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– खुशबू
फरीदाबाद : लॉक डाउन में संघर्ष की इस कहानी के किरदार 60 -वर्षीय रिक्शा चालक दयाराम ने तो जिंदगी से हार मान कर आत्महत्या करने तक जा पहुंचे थे । तभी उन्हें एक उम्मीद की किरण नजर आई। क्या थी वह उम्मीद की किरण जिसने दयाराम की जान बचा दी ? आइये इससे पहले हम जरा दयाराम की ज़िन्दगी में झाँक के देखें। वह पिछले 30 वर्षों से फरीदाबाद में रिक्शा चलाने का काम करते हैं। वह फरीदाबाद में बाईपास रोड पर बनी झुग्गी में अपनी पत्नी के साथ रहते हैं। करीब 30 साल पहले वह बिहार से रोजगार की तलाश में फरीदाबाद आए थे पर रोजगार न मिलने के कारण उन्होंने एक सेकंड हैंड रिक्शा लिया। बस फिर रिक्शा ही उनके आमदनी का जरिया बन गया और वह तब से लेकर अब तक रिक्शा चलाने का काम करते हैं।उनकी कोई संतान भी नहीं है।
दयाराम पहले पूरे दिन रिक्शा चलाकर 400 से ₹500 आराम से कमा लिया करते थे। परंतु जब से ई-रिक्शा चलन में आए, लोगों के बीच ई -रिक्शा का प्रचलन बढ़ गया। उससे साइकिल रिक्शा कहीं कम समय में कहीं भी पहुंचा जा सकता था। इसका दुष्प्रभाव दयाराम की जीविका पर पड़ा। अब पूरा दिन रिक्शा चलाने के बाद भी उनकी कमाई सिर्फ ₹ 200 से ₹300 ही रह गयी। फिर भी लॉकडाउन से पहले उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक ठाक चल रही थी। परंतु लॉकडाउन लगने के बाद तो मानो ज़िन्दगी उनके लिए नर्क बन गयी। उस बेचारे अनपढ़ को कोई बताने वाला भी नहीं था कि लॉक डाउन लग गया है। इस बात से अनजान रोज की ही भाँती सवेरे जब वे रिक्शा ले सवारी की तलाश में घर से निकले तो सड़क पर चारों ओर सन्नाटा देख थोड़ा हैरान तो ज़रूर हुए। सभी दुकानें भी बंद थीं और कोई व्यक्ति सड़क पर नहीं दिख रहा था। भला वह पूछते भी तो किससे ? वह कुछ भी सोच पाते उससे पहले ही एक पुलिस वाले ने आकर उन्हें पीटना शुरू कर दिया। दयाराम के पूछने पर कि वह उसे क्यों मार रहे हैं तो पुलिस वाले ने उल्टा सवाल दागा :” तुझे नहीं पता देश में कोरोना वायरस महामारी फैलने के कारण देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी है?” बेचारे दयाराम को तो लॉक डाउन का मतलब भी नहीं मालूम था। उन्होंने ने वापस पुलिस वाले से पूछा साहब यह लॉक डाउन का मतलब क्या होता है? पुलिस वाले ने दयाराम को बताया कि लॉक डाउन का मतलब है पूरा देश बंद है। यह कह पुलिस वाले ने दयाराम को भगा दिया।
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दयाराम रिक्शा लेकर वापस घर को चल दिए । पुलिस की मार से पहले ही उसका बदन सूज गया था। जब उसकी पत्नी ने उससे इतनी जल्दी वापिस आने का कारण पूछी तो वह सिर्फ यह बता पाए कि कोई कोरोना वायरस नाम की महामारी फैली हुई है जिसकी वजह से पूरा देश बंद है और किसी को घर से निकलने की अनुमति नहीं। इसके बाद उनकी बीवी का बस एक ही सवाल था कि फिर हमारा घर खर्च कैसे चलेगा? जाहिर है दयाराम के रोज की कमाई से ही उनका घर खर्च निकल पाता था। दयाराम के पास कोई 400- 500 रुपए पड़े थे। उन्होंने बस यही कहा कि इन पैसों से अभी कम से कम एक हफ्ते का घर खर्च तो चला ही सकते हैं, उसके बाद की बाद में देखेंगे।
एक हफ्ते पश्चात घर में राशन ना होने के कारण मजबूरन दयाराम को अपना रिक्शा लेकर घर से निकलना पड़ा इस उम्मीद में कि शायद कोई सवारी तो मिल ही जाएगी। परंतु कुछ दूर पश्चात ही उन्हें पुलिस वालों ने फिर से पीटा और कड़क कर पूछा कि एक बार समझाने पर उसे समझ नहीं आ रहा क्या ? बेचारे दयाराम उन्हें समझाने की कोशिश करने लगे : “साहब घर में खाने के लिए कुछ नहीं है और जेब में पैसे भी नहीं है कि मैं अपने घर में राशन ला सकूं इसलिए मजबूरन मुझे अपना रिक्शा लेकर निकलना पड़ा।” उस बुजुर्ग ने रोते हुए पुलिस वाले से कहा ,”साहब हम महामारी से मरे ना मरे लेकिन भूख से जरूर मर जाएंगे”। उसके मिन्नतें सुन पुलिसकर्मी को दया तो आयी पर वह भी क्या कर सकता था ? उसने दयाराम को समझाने कि कोशिश की कि रिक्शे पर बैठने के लिए सड़कों पर लोगों का होना भी जरूरी है। यही समझा बुझा कर पुलिस वाले ने उन्हें वापस घर भेज दिया ।
