स्टॉकहोम नदी यात्रा ने ही मुझे प्रो. जी.डी. अग्रवाल के साथ गंगा पुनर्जीवन संघर्ष में संघर्षशील बनाया था।
कनाडा की 80 वर्षीय युवा मेरी गहरी मित्र मोड़बालो जल निजीकरण के विरुद्ध बोलने वाली बहुत ही क्रांतिकारी बहिन है। इन्होंने ही मुझे एक माह के लिए कनाडा बुलाया था। मेरे साथ मूल भारतीय वैंकयानायडू जो कि आन्ध्रा से कनाडा जाकर मोडबालो के सहायक व कार्यकारी साथी के रूप में काम करते थे, उसने मुझे पूरा कनाडा घुमाया-दिखाया फिर ओटावा नदी की परिक्रमा कराई थी।
मैने ओटावा के आरंभ से अंत तक की यात्रा करके देखा कि यह नदी लेक तेन्कामिन्ग रेड इंडियन के जंगलों से शुरु होकर व लेडी इरविन झील से पोषित होकर, दूसरी झील ताबनगामी, नेपासिंग से उत्तर की ओटेवा नदी की खाड़ी को जोड़ देती है। यह नदी त्रिभुजाकर है। इसका दूसरा उद्गम ग्रान्ड लेक विकटोरिया सबसे ऊपर है। इसके दोनों तरफ बहुत सी लेक (झील) हैं। उत्तर की मुख्य धारा सुनार्ड, रेश डेकोलेस, रेश डोजोइज, रैश चरवोकन्गा, दक्षिण में गेट नीयू बड़ी सहायक नद बासकतोन्ग झील से तेज गहरी धारा बनकर फिर गाटिनियू ओटोवा शहर के पास आकर ओटेवा नदी में मिलती है। ओटावा नदी आगे गहरी और बड़ी बनकर, सेन्ट लॉरेंस नदी में मोंट्रियल शहर के पास मिलती है। ओटावा नदी सेंट लारेंस नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है।
ओटावा नदी का सम्पूर्ण भूगोल और इतिहास जानना भी जरूरी है। यह नदी 19वीं सदी में औद्योगीकरण के कारण प्रदूषित होना शुरू हुई थी। यह कनाडा में संसद के पास ही बहती थी। इसकी बदबू से संसद में गंभीर बहस हुई। अंत में प्रदूषित करने वाले उद्योगों को बंद करके नदी किनारे से हटाने का फैसला हो गया। फैसला के साथ ही सभी उद्योगों को नदी किनारे से हटाकर दूर पुनर्वास कर दिया गया। जो नदी मैला ढोने वाली मालगाड़ी बनी हुई थी, वह नदी 10 वर्षों में पहले जैसी बनकर बहने लगी थी।
मुझे जब यह नदी दिखायी तो इसके पहले के सच्चे तिथिवार चित्र दिखाये। इस नदी का तिथिवार चित्र परिवर्तन बहुत अच्छे से दिखाया-समझाया था। यह देख-समझकर मेरे मन में मां गंगा जी की बीमारी का चित्र उभरने लगा था। गंगा की समस्या तो ओटावा नदी से बहुत कम थी। कानपुर – कन्नौज के बीच ही तब सबसे अधिक प्रदूषण था। उसे रोकना आसान था लेकिन वही आसान काम नहीं हो पाया। गंगा दिन ब दिन बीमार होकर मरती चली गई। आज तो गंगा अपने अंतिम श्वांसो के साथ जी रही है।
गंगा ने भारत के सभी राजनैतिक दलों की सरकार बनवाई; लेकिन किसी ने भी मां गंगा का सच्चा बेटा बनकर इलाज नहीं कराया। जो अपने आपको गंगा का बेटा कहते थे, उन्होंने ही गंगा को सबसे बड़ा धोखा दिया। इस प्रकार का धोखा ओटावा नदी को नहीं मिला, इसलिए वह नदी स्वस्थ होकर अपने पर्यावरणीय प्रवाह के साथ बहती है।
मैंने देखा कि अब इस नदी में गंदे जल का कोई भी नाला सीधा जाकर नहीं मिलता है; केवल वर्षा जल के नाले ही मिलते है। उपचारित जल को उद्योगों में पुनः उपयोग कर लिया जाता है। शहर के सीवेज जल को उपचारित करके पेड़-पौधों के लिए हरियाली बढ़ाने हेतु उपयोग करते हैं। जहाँ जैसा जल उपयोग करना चाहिए, वैसा ही करते है।
