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गंगा आंदोलन
हम भी जितने दिन जीवित रहेंगे, माँं गंगा के लिए ही समर्पित रहेंगे
– डॉ. राजेंद्र सिंह
आप जानते है कि 30.08.2020 को स्वामी शिवानंद सरस्वती जी के आमरण अनशन का 28 वां दिन है। माँ गंगा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले इनसे पहले इन्हीं के शिष्य स्वामी निगमानंद जी, स्वामी गोकुलानंद जी एवं बनारस के स्वामी नागनाथ जी तथा दुनिया के बहुत बड़े वैज्ञानिक स्वामी सानंद अपनी माँ गंगा के लिए अपने प्राण रहने तक आमरण अनशन करते रहे। स्वामी शिवानंद जी ने स्वामी सानंद को जो वचन दिया था, उसको पूरा करने के लिए इनका भी अनशन जारी है। आज भारत सरकार पहली बार हलचल में आयी है, अपने दो प्रतिनिधियों को स्वामी जी से बातचीत करने के लिए भेजा है। परिणाम की प्रतिक्षा है; स्वामी जी का अनशन अभी भी जारी है। यदि परिणाम सकारात्मक नहीं आया तो आज से वो अपना जल त्याग की प्रक्रिया शुरु करेंगें।
2008 में कांग्रेस के समय भागीरथी पर तीन बाँध बन रहे थे। उनके विरूद्ध स्वामी सानंद ने आमरण अनशन करके, रद्द कराके एक कानून बनवाने की जरूरत अनुभव की थी। क्योंकि वे जानते थे कि बाँधों से मां गंगा की अविरलता बाधित होती है। आगे बाँध न बने, इसका प्रारूप सरकार को सौंप दिया था। उस सरकार ने इस प्रारूप और उसकी बातों को समझा था। इसलिए तीनों बांधों का काम रद्द कर दिया था। अब जैसा भागीरथी पर हुआ, वैसा ही अलकनंदा और मंदाकिनी पर किया जाये। उस कानून में गंगा को माई की तरह काम किया जाए। माँ गंगा जी से कमाई नहीं की जाये। यह कानून का प्रारूप माँ गंगा जी को दुनिया का सबसे बड़े तीर्थ के रूप में पहले की तरह अविरल-निर्मल बन बहती रहे; ऐसा गंगा जी का संरक्षण-प्रबंधन का कानून बने। वर्ष 2018 में श्री नितिन गड़करी उस समय के गंगा मंत्री थे। उन्हें गांधी शांति प्रतिष्ठान में बुलाकर, देश के वैज्ञानिकां ने उन्हें गंगा का प्रारूप कैसा बने? और स्वामी सानंद द्वारा प्रस्तावित गंगा कानून की कॉपी उन्हें दोबारा से दी थी। उस समय नितिन गड़करी ने माना था कि सरकार को गंगा की अविरलता की जानकारी यहीं पर प्राप्त हुई है।
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सरकारी प्रारूप में गंगा को माई कहकर, उससे कमाई करने के सारे उपाये सुझाये है ताकि उन्हें गंगा के बेसिन में वॉटरशेड डिप्लॉयमेंट हेतु विश्व बैंक आदि से पैसा मिल सके तथा गंगा के दोनों तरफ घाट बनाने व गंगा नदी में विकास के नाम सड़के बनाने की छूट मिल सके। गंगा जी में जो नए घर बनाये जा रहे हैं; वह पहले जैसे नहीं हैं। वे अवैज्ञानिक हैं। उन पर गंगा की रेती और गंदगी आकर जम जाती है। पहले माँ गंगा के फ्लो को और उसके मोड़ को समझकर उपयुक्त स्थान पर ही घाट निर्माण किए गए थे, पर आज कल के घाट वैसे वैज्ञानिक व इंजीनियरिंग की सोच के हिसाब से नहीं बन रहे हैं। अब जहाँ नगरपालिका घोषित करती है, वहीं पर गंगा जी के पुनर्जीवन के लिए आया हुआ पैसा लग जाता है।
