– रमेश चंद शर्मा*
पंजाब दल महाराष्ट्र में: मंत्री स्तर के व्यक्ति को भारत के भूगोल और पंजाब के भूगोल के बारे में जानकारी नहीं
पंजाब में तो लगातार हर माह अपन शांति सदभाव दल लेकर पहुँच रहे थे। पंजाब में अन्य लोग, समूह भी कार्यरत थे। इन लोगों से अनेक बार आपसी मिलना, बातचीत, सलाह आदि होती रहती। पंजाब, चण्डीगढ़, दिल्ली में अनेक बैठक हुई। इसी मध्य एक योजना बनी कि पंजाब के साथियों को भी देश के विभिन्न स्थानों पर ले जाया जाए। इसके लिए तय किया गया कि पंजाब से एक टीम बनाकर महाराष्ट्र ले जाए। पूणें की संस्था ज्ञान प्रबोधिनी इसके लिए उत्साह में थी। उन्होंने ही महाराष्ट्र के कार्यक्र्म की योजना बनाई।
अपन भी पंजाब में सतत सक्रियता से लगे थे। उन्होंने इस कार्यक्रम में अपने सक्रिय सहयोग एवं नेतृत्व के लिए अपेक्षा रखी। सुश्री पूर्णा गोगटे, सुश्री हेमांगी, अविनाश धर्माधिकारी, मकरंद अडकर आदि साथियों की टीम साथ थी। यह समूह पूणें, मुंबई, नांदेड साहिब आदि स्थानों पर गया। उस समय गणेश उत्सव चल रहा था। पूणे में जोरदार रौनक थी। पूरा शहर जीवन से भरा, रंगीन रात दिन जीवंत नजर आ रहा था। जगह जगह कार्यक्रम चल रहे थे। गणेश उत्सवों में पंजाब के दल का स्वागत, सम्मान, भाषण, बातचीत कार्यक्रम रखे गए। गणेश उत्सव जागरूकता, श्रद्धा, आस्था, भावना, जोश, सक्रियता, हलचल, रौनक से भरपूर। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक महाराज ने गणेश उत्सव को प्रारम्भ किया था। इसमें जागरूकता का बड़ा काम संभव है। करने की सोच, दृष्टि, निष्ठा, भावना, संकल्प, स्पष्टता, समझ की आवश्यकता है। उत्सव में लोगों की भागीदारी देखने योग्य रहती है।
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पंजाब से पूरी टीम के साथ अपन निकले। रेल गाड़ी में जवान, वरिष्ठ भाई बहन, सारी साझी टीम खाते पीते, हँसते खेलते, गाते बजाते, संवाद, चर्चा, बातचीत, सवाल जवाब के दौर से गुजरते हुए कब पूना, पूणे के पास पहुँच गए मालूम ही नहीं पड़ा। पूणे स्टेशन के प्लेटफार्म की ओर गाड़ी बढ़ी हमारी टीम ने जयघोष किया की हमें लेने आए साथी पहचान जाए कि हम कौन से कोच में है। बोले सो निहाल, सत श्री अकाल। हमें छोड़कर कोच के सभी लोग आवाज सुनकर चौंक पड़े, घबरा गए। देश में जो माहौल बना था उसका असर यहाँ भी देखने को मिल रहा था। प्लेटफार्म पर आगे बढ़े। फिर जयघोष हुआ और प्लेटफार्म से इसका जो जवाब सुनाई दिया, तो हम भी आश्चर्यचकित रह गए। जब हम कोच से उतरे तो देखा, बहुत कम लोग कोचों से उतर रहे थे। वे जयघोष सुनकर घबरा गए थे, कहीं घेरा तो नहीं डाल लिया गया है। कुछ गलत लोग तो नहीं आ गए है। जयघोष, स्वागत, सम्मान देखकर लोगों को विश्वास लौटा और वे भी इसमें शामिल हो गए।
बैंड बाजे, नारे, जयघोष, लोगों की संख्या बढती जा रही थी। ज्ञान प्रबोधिनी के छात्र छात्राओं की टोली लेजियम के साथ चल रही थी। एक भव्य यात्रा चल रही थी। ज्ञान प्रबोधिनी पहुंचे और कार्यक्रमों की श्रृंखला शुरू हो गई एक के बाद एक पूणे, नांदेड, मुंबई में। पूणे में दगडू हलवाई का गणेश उत्सव बहुत ही प्रसिद्ध एवं बड़ा माना जाता है, उसमें भी स्वागत, सम्मान का आयोजन रखा गया था।
मुंबई में मुख्य मंत्री श्री वसंत दादा पाटील से मिलने से पूर्व खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री के कार्यालय में ले जाया गया। पंजाब को लेकर चर्चा चली। जानकर दुःख हुआ कि मंत्री स्तर के व्यक्ति को भारत के भूगोल और पंजाब के भूगोल के बारे में जानकारी नहीं। पंजाब जाने के लिए वीसा कैसे मिला? हमने सुझाव दिया कि आपको एक माह का अवकाश लेकर इस देश का भ्रमण करना चाहिए। इसके बाद मुख्य मंत्री जी से अच्छी चर्चा हुई। मुंबई का कार्यक्रम, मुंबई के नाम के अनुसार ही निवास आदि की व्यवस्था भी बहुत ही भव्य रही।
गोदावरी नदी के किनारे स्थित नांदेड साहिब एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। हजुर साहिब तख़्त सच खण्ड सिखों के पांच प्रमुख तख्तों में से एक है। इसकी बड़ी मान्यता है। साल भर यहाँ आने वाले तीर्थ यात्रियों की यात्रा जारी रहती है। यहाँ निवास, लंगर की सुंदर व्यवस्था है। सुबह से रात तक चाय, नास्ता, भोजन की पूरी व्यवस्था है। ऐसी सुंदर, सभी के लिए खुली व्यवस्था, जैसी सिखों द्वारा होती है। वह सभी धार्मिक सामाजिक स्थलों पर संभव हो तो कितना अच्छा हो जाए। यह सभी को अपनाना चाहिए। ऐसी व्यवस्था हो जाए तो देश में कोई भूखा नहीं सोएगा। लंगर की व्यवस्था, विचार, प्रक्रिया बड़ा ही क्रांतिकारी कदम है। समता, ममता की राह है, जहाँ बड़े से छोटे, अमीर से गरीब सभी को एक पंगत में एक साथ बैठकर एक जैसा भोजन करने का आनंद मिलता है।
यह एक यादगार, ना भूलने वाली यात्रा बनी। कुछ मित्रों से लम्बे समय तक संवाद, संपर्क बना रहा जो आज भी यादों में जीवित है, तो कुछ से अभी तक भी संपर्क है।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक है।