नदी को स्वस्थ रखने हेतु उसके वर्षा जल का संरक्षण करना जरूरी है। साथ ही गंदा जल उसमें नहीं मिलने देना, गंदगी और शुद्धता को अलग-अलग रखना ही नदी के स्वास्थ्य को ठीक रखने के काम है। नदी को वैसा ही शुद्ध जल मिले, जैसा प्रकृति देती है। वैसा ही जल नदी में है जैसा बरसता है। जैसी नदी बहती है, वैसा ही वहाँ का जीवन चलता और बहता है। यही व्यवहार और संस्कार कनाडा ने अपनी ओटावा नदी के साथ किया तो वह नदी स्वस्थ होकर बहने लगी।
कनाडा की ओटावा नदी को स्वस्थ बनाने में केवल इंजीनियरिंग और तकनीक ही काम में नही ली गई है; उसको स्वस्थ बनाने हेतु सामाजिक, राजनैतिक प्र्रतिबद्धता और संकल्प भी पूरा किया; तभी नदी आज स्वस्थ होकर बहती दिखाई दे रही है। यही राजनैतिक और सामाजिक प्रतिबद्धता भारत में भी होती तो हमारी गंगा भी आज वैसी ही बनकर बहती दिखाई दे रही होती । भारतीयों की गंगा को भी पहले जैसी प्राकृतिक-पर्यावरणीय प्रवाहमान बनाने की सीख लेना है।
जब मैंने आँखों से देखा और यहाँ का भूगोल और इस नदी का इतिहास समझा तो समझ आया कि यह ओटावा नदी कनाडाई प्रांतों ओंटारियो तथा क्यूबेक में स्थित है। इसका नाम एल्गोनक्विन शब्द ’ट्रेड’ के सम्मान में रखा गया था। क्योंकि उस समय पूर्वी कनाडा का प्रमुख व्यापार मार्ग यही नदी थी। अपनी अधिकांश लंबाई के लिए यह इन दो प्रांतों के बीच की सीमा को परिभाषित और निर्धारण करती है। सेंट लॉरेंस नदी की यह एक प्रमुख सहायक नदी है। क्यूबेक की यह सबसे लंबी नदी है।लेक टिम्समिंग नदी के दक्षिण-पूर्व ओटावा तथा जतिनौ बहती नदी लाख डेस आउटौइस पर उत्तर में इस नदी का उद्गम होता है। यह लॉरेंटियन पर्वत के केंद्रीय और पश्चिम भाग में बहती है। यहाँ से इसके मार्ग का उपयोग ओंटारियो के साथ इंटरप्रोविएनियल बॉर्डर को परिभाषित करने के लिए किया गया है। नदी कुछ स्थानों पर लगभग 460 फीट की गहराई तक पहुँचती है। जहाँ यह खत्म होने को होती है तो चौडियारे झरना और आगे ले जाता है। बहुत से झरना व छोटी नदियाँ इसमें मॉन्ट्रियल से पहले मिलकर ओटावा नदी को बनाते हैं।
ओटावा नदी 1,271 किलोमीटर (790 मील) लंबी है; यह 146,300 वर्ग किलोमीटर (56,500 वर्ग मील) के क्षेत्र में, क्यूबेक में 65 प्रतिशत और ओंटारियो के बाकी हिस्सों में 1,950 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड (69,000 घन फीट/सेकंड) के साथ जल निर्वहन होता है। इस नदी का वार्षिक औसत जलप्रपात मापा जाता है। कारिल्लों बांध, दो पहाड़ों की झील के पास, 1,939 घन मीटर प्रति सेकंड (68,500 घन फीट/सेकंड) है, जिसका औसत वार्षिक चरम 749 से 5,351 घन मीटर प्रति सेकंड (26,500 से 189,000 घन फीट/सेकंड) है। 1964 से रिकॉर्ड ऐतिहासिक स्तर 2010 में 467 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड (16,500 क्यू फीट/सेकंड) और 2017 में 9,094 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड (321,200 क्यूबिक फीट/सेकंड) का उच्च स्तर है।
