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फादर्स डे ( पितृ दिवस) 21 जून पर विशेष
-ज्ञानेन्द्र रावत
मुझे अपने पिता को याद करने के लिए किसी खास दिन की जरूरत नहीं पड़ती। भले वह अब इस दुनिया में नहीं हैं और उनको गोलोकवासी हुए 41 बरस हो गये लेकिन मैं उन्हें सिर्फ फादर्स डे पर ही याद नहीं करता बल्कि मैं उन्हें जीवन के हर मोड़ पर याद करता हूँ। मेरा मानना है कि मेरे पास वह हमेशा रहते हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
मेरा यह मानना है कि फादर्स डे की परिकल्पना हमारी संस्कृति का अंग नहीं है लेकिन यह पिता के योगदान को स्मरण हेतु मनाया जाता है, इसलिए महत्वपूर्ण है। हमारी संस्कृति में तो माता-पिता को रोज ही याद किया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। किसी खास दिन पर ही हम उनके योगदान को याद नहीं करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं शिक्षक माता-पिता की संतान हूँ। मेरे पिता अनुशासन प्रिय थे। लापरवाही, गैर-जिम्मेदारी और गलत बात उनको कतई बर्दाश्त नहीं थी। यदि यूं कहें कि किसी भी कीमत पर इसे वह बर्दाश्त नहीं करते थे तो गलत नहीं होगा। जीवन में कई बार ऐसे मौके आये जब मेंने कुछ गलत किया और कभी-कभी तो किसी के झूठी शिकायत करने पर मेरी जमकर धुनाई भी हुई लेकिन असलियत मालूम पड़ने पर उन्हें बेहद अफसोस हुआ।
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उनका कहना था कि जिंदगी के हर मोड़ पर खुद को काबू में रखो। जिंदगी में कितने भी बड़े हो जाओ, कितनी भी बड़ी समस्या आये, विचलित न हो, शांत रहो और गंभीरता से सोचो, हर समस्या का समाधान हो जायेगा। उनका मेरे व्यक्तित्व पर कितना असर हुआ, यह कहना बहुत ही मुश्किल है, लेकिन यह सच है कि आज मैं जो कुछ भी हूं, वह उन्हीं की कृपा, स्नेह और डांट-डपट का परिणाम है। मेरे जीवन में उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। उनका असर मेरे व्यक्तित्व पर पड़ा है। उनका सरल व्यवहार, उनके बात करने का तरीका और हर किसी पर भरोसा कर लेने जैसे गुण मैंने उनसे पाये हैं। जीवन में इसका उनको और मुझे भी अक्सर खामियाजा भुगतना पड़ा है।
मैं सेना में जाना चाहता था। इस पर उनका कहना था कि – तेरे दो बड़े भाई तो सेना में बाहर हैं हीं, मैं मर गया तो मुझे आग कौन देगा? ” मेरा मानना है कि आज मैं जो कुछ भी हूं, समाज में जो मान-प्रतिष्ठा है, उसके पीछे उनका ही आशीर्वाद है। वह राम के अनन्य भक्त थे। रामायण पढ़ते- पढ़ते वह अक्सर रोते रहते थे। उनके आंसू रुकने का नाम नहीं लेते थे। वह कहते थे कि राम का त्याग अविस्मरणीय है। उनके इष्ट राम के प्रति मेरा पूज्य भाव शायद उन्हीं की देन है। मैं उनका राम नहीं बन पाया, इसका मुझे जीवन पर्यंत दुख रहेगा लेकिन उनके अंत समय तक मुझे उनका सानिध्य, प्यार -दुलार मिला और क्षणिक मात्र ही सही उनकी सेवा का पुण्य -लाभ मिला, इसे में अपना सौभाग्य समझता हूं।
मेरा उन लोगों से विनम्र अनुरोध है कि जिनके पिता हैं, वह उनको बोझ ना समझें, उनसे प्यार करें, उनका सम्मान करें और जिनके पिता नहीं हैं, वह केवल उनको याद ही कर पाते हैं। उनको पिता के महत्व का पता अब चलता है।
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