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गंगा आंदोलन
भारत सरकार जिस प्रारूप को मंत्रीमंडल में चर्चा के लिए पेश किया है वह स्वीकार्य नहीं है
– डॉ. राजेन्द्र सिंह*
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गंगा भक्तों, वैज्ञानिको एवं कानूनविदों ने मिलकर 2012 में न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय की अध्यक्षता में जो प्रारूप तैयार किया था, वह गंगा को माई मानकर तथा हमारी संस्कृति और नित्य जीवन पवित्र गंगा जी की विशिष्टता और अप्रतिम स्थान सुस्थापित है और पवित्र गंगा जी हमारी सभ्यता की आधारशीला हैं। इसी के कारण भारत राष्ट्र की सर्वश्रेष्ठ अंतराष्ट्रीय पहचान है। पवित्रतम धरा में करोड़ों नागरिकों की आस्था के प्रति यह सदन एकमत है जैसा कि, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48, 49, 51 को प्रभाव में लाने हेतु।
जैसा कि गंगा जी के विशिष्ट स्थान को स्वीकृत कर भारत सरकार ने एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 1986 के अन्तर्गत अधिसूचना संख्या 328 के द्वारा 20 फरवरी 2009 को इसके प्रबंधन के निश्चित आयामों के लिए गंगा जी को राष्ट्रीय नदी का पद दिया गया और ‘‘ राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण‘‘ की स्थापना की।
इस अधिनियम का जो यह प्रारूप है वह निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए है-
1. भारत की राष्ट्रीय और सांस्कृतिक विरासत के रूप में गंगाजी के औपचारिक पदमान हेतु।
2. भारतीय और अन्यों द्वारा राष्ट्रीय प्रतीक के स्वरूप उनके प्रति अपेक्षित सम्मान, आदर और संरक्षण सुनिश्चित करने हेतु।
3. सरकार के हर स्तर (केन्द्र, राज्य और स्थानीय) पर नीतियों , योजनाओं, निर्णयों और क्रियान्वन में गंगा जी के संरक्षण और हित का पर्याप्त महत्व और प्राथमिकता हेतु।
दोनों प्रारूपों के उद्देश्यों में मूल अंतर है एक का प्रकथन गंगा जी को माई मानकर सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सम्मान देना चाहता है, दूसरा 2018 वाला प्रारूप जो गिरधर मालवीय की अध्यक्षता में तैयार हुआ था। यह गंगा माई से कमाई के रास्ते खोलता है क्योकि इसमें गंगा के पूरे बेसिन को पुनर्जीवित करने के लिए मेगा प्रोजेक्ट लेकर गंगा के नाम पर दुनिया भर से आर्थिक सहायता जुटाई जा सकती है।
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आज हमारी गंगा माई को विशिष्ट दर्जा देने की जरुरत है, न कि इससे विशिष्ट कमाई की जाए। वर्ष 2017 में श्री गिरधर मालवीय जी की अध्यक्षता में बनी सरकारी समिति ने अपने प्रारूप का उद्देश्य ही बदल दिया इसलिए यह सरकारी प्रारूप प्रो.जी. डी. अग्रवाल जी को स्वीकार नहीं था। इसलिए सरकार ने एक नए प्रारूप पर चर्चा शुरू की है। अभी भारत सरकार जिस प्रारूप को मंत्रीमंडल में चर्चा के लिए पेश किया है, वह भी उसी दिशा में ले जाता है। जो हम गंगा भक्तों को स्वीकार नही है।
हमारी माँ गंगा जी को पहले जैसा बनाने वाला कानून ही चाहिए। हमें अपनी मां की बीमारी को ठीक कराने वाला कानून चाहिए। जिससे गंगा जी में नई सड़के-बाँध निर्मित नही होवें। खनन आदि पर भी रोक लगाने वाली कानूनी व्यवस्था बने। इस व्यवस्था को ठीक से चलाने वाली गंगा भक्त परिषद बने।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।
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