विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
राम और रावण भारतीय संस्कृति में दो विपरीत मानवीय नायक हैं जिनमें राम भारतीय ज्ञानतंत्र से जीवन जीने वाले व प्रकृति से समता-सादगी का व्यवहार करके, प्राकृतिक योग का नेतृत्व करते हैं। वहीं रावण ऐसा नायक है, जिसके जीवन में अतिक्रमण, शोषण और अपने घर को सोने की धातु से निर्मित करने से होने वाले प्रदूषण से तनिक परहेज नहीं करता है । युद्ध में भी धोखा देने से नहीं बाज आता है। उसका संपूर्ण जीवन सभी प्रकार से भोगी है। वो अपने भोग के लिए प्रकृति व किसी दूसरे का ख्याल नहीं रखता है, उसके सामने जो भी आता है उसका ही भक्षण करते है। इसीलिए अपना स्वयं का जीवन और अपने राज्य की जनता के जीवन में तबाही पैदा करता है। यह उसके विकास के लालच से पैदा हुई तबाही है। इसी ने रावण का सब कुछ नष्ट कर दिया था।
राम संस्कृति व प्रकृति के संरक्षण में अपना जीवन लगाते हैं। रावण प्रकृति (सीता) पर अतिक्रमण करने में जुटा रहता है। अपने जीवन के लिए किसी का भी शोषण करते हुए, तनिक भी विचार नहीं करता जबकि दूसरी तरफ राम प्रकृति के रक्षण, संरक्षण व सम्मान में जुटे रहते हैं और प्रकृति रक्षण की लड़ाई जीत जाते हैं।
आज ऐसी ही लड़ाई दुनिया में हो रही है । अब उनमें भी जीत नही होती है। इसका अर्थ यह है कि, अब हम भोगी होकर, रोगी बनने के रास्ते पर चल रहे हैं। योगी बनकर निरोगी होने का रास्ता भूल गऐ हैं, इसलिए अतिक्रमण, प्रदूषण और शोषण सिखाने वाली आधुनिक शिक्षा हमें प्रिय हो गई है।
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विकास की चाह पैदा करने वाली आधुनिक शिक्षा, हमारे स्वास्थ्य और जीवन के लिए दिन-प्रतिदिन संकट पैदा करने वाली बन रही है। हमने प्रकृति पर कब्जा करके, उसका शोषण किया परिणाम स्वरूप हमारी धरती नदियां व संपूर्ण प्रकृति में प्रदूषण बढ़ गया। इस बढ़े हुए प्रदूषण ने चमगादड़, तिलचट्टे, मछली, मूली, गाजर, इन सब के भेद मिटा दिए। हमारे स्वाद में भी प्रकृति के साथ जीने और रहने व प्रकृति प्रेम के आचार विचार आहार और विहार का भेद भी मिटा दिया है। इसलिए अब हमारे खान-पान में भी चुनाव करने का व्यवहार और संस्कार मिट गया है। जिससे, जिसको जो मिल जाए, उसे खाने का आदी हो गया है, परिणाम कोरोना जैसा वायरस मानव के लिए महामारी पैदा कर रहा है।
शोषण की आधुनिक तकनीक और इंजीनियरिंग ने पूरी धरती में जहां भी, जो कुछ मिल गया उसको लूटने और शोषण करने की विधि का आविष्कार कर लिया। रासायनिक फैक्ट्रियां अपनी जहरीली रासायनिक जल को सीधे नदियों में छोड़कर, हम सबको बीमार करते हैं और हम उन्हें विकास के मंदिर कहकर सम्मानित करते रहते हैं।
एक समय था, जब भारत में प्रकृति को सम्मान करने वाले उतना ही लेते थे, वे जितना अपने परिश्रम से प्रकृति को वापस लौटा देते थे। अब ऐसे लोगों को अनपढ़, पौंगा, अज्ञानी, निरक्षर, कहकर अपमानित करते रहते हैं लेकिन अच्छी बात यह है कि अभी भी भारत में प्रकृति का सम्मान करने वाले लोग बचे हुए है, पर वे प्रभावहीन होते जा रहे हैं। आज इन प्रभावहीन लोगों को कोई पूछता नहीं है ,सुनता नहीं है, हां आरती उत्सव के नाम पर कर्मकांड करने वाले की पूछ होती है, पर जो प्रकृतिरक्षण व भारतीय आस्था के लिए सत्य को आधार मानकर बोलते हैं, उनको कोई नहीं सुनता। उसका परिणाम है कि आज दिन-प्रतिदिन हमारी बीमारियां बढ़ रही हैं। प्रकृति के हुए बिगाड़ के कारण बेमौसम वर्षा, तापक्रम का घटना-बढ़ना, हवा में जहरीली गैसों का बढ़ना और जल का शोषित व प्रदूषित होना, हमारी आधुनिक बीमारियों का घर बन गया है।
यह 21 वीं शताब्दी जलवायु परिवर्तन से आपदा ग्रस्त है। इस आपदा से अभी भी हम दिन-प्रतिदिन शिकार हो रहे हैं। हमें देखना होगा कि हम कैसे इस विनाशकारी विकासलीला से मुक्ति पाएं। इस से मुक्ति पाने के लिए प्रकृति का सम्मान करना ही पड़ेगा, अन्यथा प्रकृति क्रोध केवल बाढ़-सुखाड़ के रूप में नहीं, अब मानवीय बीमारी महामारी के रूप में सामने आएगा। कोरोना वायरस इसकी पहली घंटी है। अब से पहले जो महामारी, बीमारियां थी, वह इससे भिन्न थी। यह लालची विकास के प्रभाव से हमारे ज्ञान का विस्थापन और विकृति विनाश के रास्ते पर जा रही है। यही विनाश का रास्ता हमारे बुद्धि को उल्टा बना देता है, इसीलिए आज हम विनाश को विकास बोलने लगे हैं।
हमने बीमारियों के इलाज के लिए भी एक से एक आधुनिक प्राणरक्षण के नाम पर औषधियां, रासायनिक, भौतिक, विविध, प्रमाणिक रूप से औषधियों का निर्माण किया है। पर अब मानवीय बीमारियां बहुत ही क्रूर बनती जा रही हैं। यह क्रूरता मानव ने पहले प्रकृति के साथ की और अब प्रकृति मानव के साथ करने लगी हैं। यह प्रकृति का प्रकोप प्रलय पैदा करेगा। ऐसी प्रलय प्रकृति मानव की बुद्धि को ठीक करने के लिए भी करती है, इसलिए कहा जाता है ‘‘विनाश काले विपरीत बुद्धि‘‘ और सद्काले, सद्बुद्धि‘‘। अभी प्रकृति ने विनाश काल पैदा किया है। इस विनाश काल में सद्बुद्धि होने में समय लगेगा। परंतु यदि हम अभी भी समझ ले, तो हमारा विनाश होने से अपने आप को बचा सकते हैं, बचाने की संभावना है अभी भी है और हमें भारतीय ज्ञानतंत्र को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने की आवश्यकता है।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।