– प्रशांत सिन्हा
उत्तराखण्ड और हिमाचल में इस वर्ष भी बादल फटने की खबरें आ रही हैं। पिछ्ले कुछ वषों से ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। इससे जान माल की काफी नुकसान होता है। 2013 में केदारनाथ और 2010 में लद्दाख क्षेत्र के लेह में बादल फटने से भारी तबाही हुई थी। बादल कैसे फटते हैं ? मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार जब एक जगह पर अचानक एक साथ भारी बारिश हो जाए तो उसे बादल फटना कहते हैं। जिस तरह से अगर पानी से भरे किसी गुब्बारे को फोड़ दिया जाए तो सारा पानी एक ही जगह तेजी से नीचे गिरने लगता है। ठीक वैसे ही बादल फटने से पानी से भरे बादल की बूंदें तेजी से अचानक जमीन पर गिरती है। वैज्ञानिक बताते हैं जब बादल बड़ी मात्रा में पानी के साथ आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है तब वे अचानक फट पड़ते हैं। आखिर यह बाधा कैसी है जिसके कारण बादल अचानक फट पड़ते हैं ? बादलों के यह बाधा हिमालय पर्वत है। इसलिए ज्यादातर बादल फटने की घटनाएं इस क्षेत्र में होता है। इसके अलावा बादल को अगर गर्म हवा के संसर्ग मे आता है तो उसे फटने की आशंका बन जाती है। ऐसी घटना मुंबई में 2005 को हुआ था जब बादल पहाड़ों से टकराकर नही बल्कि गर्म हवा से टकड़ा कर फटा था जिससे मुंबई को बहुत नुकसान पहुंचा था।
लगातार बढ़ रही बादल फटने की घटनाओं को विश्वयापी या भूमंडलीय तापक्रम ( ग्लोबल वार्मिंग ) के कारण जलवायु परिवर्तन ( क्लाइमेट चेंज ) का असर हो सकता है। वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा बढ़ने को ग्लोबल वार्मिंग एवं क्लाइमेट चेंज का कारण माना जाता है। वातावरण की मुख्य ग्रीन हाउस गैसें पानी की भाप, कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस और ओजोन मुख्य हैं।
बादल फटने की वजह वनों के असमान वितरण भी हो सकता है। मैदानी भाग में मौनसूनी हवाओं को अनुकुल वातावरण नही मिल पाता है और पर्वत क्षेत्रों मे घने वनों के ऊपर पहुंच कर मौनसूनी बादल फट पड़ते हैं। इसलिए मैदानी क्षेत्रों में वनीकरण की आवश्यकता है।
पर्यावरणविद बांधों के निर्माण को भी इसका कारण मानते है। कहा जाता है कि टिहरी बांध के अस्तित्व मे आने के बाद इस तरह की घटनाओं की संख्या बढ़ी है। पूरे उत्तराखण्ड में जल विद्युत परियोजनाएं चल रही है। नदी का प्राकृतिक बहाव रोकने से प्रकृति मुश्किल मे आ गई है। इसलिए बादल फटने की घटनाओं में तेजी आई है।
मौसम विज्ञान केंद्र के अधिकारी बताते हैं कि पिछ्ले कुछ वर्षों के डाटा का आंकलन करने पर पता चलता है कि पूरे मौनसून सीजन में बारिश तो एक समान रिकॉर्ड हो रही है लेकिन इस दौरान रेनी डे ( किसी एक जगह, एक दिन में 2.5 m m या उससे अधिक बारिश रिकॉर्ड होती है तो उसे रेनी डे कहते हैं ) की संख्या में कमी आ रही है। इसका मतलब यह हुआ कि जो बारिश सात दिनों में होती थी वह तीन दिनों में ही हो रही है जिससे स्थिती बिगड़ रही है।
विज्ञान की निरंतर भाग दौड़ तथा मानव का भौतिकवाद और असंतुष्ट लोभ प्राकृतिक संकलनों संसाधनों को तीव्रता से नष्ट करता जा रहा है। हमारा भरा पूरा संसार प्रदूषण मे मायाजाल में फंसकर विनाश की ओर जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग , क्लाइमेट चेंज इत्यादि पर्यावरण से छेड़छाड़ का नतीजा है जिसके कारण बादल फटने जैसी घटनाएं बढ़ रही है। पर्यावरण को बचाने के लिए उचित कदम उठाने के उपाय ज्ञानेंद्र रावत जैसे वरीय पर्यावरणविद द्वारा सुझाए गए हैं। यदि हम इस दिशा में थोडी भी कोशिश की जाए तो ऐसी घटनाओं पर नियंत्रण किया जा सकेगा।
well explained !!Your concern for environment is remarkable .