यह नदी हजारों वर्षों में निर्मित पर्णपाती और शंकुधारी वन के बड़े क्षेत्रों से होकर बहती है। पेड़ों ने हिमयुग के बाद ओटावा घाटी को याद किया था। आम तौर पर शंकुधारी वन और ब्लूबेरी दलदल ग्लेशियरों को पीछे छोड़ते हुए या मिट्टी के सब्सट्रेटा वाले गीले क्षेत्रों में पुराने रेत के मैदानों पर पाए जाते हैं। बर्च, मेपल, बीच, ओक और लाख के वर्चस्व वाले पर्णपाती वन, बेहतर मिट्टी के साथ आमतौर पर ला वेरेन्ड्री पार्क के साथ सीमा के आसपास अधिक मेसिक क्षेत्रों में होते हैं।
ओटावा नदी में आर्द्रभूमि के बड़े क्षेत्र हैं। कुछ और अधिक जैविक रूप से महत्वपूर्ण आर्द्रभूमि क्षेत्रों में शामिल हैं। (पेम्ब्रोक से नीचे की ओर जाना), वेस्टमथ सैंड ड्यून/वेटलैंड कॉम्प्लेक्स, मिसिसिपी स्नी, ब्रेकेनरिज नेचर रिजर्व, शिरलिस बे, ओटावा बीच (एंड्रयू हैडन पार्क, पेट्री द्वीप, बतख द्वीप(और ग्रीन्स क्रीक रेत टिब्बा/आर्द्रभूमि परिसर इसके अपेक्षाकृत प्राचीन रेत के टीलों के लिए महत्वपूर्ण है, जिनमें से कुछ ओटावा नदी और कई जुड़े दुर्लभ पौधों के साथ बने हुए हैं।
शिरलिस बे में जैविक रूप से विविध तटरेखा बनाती है, साथ ही नदी के किनारे सबसे बड़े चांदी के मेपल दलदल में से एक है। सभी आर्द्रभूमि की तरह ये जल स्तर में मौसमी उतार-चढ़ाव पर निर्भर करते हैं। उच्च जल स्तर चांदी मेपल दलदल बनाने और बनाए रखने में मदद करते हैं; जबकि कम पानी की अवधि कई दुर्लभ आर्द्रभूमि पौधों को उभरती रेत और मिट्टी के प्लाटों पर बढ़ने देती है।
पांच प्रमुख आर्द्रभूमि में वनस्पति के प्रकार हैं, एक दलदल है, ज्यादातर चांदी का मेपल है। वनस्पति के चार प्रकार हैं, उनमें प्रमुख पौधों की प्रजातियों का नाम दिया गया हैः सिरपस, एलोचारिस, स्पार्गनियम तथा टाईप, किसी विशेष स्थान में कौन सा प्रकार होता है, यह सब्सट्रेटा प्रकार, पानी की गहराई, बर्फ-खुरदरापन और प्रजनन क्षमता जैसे कारकों पर निर्भर करता है।
अंतर्देशीय और ज्यादातर नदी के दक्षिण में, पुराने नदी चैनल, जो बर्फ की उम्र के अंत तक वापस आते हैं और अब बहता पानी नहीं है, कभी-कभी एक अलग वेटलैंड प्रकार, पीट बोग से भरा होता है। उदाहरणों में मेर ब्ल्यू और अल्फ्रेड बोग शामिल हैं। किचिसुपी नदी के जलक्षेत्र में रहने वाले अल्गुनकिन लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।यह किचिसुपी नदी कहलाती है, जिसका अर्थ है “महान नदी“ एनीसिनबेमोविन, अलगॉनक्विन भाषा में कहते है। अलगॉनक्विन ने खुद को नदी पर अपनी स्थिति के संदर्भ में परिभाषित किया। लेकिन पूरी ओटावा घाटी अलगॉनक्विन पारंपरिक क्षेत्र है।
कुछ शुरुआती यूरोपीय खोजकर्ताओं ने संभवतः ओटावा नदी को ऊपरी सेंट लॉरेंस नदी की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण माना, नाम लागू किया नदी कनाडा मोंट्रियल में संगम के नीचे ओटावा नदी और सेंट लॉरेंस नदी की सीमा के रूप में ग्रेट लेक्स स्पष्ट हो गया और ओटेवा नदी को एक सहायक नदी के रूप में माना जाने लगा, इसे विभिन्न रूप में जाना जाता था ग्रांड नदी, “महान नदी“ या अलगॉनक्विन की भव्य नदी इससे पहले कि वर्तमान नाम पर तय किया गया था।
