-ज्ञानेन्द्र रावत*
देश में कोरोना का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा। देखा जाये तो सरकार के सभी प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। दिल्ली की बदहाली देखकर केन्द्र और राज्य की केजरीवाल सरकार दीवाली बाद होश में आयी है जबकि पूरा देश कोरोना के चंगुल में था। कोरोना कम कब हुआ था यह देश की जनता की समझ से परे है। वह चाहे छोटे शहर हों, महानगर हों, बाजार हों, गली-मुहल्ले हों, राज्यों की राजधानियां हों या देश की राजधानी दिल्ली, कहीं भी न तो सोशल डिस्टैंसिंग के नियम का पालन हो रहा था, न लोग मास्क ही लगा रहे थे।
लाकडाउन के खत्म होने के बाद आम जन जीवन कोरोना के आगमन से पहले दिनों की तरह सामान्य जैसा ही चल रहा था। अगर कोई कुछ कहता भी था कि भाई मास्क तो पहन लो, तो लोग कहते थे कि तुम्हें ज्यादा कोरोना- कोरोना लगा है। लोग खुले में घूम रहे हैं, ना हाथ धो रहे हैं, ना सोशल डिस्टैंसिंग का पालन कर रहे हैं, वे तो बाजार में चाट-पकौड़ा खा रहे है, पहाडों पर घूमने जा रहे हैं, सैर-सपाटा कर रहे हैं, कहीं कुछ हो रहा है क्या? कुछ नहीं होता। यह सब कहने की बात है। तुम्हें ही कोरोना का यह डर बहुत सता रहा है। विडम्बना देखिए उस समय देश और देश के रहनुमा कोरोना की भयावहता को नकारकर,धता बताते हुए कहीं तो किसी और की सरकार गिरा अपनी बनाने की जोड़-तोड़ में लगे थे, राज्यों में चुनाव करा रहे थे, अपनी सरकार बनाने की ख़ातिर सभी नियम कानून की धज्जियां उड़ा रहे थे।
मजे की बात यह कि दीवाली पर क्या देश में कोरोना खत्म हो गया था? उस समय बाजारों में बेतहाशा भीड़ सरकार को नजर नहीं आ रही थी, बाजार खुले थे, माल खुले थे, इनपर कोई अंकुश नहीं था। दीवाली मनाने, पटाखों पर प्रतिबंध होने के बावजूद उनकी धड़ाधड़ बिक्री और व्यापारियों को कमाने की सरकार ने खुली छूट दे रखी थी। व्यापारियों को कमाने, बाजारों को खोलने की खुली छूट दी गयी और बाजारों की बेतहाशा भीड़ को नजर अंदाज किया गया जहां न सोशल डिस्टैंसिंग का कोई नियम लागू था और न लोग मास्क का ही इस्तेमाल कर रहे थे। दीवाली बाद कोरोना देश में भयावह स्तर पर पहुंच गया है और तुरंत केन्द्र सरकार हरकत में भी आ गयी है। गृहमंत्री अमित शाह को तुरंत हाई लेविल मीटिंग करने की जरूरत महसूस होने लगी। यही नहीं जिसे पानी पी पीकर वह कोसते नहीं थकते थे, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को भी साथ लेकर जनता के स्वास्थ्य को लेकर अपनी चिंता जाहिर करने में लग गये। लोगों से कोरोना से बचाव के नियम पालन करने, अस्पतालों में बैड बढ़ाने, रोजाना डेढ़ लाख टैस्ट करने की दुंदुभि बजाने लगे।
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सोचने वाली बात यह है कि क्या दीवाली से पहले दिल्ली में प्रदूषण कम था ,उस समय प्रदूषण के लिए पास के राज्यों की पराली को ही जिम्मेदार बताया जा रहा था और उस वक्त दिल्ली धुंध की चादर से ढकी थी , हालात में बदलाव तो अब भी कुछ नहीं है। जबकि उस समय लोग सांस, खांसी, दमा, फेफड़े आदि की बीमारी से पीड़ित अस्पतालों की ओर भाग रहे थे। गौरतलब है कि उस समय एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया बार बार यह कह रहे थे कि यह प्रदूषण कोरोना के विस्तार को और हवा देगा। उस समय किसी भी सरकार ने इस ओर ध्यान देना तक गवारा नहीं किया। अब समस्या यह है कि किसे सही मानें और किसको गलत।