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इस तरह के कामों के लिए सरकारी गंगा प्रारूप में खुली छूट दी गई है। जबकि हम सब चाहते थे कि हमारी माँ गंगा का प्रवाह पहले की तरह आजादी से प्रवाहित हो। जो अपने विशिष्ट गुण (गंगत्व, बह्मसत्व, बॉयोफाज) प्रवाहित है, उस प्रारूप को सरकार ने स्वीकार नहीं किया और अपना नया कानून जो कि बाजारू है, उसको लागू करने की तैयारी कर रही है। जिसका आने वाले समय में दुष्परिणाम दिखेगा। इसलिए स्वामी सानंद जी 2018 में गंगा को माई बनाने वाला कानून- आगे से गंगा जी पर नए बांध न बने, खनन न हो, घाट वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बनें व गंगा की सेहत को बिगाड़ने वाली सड़कें न बनें। हिमालय में चार धाम के नाम पर बनने वाले रोड़ से माँ गंगा की अविरलता , घाटी में हिमालय के कटाव से अवरोध पैदा हो रहा है, इस कारण हिमालय में बाढ़ आ रही है।
इस दुष्परिणाम को सानंद जैसा वैज्ञानिक पहले से पहचानता था। इसलिए उन्होंने इसके विरुद्ध 111 दिन तक आमरण अनषन करके 11 अक्टूबर 2018 को अपने प्राण दे दिए। स्वामी सानंद जी सरकार के 10 अक्टूबर 2018 को जारी गंगा पर्यावरणीय सूचना से बहुत दुखी थे। क्योंकि उसमें गंगा की अविरलता के नाम पर केवल 20 प्रतिशत के प्रवाह का प्रस्ताव था, जबकि स्वामी सानंद जी का आई.आई.टी. कानपुर में वैज्ञानिक व पर्यावरणीय अध्ययन के आधार पर उनका मानना था कि मां गंगा को जीवित रखने के लिए कम से कम आधा जल प्रवाह जरूरी है जिससे माँ गंगा सदैव प्रवाहित होती रहे, न कि केवल 20 प्रतिशत। वे इस अधिसूचना पर तत्कालीन गंगा मंत्री श्री नितिन गड़करी व उमा भारती के बयानों को प्रातः अखबार में पढ़कर बहुत दुखी थे और उनके प्राण जाने के केवल एक घंटे पहले मुझसे कहा था कि आप दिल्ली जाओ और यह जो झूठे बोल रहे हैं, उसे प्रेस कांफ्रेस करके बताओ। लेकिन मेरे वहाँ पहुँचने से पहले उन्होंने प्राण त्याग दिए और मैं वहाँ नहीं जा पाया।
स्वामी सानंद जी आधा गंगा जल प्रवाह इसलिए चाहते थे कि गंगा की जैवविविधता और गंगा का गंगत्व जो गौमुख से प्रारंभ होता है। वह पूरी गंगा जी में प्रवाहित होते हुए गंगा सागर तक पहुँच सके। यह तभी संभव है जब माँ गंगा का कम से कम 50 प्रतिशत प्रवाह बरकरार रहे।
11 अक्टूबर 2018 की घटना ने मुझे जिस तरह से आहत किया था। दिनांक 29.08.2020 को प्रातः 9 बजे स्वामी शिवानंद सरस्वती से बात करने की कोशिश की वे फोन पर बात नहीं कर पाये, उनके शिष्य ने कहा कि गुरुदेव कह रहे है कि, यह सरकार यदि कुछ नहीं करती है तो मैं सिर्फ दो दिन ही जीवित रह सकूँगा। मैंने उन्हें पूरे दुनिया के पर्यावरणीय कार्यकर्ता डॉ फिलिप, ईथन, मेधापाटकर, वंदनाशिवा, पी.वी. राजगोपाल और देश के 500 से अधिक लोगों की प्रार्थना उन तक पहुँचाने की कोशिश की थी, उनसे प्रार्थना थी कि वे अपना अनशन तोड़ दें, यह असंवेदनशील सरकार उनके अनशन की अनदेखी कर रही है, उन्होंने कहा कि कोई बात नही,ं अब मेरे बाद और कोई इसे आगे बढायेगा। मैंने जो स्वामी सानंद से वादा किया था, अब मैं अपना वादा पूरा करते हुए उन्हीं के पास जा रहा हूँ। उन्होंने जल त्याग की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
उनके साथ हुई बातचीत से मेरा मन और आत्मा बहुत कुंठित व दुखी है। मैंने उनकी यह बात सुनकर बिना किसी घोषित संकल्प के साथ अपनी आत्मा से वचन दिया है कि हम भी जितने दिन जीवित रहेंगे, माँं गंगा के लिए ही समर्पित रहेंगे।
मातृसदन, हरिद्वार में स्वामी श्री शिवानंद सरस्वती जी के आश्रम में गंगा के लिए पिछले 20 सालों से खनन विरोधी सत्याग्रह चलते रहे हैं। गंगा हेतु उनके एक शिष्य ने अपना बलिदान भी दिया है। पूरा मातृसदन एक तरह से गंगा भक्तों की तपोस्थली रही है। यहीं पर स्वामी शिवानंद जी, गंगा के लिए पहले भी कई बार गंगा तपस्या करके गंगा की सेवा में लगे है। अब पूरी गंगा को अविरल-निर्मल बनाने हेतु 3 अगस्त 2020 से गंगा तपस्या कर रहे हैं। स्वामी शिवानंद जी की गंगा तपस्या का आज 27 वाँ दिन है।