1615 में शमूएल डी चमपैन तथा अल्गौक्विन गाइडों द्वारा सहायता प्राप्त करने वाले, पहले यूरोपीय थे, जिन्होंने ओटावा नदी की यात्रा की और ग्रेट लेक्स के लिए फ्रेंच नदियों के साथ पश्चिम में जल मार्ग का अनुसरण किया। निम्नलिखित दो शताब्दियों के लिए, इस मार्ग का उपयोग किया गया था। फ्रेंच फर व्यापारी कनाडा के इंटीरियर के लिए यात्रा किये थे। नदी ने इन यात्रियों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर दिया था। 1800 में खोजकर्ता डैनियल हार्मन ने ओटावा के इस खंड के साथ खतरनाक जल में डूबने वाले यात्रियों की मौतों को चिह्नित करते हुए 14 क्रॉस की सूचना दी।
नदी के किनारे मुख्य व्यापारिक पोस्ट थेः लछिन, फोर्ट कूलॉन्ज, लाक देस एलुमेट्स, मटवा हाउस, जहां पश्चिम से चलने वाले डोंगी नदी को छोड़ देते हैं। फोर्ट टेमिसमिंगु एबिटि नदी और जेम्स ब लेक टिमिस्किमिंग से एक बंदरगाह उत्तर की ओर चला गया ।
19 वीं शताब्दी की शुरुआत में, ओटावा नदी और उसकी सहायक नदियों का उपयोग बड़े कुंवारी जंगलों तक पहुंचने के लिए किया गया था।सर्दियों में लकड़ी के शिविरों के लिए मानव शक्ति प्रदान करने के लिए नदी के किनारे छोटे-छोटे कृषक निर्वाह समुदायों का विकास हुआ।
1812 के युद्ध से ओटावा नदी को सामरिक महत्व प्राप्त हुआ, कैरीलन कैनाल पूरा किया गया था। इसके साथ रिदेउ नहर, कैरिलन नहर का निर्माण एक वैकल्पिक सैन्य आपूर्ति मार्ग प्रदान करने के लिए हुआ था। किन्टाल तथा झील ओंटारियो, के साथ मार्ग को सेंट लॉरेंस नदी में विद्युत उत्पादन हेतु उपयोग किया था।
एक लुगदी और कागज मिल और कई पनबिजली बांधों का निर्माण इस नदी पर किया गया है। 1950 में बांध बनाया गया था, इसके पीछे होल्डन झील का निर्माण किया गया था। इन हाइड्रो बांधों का तटरेखा और आर्द्रभूमि पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। माना जाता है कि बांधें ही जैवविविधता नष्ट करने और भगाने के लिए भी जिम्मेदार हैं। अमेरिकी ईल, जो कभी इस नदी में प्रचुर मात्रा में प्रजातियां थीं, लेकिन जो अब असामान्य हैं। आर्थिक मार्ग के रूप में, इस नदी का महत्व 20वीं शताब्दी में रेलमार्गों और राजमार्गों द्वारा ग्रहण किया गया था। यह अब लॉग ड्राइविंग के लिए उपयोग नहीं किया जाता है। हालांकि, यह अभी भी बड़े पैमाने पर मनोरंजक नौका विहार के लिए उपयोग किया जाता है।
ओटावा जो कनाड़ा की व्यापारिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक नदी भी है वह अब केवल पर्यटन और आर्थिक लाभ कमाने के लिए भी काम आती है। मैंने ओटावा नदी में मैंने स्वयं लोगों को मछली पकड़ते हुए देखा है। सामुदायिक लोगों को मुझे स्वयं को भी मछली पकड़ने को कहा था। यह सब आनंद हेतु यहाँ के लोग इस नदी के विषय में गौरव-सम्मान और विश्वास से बताते हुए बहुत प्रसन्नचित्त दिखायी देते है। नदी को पुनर्जीवित करने हेतु सरकार ने अच्छा काम किया। समाज ने सरकार को काम में योगदान दिया। अच्छे काम करने हेतु निगरानी रखी है। इसलिए अब यह शुद्ध सदानीरा बनकर बहती है। हमारी गंगा जी भी एक दिन ऐसी बनकर बहेगी। अब हमें ओटावा से सीख लेनी चाहिए।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। यहां प्रकाशित आलेख उनके निजी विचार हैं।