घर आने के बाद घर में खाने के लिए कुछ ना होने के कारण दयाराम और उसकी पत्नी को उस रात भूखे पेट ही सोना पड़ा । अगली सुबह उठने के बाद खाना न मिलने के कारण उनकी बीवी का बर्ताव बदला -बदला सा हो गया था। दयाराम यह देख कर खाने की तलाश में एक बार फिर से घर से बाहर निकले और जब वह फरीदाबाद के सेक्टर 17 के मोड़ पर पहुंचे तो उन्हें वहां कूड़ेदान पर एक बड़ा सा डब्बा रखा दिखाई दिया। वहीँ उसी के ठीक नीचे किसी ने कुत्तों को खाने के लिए रोटी रखी हुई थी। दयाराम ने रोटी उठा ली और उसे ले अपने घर लौट आये। उसी रोटी को खा दोनों पति पत्नी ने एक समय की भूख को तो शांत कर लिया परंतु अब उन्हें शाम कि चिंता सताने लगी। आगे बस अन्धकार ही नज़र आ रहा था। ऐसी ज़िन्दगी की तो उन्होंने कल्पना भी ना की थी और अब तो मानो अपना जीवन ही उन्हें निरर्थक लगने लगा जहां आज खाने के भी लाले पड़ गए थे। तरह तरह के विचार उनके ज़हन में चल रहे थे। उन्हें तो लगने लगा कि ऐसी ज़िन्दगी पता नहीं कब तक चले। इससे तो मौत ही बेहतर है, यह सोच उन्होंने आत्महत्या करने का निर्णय ले लिया और आत्महत्या करने के लिए वह नहर की ओर निकल पड़े।
पर कहते हैं ना कि भगवान् के घर में देर है पर अंधेर नहीं है। दयाराम अभी कुछ ही दूर चले थे कि एक व्यक्ति ने उन्हें रोका और खाने का एक पैकेट उनके हाथ में थमा दिया । वह मानों उनके लिए देवता बन कर आया था। मानो एक नए जीवन का संचार होने जा रहा था। चकित दयाराम ने उस व्यक्ति से पूछा कि वह खाना क्यों बांट रहे हैं और किसके लिए? उसने बताया कि लॉकडाउन लगने के कारण जितने भी प्रवासी मजदूर और जरूरतमंद लोग हैं, उन्हें वे खाना वितरण करते हैं। यह सुनते ही दयाराम के मन में एक आशा की किरण उठी। उन्हें लगा कि इस दुनिया में मानवता अभी भी है और भगवान ज़रूरतमंदों की अवश्य मदद करते हैं। और वह पूछ बैठा “क्या यह खाना वितरण जरूरतमंदों को रोज सुबह शाम करोगे?” उस व्यक्ति उन्हें बताता है कि “जब तक यह लॉकडाउन लगा रहेगा हम जरूरतमंदों को तब तक खाना वितरण करते रहेंगे ।” उसी के साथ उसने यह भी बताया कि जरूरतमंदों के लिए सरकार ने आर्थिक सहायता के लिए गरीब कल्याण पैकेज लागू किया है जिसमें महिलाओं को 3 महीने अप्रैल से जून तक ₹500 की आर्थिक सहायता करेगी और मुफ्त राशन देगी। दयाराम के बताने पर कि ना तो उनकी बीवी का बैंक में कोई खाता है और ना ही उनका कोई राशन कार्ड है, उस व्यक्ति ने कहा कि ऐसे में तो आप बिना राशन कार्ड या बिना बैंक खाते के आर्थिक सहायता का लाभ नहीं उठा सकते ।
दयाराम को एक बार फिर अन्धकार दिखाई देने लगा। उन्हें निराश होता देख उस व्यक्ति ने कहा “आप चिंता ना करें आपको खाने की कमी नहीं होगी और हम लोग सुबह शाम आपको लॉक डाउन के दौरान खाना देते रहेंगे”।
यह सुनकर दयाराम के मन में खुशी की लहर जाग उठी। एक उम्मीद की किरण दिखने लगी और उन्होंने अपने आत्महत्या करने का निर्णय त्याग दिया और वापस अपने घर लौट आये। आज दयाराम अनलॉक वन लगने के बाद फिर से अपनी पुरानी जिंदगी में लौट आये हैं। लॉक डाउन उनके लिए अन्धकार ले कर आया था पर उस अनजान व्यक्ति ने उनके भोजन की व्यवस्था कर ना सिर्फ उनके जीवन में एक उम्मीद की किरण जगाई, उन्हें आत्महत्या से भी बचा लिया। दयाराम के लिए तो वह एक फरिश्ता ही तो था।
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