अब हालत यह है कि देश फिर कोरोना से त्राहि त्राहि कर रहा है। देश में कोरोना से अब तक नब्बे लाख के पार कोरोना के मरीज हो चुके हैं और करीब एक लाख बत्तीस हजार सात सौ छब्बीस मौतें हो चुकी हैं। छियालीस हजार चार सौ बत्तीस नये केस सामने आ चुके हैं। चार लाख उनतालीस हजार एक्टिव केस हैं। राज्यों में लगातार कोरोना संक्रमितों की तादाद बढ़ती जा रही है। दिल्ली के बाद गुजरात, राजस्थान और आंध्र सबसे ज्यादा प्रभावितों में हैं जबकि महाराष्ट्र पहले ही शीर्ष पर है। गुजरात में अहमदाबाद, सूरत, बड़ोदरा आदि महानगर हाई अलर्ट पर हैं। मध्य प्रदेश में रतलाम, भोपाल, इंदौर, विदिशा आदि पांच शहरों में रात का कर्फ्यू लगा दिया गया है। मुंबई में इकत्तीस दिसम्बर तक स्कूलों को बंद कर दिया गया है। उत्तराखंड में मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी सील कर दी गयी है। लेकिन दुख इस बात का है कि देश का मीडिया नरेन्द्र मोदी की सरकार के कसीदे पढ़ने में ही लगा है जबकि आज भी दावे कुछ भी किए जायें, हकीकत यह है कि कोरोना पर अंकुश का सवाल बेमानी ही है। अब भी कोरोना वैक्सीन की समीक्षा की बैठक ही हो रही है, वैक्सीन जल्दी आयेगी, इस झुनझुने का राग न जाने कब से अलापा जा रहा है। देश में ही वैक्सीन का निर्माण हो रहा है, उसका परीक्षण हो रहा है, यह सुनते- सुनते कान पक गये हैं। अकेले दिल्ली में आठ हजार एक सौ चौंसठ लोग कोरोना की भेंट चढ़ चुके हैं।
अब आकर सरकार कह रही है कि दिल्ली में चौदह लाख घरों में सर्वे कराने का निर्णय लिया गया है। टीचर्स आशा वर्करों के साथ घर-घर जाकर होम क्वाराइंटाइन के तरीके बता रही हैं। टेस्टिंग की जगह बता रही हैं। मास्क न पहनने पर आज यानी इक्कीस नवम्बर से दो हजार का चालान काटे जा रहे हैं। सार्वजनिक स्थल पर थूकने, गुटखा खाने पर भी पाबंदी है। ऐसा करने पर चालान किया जा रहा है। किसी राज्य में कोरोना के मद्देनजर रात का कर्फ्यू लगाया जा रहा है। स्कूल तो अब बंद ही रहेंगे। यह घोषणा की जा रही है। कहीं कुछ दिनों के लिए लाकडाउन लगाया जा रहा है। हिमाचल में लाहौल स्पीति का पूरा गांव कोरोना पाजिटिव मिला है। गाजियाबाद की किसी सोसाइटी में कहीं तीस तो कहीं बत्तीस पाजिटिव मिल रहे हैं। यह हालत देश के अधिकांश हिस्सों की है। लेकिन न तो कहीं भी सैनिटाईजेशन की व्यवस्था है और न फागिंग की। सरकारी अस्पतालों में लोग जाने से ही डर रहे हैं। निजी अस्पताल लूट रहे हैं। नर्सिंग होम्स में फिजीशियन आ नहीं रहे। प्राइवेट डाक्टर देख नहीं रहे हैं । यदि आम बीमारी वाले को कहीं देख भी रहे हैं तो दूर से, वह भी दोगुना फीस लेकर।
इस सबके बीच असलियत में आम जनता पिस रही है। गरीब जाये तो जाये कहां? इन हालात में ऐसा लगता है कि सरकार ने जनता को उसके हाल छोड़ दिया है। दावे कुछ भी किए जायें दुनिया के हालात सबूत हैं कि कोरोना से फिलहाल अगले साल तक मुक्ति की आशा बेमानी है। ऐसे में अपना बचाव ही कारगर उपाय है। इसमें काढ़ा पीना, विटामिन सी व गिलोय का इस्तेमाल, सोशल डिस्टैंसिंग का पालन, बार बार हाथ धोना और जरूरत हो तभी बाहर जायें वह भी मास्क पहन कर यही सबसे अहम है। तभी कुछ हद तक कोरोना के कहर से बचा जा सकता है। सरकार के भरोसे तो किसी भी कीमत पर नहीं जिसकी स्वास्थ्य सुविधाओं का स्तर दुनिया में एक सौ बयालीसवां है। उस दशा में जनता के स्वास्थ्य का भगवान ही मालिक है।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।