– डा. रक्षपाल सिंह चौहान
उत्तर प्रदेश सरकार के संरक्षण में पारदर्शिता के साथ संपन्न बीएड प्रवेश परीक्षा, शिक्षक पात्रता परीक्षा (टेस्ट) एवं शिक्षक भर्ती परीक्षा (सुपर टेस्ट ) तथा उनके पारदर्शी मूल्यांकन के मद्देनजर प्रदेश की शिक्षण-प्रशिक्षण व्यवस्थाएँ बदहाली की शिकार हैं और सरकार बेखबर है। सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि बेसिक, माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा व्यवस्थाओं के साथ ही प्रशिक्षण व्यवस्थाओं में व्याप्त घोर विकृतियों को सुधारे व सम्भाले।
सरकार के संरक्षण में आयोजित उक्त परीक्षाओं के आयोजन व उनके मूल्यांकन में पूरी ईमानदारी एवं पारदर्शिता बरते जाने के कारण परीक्षार्थियों की योग्यता का सही मूल्यांकन होने से एक ओर जहाँ नियुक्तियों हेतु योग्यतम उम्मीदवारों का चयन हो रहा है ,तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश के अधिकांश स्कूलों व विश्विद्यालयों में पठन-पाठन एवं परीक्षाओं की मूल्यांकन दुर्व्यवस्थाओं की कलई खुल रही है।
कैसी विडम्बना है कि स्कूल व स्नातक स्तर पर प्रथम व द्वितीय श्रेणी प्राप्त अभ्यर्थी गण बीएड प्रवेश परीक्षाओं में 5-10% अंक न पाने पर भी बीएड प्रशिक्षण के लिये योग्य माने जाते हैं तथा बीएड की डिग्री पाकर शिक्षक पात्रता परीक्षा में भी 5-10% अंक प्राप्त नहीं कर पाते। स्नातक डिग्रीधारीयों की ये दयनीय स्थिति बेसिक, माध्यमिक एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में पठन पाठन, परीक्षाओं व उनके मूल्यांकन पर सवालिया निशान लगा रही है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि शिक्षक पात्रता परीक्षा एवं शिक्षक भर्ती परीक्षा में सफल होने के लिये आरक्षित व अनारक्षित वर्गों हेतु न्यूनतम क्रमशः 55%,60%तथा 60% ,65% अंक प्राप्त करने होते हैं और गत वर्ष 2019 की इन परीक्षाओं में शामिल हुए लगभग 16 लाख परीक्षार्थियों में से लगभग 4 लाख अर्थात 25% परीक्षार्थी ही शिक्षक पात्रता परीक्षा में सफल हुए थे तथा उक्त 25% में से लगभग 1लाख 40 हज़ार अर्थात मात्र 9% अभ्यर्थी शिक्षक भर्ती परीक्षा में पास हो पाये और इस प्रकार 14•5 लाख बीएड प्रशिक्षित अभ्यर्थी बेरोजगार ही रहे।
ऐसी स्थिति में प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह प्रदेश की शिक्षण-प्रशिक्षण व्यवस्थाओं पर गंभीरतापूर्वक विचार करे । बीएड प्रवेश, शिक्षक पात्रता एवं शिक्षक भर्ती परीक्षाओं के परिणामों के मद्देनज़र सरकार को शुरूआती कदमों के बतौर बीएड प्रवेशों हेतु प्रवेश परीक्षा में न्यूनतम 45% अंक प्राप्ति की शर्त आवश्यक रूप से लागू करनी चाहिये जिससे 50% से अधिक शिक्षक बनने के सर्वथा अयोग्य बीएड प्रवेशार्थी 2 साल के बीएड प्रशिक्षण एवं उसके ऊपर खर्च होने वाली अरबों रुपये की बर्बादी( 2 साल के प्रशिक्षण पर लगभग 2 लाख रु प्रति अभ्यर्थी खर्च आता है) से बच सकेंगे। ऐसे निर्णय से भविष्य में बीएड प्रवेश के इच्छुक लाखों अयोग्य स्नातकों पर बहुत बड़ा सरकार का अहसान होगा ।
*लेखक प्रख्यात शिक्षाविद ,धर्म समाज कालेज, अलीगढ़ के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं डा. बी. आर. अम्बेडकर विश्व विद्यालय आगरा शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।