– डॉ. राजेंद्र सिंह*
आत्मिक शक्ति ही आरोग्य रक्षण का रास्ता है
कोरोना वायरस विश्व के लिए महामारी बन गया है, अब यह किसे विलुप्त करेगा? मालूम नही। मानव तो अभी विलुप्त नही होगा, यह अभी जीतेगा लेकिन यह अस्थाई जीत होगी। स्थाई जीत तो प्राकृतिक अनुकूलन से ही संभव है। जब हम अपने पारिस्थितिकी तंत्र की विविधता का सम्मान करके जीना शुरु करेंगे, तभी हमारा जलवायु परिवर्तन अनुकूलन एवं उन्मूलन सम्भव होगा। पूरे विश्व में सैकड़ों पारिस्थितिकी तंत्र में इसका प्रभाव ज्यादा बढ़ रहा है। कहाँ यह प्रभावहीन है? यही सब जानने से हमारा इस वायरस से निदान व उपचार का सिद्धांत स्थापित होगा। कोरोना वायरस से अभी तो सबके सामने अलग-अलग तरह की मजबूरियाँ है, जो हम सब भुगत रहे हैं। यह हमें बता रहा है कि अब हमारी गति, जिसे हम विकास कहते थे, वह गति अब पीछे जाएगी। हमें विकास की गति वापस मोड़नी पड़ेगी।
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यह हालात भारत में अभी और कितनी भयानक होगी इसका हमें अंदाजा नहीं है। कोरोना का समाधान खोजने के लिए हमें प्राकृतिक और रासायनिक दोनों से ही युद्ध स्तर पर खोज करनी होगी। इस विषय में भारत का मीडिया अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभा रहा है, लेकिन जिस तरह की चेतना हमें चाहिए उसका अभी तो अभाव दिख रहा है। हम कोरोना से मुक्ति पाने के लिए अनुशासित होकर काम करेंगे, तो ही सफलता मिलेगी।
हमें कोरोना वायरस से जीतने हेतु युद्ध स्तर से निपटने के लिए अनुशासन पर्व की तरह मनाना चाहिए। अनुशासन ही निर्भय होकर जीत हासिल कराता है। डरने वाला जीतता नही है। कोरोना से हमें भयभीत नहीं होना है। जब हम भयभीत होते हैं, तो दुश्मन बिना प्रयास ही सफल हो जाता हैं। इसलिए कोरोना वायरस से भयभीत होने की जरूरत नहीं है। इसका मुकाबला करने के लिए पूरी दुनिया एकजुट हो और इसके जन्म के कारणों को खोजें। मुझे लगता है कि, इसके दो ही कारण हो सकते हैं, प्राकृतिक व दूसरा मानवीयकृत। यदि प्राकृतिक कारण है तो उसे समझें कि प्रकृति के साथ हमारे व्यवहार और संस्कार में क्या गिरावट या बदलाव आया है? उस बदलाव ने कितने जीवों की जातियों को विलुप्त कर दिया है। मानवीय खाद्य श्रृंखला की कड़ी कहाँ से टूटी है? वह कौन सा जीव था, जो कोरोना वायरस को जन्म नहीं लेने देता था। वह मानवीय खान-पान में कब से गायब हुआ? उसके गायब होने से मानवीय शरीर पर ही इसका प्रकोप क्यों पड़ा? दूसरे जीवों पर क्यों नहीं? दूसरे जीवों को विलुप्त होने का कारण भी खादप श्रंखला का टूटना ही है। उनकी जातियां भी इस कारण से नष्ट हुई होगी।
भारतीयता में लक्ष्मण रेखा नही लांघने का विधान था।जब भी हमने उस रेखा को लांघा तो अनहोनी का विस्फोट हुआ है। जिन्होंने अपने लिए कोई लक्ष्मण रेखा ही नही बनाई है, उनके यहाँ कोरोना वायरस ने पहले विनाश किया। फिर वहाँ से भारत आया। पहले भी हमारे साथ षडयंत्र हुआ था और अब भी हम दूसरों के षडयंत्र के शिकार बने है। षडयंत्र का समाधान अनुशासन है। यही आत्मिक शक्ति से आरोग्य रक्षण का रास्ता है। अब हमें इस पर चलने हेतु विचार करना है।
ज़रुरत है कि अनुशासित होकर हम कोरोना वायरस को हराएँ और भारत और विश्व को प्राकृतिक जीत दिलायें। प्राकृतिक जीत ही, हमारी जीत है। प्राकृतिक अनुकूलन हमें भगवान से प्रेम, सम्मान, विश्वास, निष्ठा, श्रद्धा और भक्तिभाव पैदा करता है। फिर हम अपनी प्रकृति से युद्ध नही करते है। उसी से निर्मित हम अपने आप को मान लेते है। भारत ने कभी प्रकृति से युद्ध नही किया था। आज की आद्युनिकता में यह हमारे आचरण व व्यवहार बनता जा रहा है।
*लेखक पूर्व आयुर्वेदाचार्य हैं तथा जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।