-रमेश चंद शर्मा
ओल्ड एज होम बना है धाम
दादा-दादी, पोता-पोती, चाचा-ताऊ, भतीजी-भतीजे साथ।
खेलें-कूदें, शोर मचावें, रौनक बढ़ती पड़ोसियों के साथ।।
घर – आंगन परिवार दमकते, सबका मिलता साझा प्यार।
एक दूजे के साथ खड़े थे, मरने जीने को हरदम तैयार ।।
कहानी-किस्से, बातचीत से, सजता था अपना संसार।
रिश्ते-नाते दूर- दूर के, लगता था खास अपना परिवार ।।
मान-मर्यादा सहज पले, अपने पन का था घना माहौल।
सहज, सरल रिश्ते-नाते थे, जिनका नहीं होता था तोल ।।
तेरे-मेरे का भेद कम था, मिल- बांट के खाते थे ।
आना-जाना साथ लगा था, मेले-टेले में मौज मनाते थे ।।
छोटी- छोटी बात रस देती थी, बड़े बड़े होते थे काम।
नाज – नखरे सहते सबके, बीच में कदै ना आया दाम ।।
बदला जमाना दूर हो गए, जो थे अपने खासम खास।
बूढ़ा बड़े के, बुढ़िया छोटे के, बांध दी खूंटे के साथ । ।
मिलना ना जुलना, सुख-दुःख पावें, दूर- दूर से जोहे बांट।
सैर सपाटा बहू बेटों का, देखने लायक उनके ठाठ ।।
बच्चों को पास न आवन देते, दोगे तुम उल्टे संस्कार।
थारी दुनिया अलग थलग थी, म्हारा अपना अलग संसार ।।
सारी सुविधा ओल्ड एज होम में, दोनों करो वहां आराम।
बूढ़े-बुढ़िया तरसे बच्चों को, ओल्ड एज होम बना है धाम ।।
यह भी पढ़ें : कविता : अब कौन शिवा आयेगा
बधाई शुभकामनाएं मुबारक हो आशीर्वाद।