दो टूक
– ज्ञानेन्द्र रावत*
कोरोना संक्रमण देश में अब भयावहता की सीमा पार कर चुका है और संक्रमितों का आंकडा़ तेरह लाख को भी पार कर गया है। बीते चौबीस घंटों में एक लाख अस्सी हजार लोगों का कोरोना संक्रमित होना यह साबित करता है कि कोरोना अब घर के दरवाजे आकर खड़ा हो गया है तो कुछ गलत नहीं होगा। जो लोग आस्था के वशीभूत हो कुंभ में गंगा स्नान कर वापस आये हैं, उनके संपर्क में न आयें, न उनसे मिलें। उनसे दूरी बनाये रखें। कारण यह कहना कि कुंभ में गंगा में स्नान करने से कोरोना नहीं होगा, यह सरासर जनता, परिवार और अपने सगे-संबंधियों के साथ धोखा है।
समझ नहीं आता कि जब धारा 144 के तहत चार से अधिक लोग एक जगह इकट्ठे नहीं हो सकते, तो धार्मिक आस्था के बहाने करोड़ों लोगों को कुंभ में जाकर गंगा स्नान की इजाजत देना कहां का न्याय है। यह साफ तौर पर निरीह धर्म परायण जनता को मौत के मुंह में झौंकने जैसा है। इससे जाहिर हो जाता है कि सरकार को जनता के जीवन की कितनी चिंता। है।
याद रखियेगा कि यदि हम जिंदा रहेंगे तभी कोरोना नामक महामारी से लड़ पायेंगे।विडम्बना देखिए जो सरकार पिछले साल तबलीगी जमात के जलसे को कोरोना के विस्तार के लिए जिम्मेदार मान रही थी, वही सरकार कुंभ में करोडो़ हिंदू भक्तों के इकट्ठे होने को कैसे जायज करार दे सकती है? काश यह धारणा सच हो जाये कि कुंभ से कोरोना के विस्तार के लिए कोई खतरा नहीं है और गंगा में डुबकी लगाने से कोरोना मर जायेगा!
हमें इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि हम भीड़ भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें। हालत तो ये है कि अभी चल रहे चुनावी रैलियों में नेताओं को सिर्फ भाषण देना ही नज़र आ रहा है। ये नेतागण तो सिर्फ इन रैलियों में लाखों की तादाद में जो भीड़ उमड़ रही है उन्हें देख खुश हो रहे हैं पर ऐसे में जो कोरोना प्रोटोकॉल का उल्लंघन हो रहा है उसे साफ़ नज़र अंदाज करना एक खतरनाक अंजाम ही देगा।
बड़े से बड़ा नेता, यहां तक की प्रधान मंत्री को भी उनकी रैलियों में बिना मास्क लगाए लोगों को टोकते तो अभी तक तो नहीं देखा गया है। सोशल डिस्टन्सिंग की तो धज्जियाँ उड़ चुकी हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े भी अब चुनाव वाले राज्य पश्चिम बंगाल में कोरोना के जोर पकड़ने की बात बताने लगे हैं। यह बहुत ही चिंता का विषय ही नहीं बल्कि डराने वाली बात है। देश का गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय इन चुनावी रैलियों में उनके द्वारा दिए गए कोरोना सम्बंधित दिशा निर्देश के उल्लंघन की तरफ आँख मूंदे हुए है। यह लज्जा की बात ही नहीं पर इस पर सभी सम्बंधित विभागों पर कानूनी कार्रवाई भी होनी चाहिए।
हालत इतनी खराब है कि मरीज ले जाने के लिए एंबुलैंस नहीं हैं, एंबुलैंस है तो उसमें आक्सीजन नहीं है, अस्पतालों में बैड तक नहीं हैं, वहां डाक्टर नहीं हैं, डाक्टर हैं तो नर्स नहीं है, नर्स है तो वार्ड बॉय नहीं हैं, दवाई नहीं हैं, इंजैक्शन नहीं हैं, जेब में रुपये हैं लेकिन बाजार में इंजेक्शन नहीं हैं, रोगी दर-दर भटकने को मजबूर हैं। रोगी को घर पर रखकर आक्सीजन दें तो बाजार में आक्सीजन का सिलैंडर नहीं है। अस्पतालों और टीकाकरण सेंटर पर वैक्सीन नहीं है। हालात से जूझते आखिरकार मरीज मर जाये तो उस हालत में शमशानों और कब्रिस्तानों में जगह नहीं है।
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इन हालातों ने कोरोना से निपटने के सरकारी दावों की पोल खोल कर रख दी है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक में टीकाकरण केन्द्रों पर वैक्सीन खत्म होने और टीका लगवाने आये लोगों द्वारा शोर-शराबा किये जाने की खबरें आ रही हैं। ऐसी हालत में देश के दूरदराज ग्रामीण इलाकों की तो बात ही दीगर हैं। ऐसी स्थिति में देश में बहुतेरे राज्यों में सैकड़ों टीकाकरण केन्द्रों को बंद करना पड़ा है।
अब यह तो जगजाहिर है कि देश में वैक्सीन की कमी का भी संकट है। दुर्भाग्य तो यह है कि इतने प्रयास और प्रचार के बावजूद वैक्सीनेशन का आंकडा़ बीस फीसदी के करीब भी नहीं पहुंच पाया है। सबसे चिंतनीय बात तो यह है कि सरकार ने एक सौ पैंतीस करोड़ की आबादी को दो कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों के भरोसे छोड़ रखा है। जबकि फिलीपींस जैसे छोटे देश में जानसन एण्ड जानसन सरीखी छह कोरोनारोधी कंपनियों के विकल्प मौजूद हैं। जब देश कोरोना संक्रमण के भयावह दौर से गुजर रहा है, दिनोंदिन कोरोना संक्रमितों की मौत के मुंह में जाने का आंकड़ा सुरसा के मुंह की भांति बढ़ रहा है, उस हालत में प्रधान मंत्री का कोरोना वैक्सीन दुनिया के 86 देशों को निर्यात करना कितना युक्तिसंगत है?
यह प्रतीत होता है कि अब सरकार के भरोसे रहने से कुछ नहीं होने वाला। यदि कोरोना को हराना है, अपनी अपने परिवार की जिंदगी बचानी है तो दो गज की दूरी रखिये, मास्क नाक तक चढ़ा कर रखिये और जहां तक संभव हो घर में ही रहिये। इसमें आपका कुछ नहीं जायेगा। अपनी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए जो संभव हो वह कीजिये और साथ ही काढ़ा पीजिये, भाप लीजिये और गार्गल कीजिये।
बहरहाल अब यह तो तय है कि अब कोरोना से बचने के लिए हमें ही कुछ करना है। ऐसी विकट परिस्थिति में जब हमारी जिंदगी ही दांव पर है, उस हालत में हमें आखिरकार प्रख्यात गीतकार गुलजार साहब की सलाह मान लेनी चाहिए तभी मेरे देशवासियो तुम्हारी ये जिंदगी बच सकती है। उनके शब्दों में:
“बे वजह घर से निकलने की जरूरत क्या है,
मौत से आंखें मिलाने की जरूरत क्या है,
सबको मालूम है बाहर की हवा है कातिल,
यूंही कातिल से उलझने की जरूरत क्या है,
जिंदगी एक नेमत है उसे संभाल के रखो,
कब्रगाहों को सजाने की जरूरत क्या है,
दिल बहलाने को घर में वजह हैं काफी,
यूंहीं गलियों में भटकने की जरूरत क्या है।”
*वरिष्ठ पत्रकार और चर्चित पर्यावरणविद।प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।