स्वामी श्री शिवानंद जी ने कहा है कि गंगा माँ के साथ किया गया धोखा जब तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी स्वीकार नहीं करते और गंगा को निर्मल-अविरल बनाने का साकार कार्य पूर्ण करने का कानून विधिवत विश्वास प्राप्त नहीं होता, तो मैं अपने प्राणों की आहुति देकर माँ गंगा से क्षमा माँगकर मोक्ष प्राप्त करूँगा। ऐसी मंशा स्वामी जी के वचनों में दृष्टिगत होती है। वे एक निश्छल संकल्पी, त्यागी, तपस्वी, सच्चे गंगा ऋषि हैं। उनकी गंगा भक्ति उनके जीवन भर गंगा के अतिक्रमण मुक्त बनाने के कार्यों से निर्मित हुई है। भारत में आज वे एक मात्र ऐसे ऋषि हैं, जो माँ गंगा के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर चुके हैं। वे अब अपने प्राणों की आहुति देने के लिए गंगा तपस्या कर रहे हैं। उनका स्वस्थ्य बहुत बिगड़ रहा है। वे कहते है कि आप मेरी चिंता मत करो, गंगा जी की चिंता करो।
इस देश की जनता, सरकारों, राजनैतिक दलों, सामाजिक एवं पर्यावरण कार्यकर्ताओं को हमारे बीच से उनकी आत्मा को अलग होने पर ही एहसास और आभास होगा? कभी-कभी यह बात सिद्ध भी होती है कि महान् आत्माओं के विलुप्त होने पर ही समाज को उनकी उपयोगिता का महत्त्व समझ में आता है। ऐसा मुझे आज गंगा ऋषि स्वामी श्री शिवानंद जी के संदर्भ में एहसास हो रहा है।
अभी भी समय है, भारत की जनता गंगा तपस्वी की तपस्या को सिद्धि दिलाने में जुट जाएँ तो भारत के प्रधानमंत्री को स्वामी शिवानंद जी की गंगा निर्मल-अविरल की साधना का, प्रदूषण मुक्ति तथा गंगा के अविरल प्रवाह की जरूरत का एहसास हो सकता है। सम्भवतः वे उनसे क्षमा माँग लें और उन्होंने गंगा जी के प्रति जो भाव प्रकट किए थे, उनको पूर्ण करने की याद आ जाये। प्रधानमंत्री यह स्वीकार करके गंगा के लिए जरूरी कानूनी व्यवस्था बनाकर गंगा को निर्मल-अविरल बनाने का कार्य आरम्भ करने वाला ढाँचा व विश्वास दिलाने का काम स्वयं करें, तो गंगा तपस्वी श्री शिवानंद जी के प्राणों एवं शरीर का उपयोग आगे भी गंगा के लिए हो सकेगा। यह कराने के लिए इस देश की जनता में खड़े होकर बोलने का समय और अवसर स्वामी जी ने सृजित किया है। हम सब अब इस काम के लिए खड़े हों, ऐसी गंगा माँ की आवाज है।
माँ गंगा हमें केवल भक्ति और मुक्ति ही प्रदान नहीं करती, उनकी शक्ति से राष्ट्र का सृजन और प्रवाह भी निर्मित होता है। गंगा माँ जिसे शक्ति देती है, उससे शक्ति ले भी लेती है। अतः अब भक्ति और मुक्ति के साथ शक्ति का भी आदान-प्रदान माँ गंगा करेगी। यह प्रधानमंत्री को समझना चाहिए। यह सरकार स्वामी की अनदेखी करके उसका फल भुगतेगी। भारत की जनता अभी शांत है। समय आने पर अपना कतर्व्य और अधिकार पूरा करेगी ही।
गंगा भक्त अब खड़े होगें। माँ गंगा की आजादी, गंगा जी की अविरलता हेतु गंगा कानून और गंगा भक्त परिषद् का गठन सरकार द्वारा कराके स्वामी शिवानंद जी की प्राण रक्षा में जुटेंगे। ज़रुरत है समय रहते सरकार द्वारा एक ज़रुरत है शीघ्र एक अच्छे निर्णय की।सभी इसी के इंतज़ार में व्याकुल हो रहे हैं।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।