-संजय सिंह*
झांसी: कोरोना (कोविड-19) महामारी के कारण हुए लाॅकडाउन के बाद कई तरह की समस्याऐं उत्पन्न हो गयी है। इस दौरान महानगरों से लाखों की तादात में मजदूरों के द्वारा अपने घर तक पहुचने के लिए पलायन किया गया। पहले बुुन्देलखण्ड मेें रोजगार के साधन ना होने के कारण लोग मजदूरी करने के लिए दिल्ली, हरियाणा, पंजाब जाते रहे। लेकिन अब लाॅकडाउन होने के कारण बुन्देलखण्ड मेें जिस तरह से इस बार रिवर्स माइग्रेशन (घर वापसी) का जो दृश्य देखने को मिला, वह बहुत ही भयावह एवं डरावना है। लाॅकडाउन के दौरान बुंदेलखंड के क्षेत्र के लगभग तीन लाख मजदूर वापस आये है जो उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड में 14 जिले के है, दोनो प्रदेश के बुन्देलखण्ड में इन जिलों में 2 करोड के लगभग आबादी हैं।
लाॅकडाउन होने से बुन्देलखण्ड के मजदूरों की घर वापिसी यह बताती है कि बुन्देलखण्ड से कितने बडे पैमाने पर लोग अपनी आजीविका चलाने के लिए पलायन करते है। इसी के आधार पर परमार्थ संस्थान के द्वारा किये गये एक अध्ययन में यह निकलकर आ रहा है कि इस लाॅकडाउन पर मजदूरों को एक बडी आर्थिक तंगी का सामना करना होगा जिससे गांव लौटे इन मजदूरों हालत और अधिक खराब होगी।
गांव में अभी हाल के ही दिनों मेें गेहूं की कटाई प्रारम्भ हुयी है। अधिकांश घरों में खाद्यान्न का संकट है, जिससे गांव में खाद्यान्न संकट उत्पन्न होने के स्थिति है। अब यह देखना होगा कि राज समाज मिलकर इस संकट को कैसे दूर करते है। वही दूसरी ओर सबसे ज्यादा संकट उनके लिए है जो लोग रोज कमाते एवं खाते थे। पिछले दिनों हुये सम्पूर्ण बंदी से उनके सामने आजीविका एवं भोजन का संकट पैदा हो गया है। ऐसे परिवारों की भोजन उपलब्ध कराने का कार्य पूरे देश भर में सामाजिक संस्थाओं एवं सरकार पर है।
झांसी शहर मेें परमार्थ समाज सेवी संस्थान के द्वारा ऐसे लोगों की मदद करने के लिए कम्यूनिटी किचन के माध्यम से महानगरों से पलायन कर आये मजदूरों एवं शहर के जरूरतमंद परिवारों को भोजन का वितरण किया जा रहा है। संस्थान के द्वारा शहर श्रमिक बस्ती बस्तियों में राशन सामग्री का वितरण किया जा रहा है जिससे हर रोज मजदूरी कर अपनी आजीविका चलाने वाले लोगों के पास खाद्यान्न उपलब्ध रहे। सम्पूर्ण बंदी के कारण लोगों की आजीविका प्रभावित है आने वाले 15 दिन लोगों के लिए अत्यधिक संकट के है। ऐसे में परमार्थ संस्थान एवं हिन्दुस्तान यूनिलीवर लिमीटेड के द्वारा झांसी के तीन श्रमिक बस्ती जोहर नगर, सखीपुरा वार्ड नं0 29 एवं हंसारी की ग्वालटोली 300 परिवारों को 15 दिन की राशन सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है। इस किट में इसमें 25 किलो आटा, 10 किलो चावल, 05 किलो दाल, 1 किलो सरसो का तेल, हल्दी, धनिया, मिर्च, गरम मसाले सहित सैनिटेशन किट उपलब्ध करायी गयी है। संस्थान के द्वारा आने वाले दो दिनों में इन बस्तियों में यह सामग्री वितरित की जायेगी।
आज हमें यह सोचने की आवश्यकता है कि जिस तरह से लोग परिवार के साथ बुन्देलखण्ड को छोडकर जाते है, उनके साथ रहने वाले बच्चे जो महानगरों में शिक्षा से वंचित हो जाते है एवं तमाम तरह के संकट को झेलते हुए वह, वहां अपना जीवन चलाते है। मैं ऐसे अवसर पर सरकार एवं समाज से विनती करना चाहूंगा यह एक ऐसा अवसर है जब बडे पैमाने पर एक साथ मजदूरों की घर वापिसी हुयी है। कोरोना के संकट के बाद राज एवं समाज कुछ इस तरह का प्रबन्ध करे कि गांव आने वाले मजदूर भाई-बहिन गांव छोडकर ना जाये। इनकों यही पर रोजगार मिले।
मेरा इन सात दिनों में लगातार वापस लौटने वाले मजदूरो के साथ संवाद हुआ है। सब ने भारी मन से कहा है कि यदि उन्हें गांव में ही रोजगार मिल जाये तो उन्हें मजबूरी मेें गांव ना छोडना पडे। बुन्देलखण्ड के राजनेताओं, सामाजिक संगठनों, प्रबुद्ध नागरिकों, प्रशासन को इस दिशा मेें बैठकर सोचने का एक अवसर है जिससे हम बुन्देलखण्ड की जवानी को गांवों में रोक सके।
*लेखक परमार्थ समाज सेवी संस्थान के प्रमुख हैं। यहां प्रकाशित लेख उनके निजी विचार है।
A very big and difficult task but rightly highlighted by Mr. Sanjay Singh.
We all have to change our thought process.
All govt.institutions, Big private players, policy makers, politicians and general citizens have to come forward to provide employment to these poverty stricken daily wage labourers at their homeland.
Very important issue raised.