पुण्यतिथि पर विशेष
– ज्ञानेन्द्र रावत*
आज देश अपने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जिनके नेतृत्व में देश ने 1965 में पाकिस्तान के दर्प को खण्ड-खण्ड कर समूची दुनिया में भारतीय सेना की वीरता को स्थापित किया था, की पुण्यतिथि पर उन्हें अपनी भावभीनी श्रृद्धांजलि अर्पित कर रहा है।
लेकिन दुख इस बात का है कि देश का किसान कृषि कानूनों के विरोध में बीते महीनों से आंदोलित है। आज जवान और किसान की महत्ता समझ “जय जवान-जय किसान” का जयघोष करने वाले हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की आत्मा किसान की बदहाली पर ज़रूर व्यथित होगी और यह सोचने पर विवश होगी कि क्या मौजूदा सरकार का निर्णय वास्तव में सही है? यदि हाँ तो किसान आंदोलन करने को क्यों मजबूर हुए ? आज शास्त्री जी को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी की सरकार किसानों की बात को सुने।
सरकार की छवि आज धूमिल होती दिख रही है। आरोप लग रहे हैं कि कृषि कानूनों की आड़ में वह सिर्फ चंद पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने का काम कर रही है। ऐसी छवि किसी भी सरकार के लिए अच्छी नहीं हो सकती है।
आज हजारों किसान कानूनों के विरोध में सर्द रातों में सड़क पर सो रहे हैं। सरकार उन्हें बात चित के लिए 8 बार बुला चुकी है पर वह सिर्फ नए कानूनों के बारे में सुनाने का काम कर रही है ना कि किसानों को सुनने का। हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी हर हादसों पर ट्वीट कर दुःख जाहिर करते हैं – चाहे वह पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी सौरव गांगुली की खराब सेहत को लेकर हो या महाराष्ट्र में अस्पताल में आग की वजह से बच्चों की मौत पर हो या फिर इंडोनेशिया में हवाई दुर्घटना में हुई मौतों पर। यह उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है। पर जब वे आंदोलनकारी किसानों में से अनेकों की मौत पर कोई संवेदना नहीं प्रकट करते तो यह उनकी मानसिकता के प्रति एक संशय की स्थिति पैदा करता है। क्या किसान उनके दुश्मन हैं? किसानों ने तो आंदोलन में कोई मर्यादा नहीं तोड़ी है और एकाध अपवाद छोड़ अभी तक अहिंसात्मक तरीके से अपना विरोध जाहिर कर रहे हैं। उन्होंने अब तक 50 से ऊपर अपने साथी भी गँवा दिए हैं। यदि शास्त्री जी आज जीवित होते तो क्या ऐसा होने देते ? जय जवान जय किसान का उनका दिया नारा ने देश में क्रांति के बीज बोये थे। इस नारे ने देश के जवानों और किसानों को गौरवान्वित कर उनका हौसला बुलंद किया था।
विडम्बना तो यह है जबकि सत्तारूढ़ दल के शीर्ष नेता शास्त्री जी का नाम लेते नहीं थकते। यदि वह शास्त्री जी का इतना ही आदर करते हैं तो उनकी पुण्यतिथि पर सच्ची श्रृद्धांजलि यही होगी कि सरकार सिर्फ अपनी सुनाने की बजाय किसानों की भी सुने। क़ानून वापिस ले और सर्व सम्मति से नए क़ानून लाये। किसानों को खालिस्तानी या कांग्रेसी कहना शोभा नहीं देता। यदि वास्तव में यह सच है कि वे खालिस्तानी आतंकवादी हैं तो सरकार उन्हें बार बार वार्ता के लिए क्यों बुला रही है ? उनपर कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है ? सरकार यदि इन आंदोलनकारियों को किसान नहीं मानती और उन्हें सिर्फ आढ़तिया समझती है तो वह ग़लतफ़हमी की शिकार है। गाँव का किसान तो आढ़तियों से निपट लेगा पर उनका कहना है कि वह सरकार द्वारा समर्थित पूंजीपतियों से कैसे निपटेगा जब नए कानूनों में उसके अदालत में जाने का प्रावधान भी नहीं है ? ये आढ़तिये भी यदि आज त्रस्त हैं तो उनकी सुनवाई भी होनी ही चाहिए क्योंकि वे भी इसी देश के नागरिक हैं।
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यदि सरकार अपनी हठधर्मिता छोड़ कर क़ानून वापिस लेकर किसानों का विश्वास जीतने में कामयाब होती है तो यह उसके लिए एक बड़ी उपलब्धि ही होगी। सबके विमर्श के साथ नया क़ानून लाने में ही समझदारी है। इससे किसानों से तक़रार ख़त्म होगा और यही शास्त्री जी को एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी। ऐसे में सरकार की विश्वसनीयता भी बनी रहेगी और वह अपनी पूंजीपतियों के हाथ की कठपुतली होने की छवि को भी दूर करने में कामयाब होगी।
समय का तकाजा है कि सरकार किसान भगवान का मान रखते हुए हठधर्मिता त्यागकर उनकी मांगें मान ले। यदि सरकार ऐसा करती है तो यह देश के इतिहास का एक ऐसा अभूतपूर्व निर्णय होगा जो स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा। इससे अन्नदाता किसान की ही महत्ता नहीं बढे़गी बल्कि इससे शास्त्री जी के पदचिन्हों पर चलने के मौजूदा सरकार के दावे का भी मान बढे़गा। इसमें दो राय नहीं।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।
They are not farmers they are agents of some political parties who are playing with dirty game to destroy this democracy to mobocracy . If they succeed tomorrow another mob will come to restore Article 370 and also create Khalistan as a seperate country and many more. When government is ready to amend the clauses if any required in the interest of farmers then why they are adamant for repealing the act where is the justification in supporting them ?