विशेष आलेख – 1
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
1970 में जे. पी. ने सम्पूर्ण क्रांति के बीज बोये थे। उसके बाद तरुणाई की अँगड़ाई ने क्र्रांति कर दी थी। उससे परिवर्तन भी हुआ था। वह परिवर्तन ‘‘सम्पूर्ण क्रांति’’ के नारे से हुआ था। लेकिन सम्पूर्ण क्रांति नहीं हुई थी; केवल राज्य सत्ता का परिवर्तन ही होकर रह गया था।
चन्द लोग ही सत्ता भोगकर भ्रष्टाचार के रास्ते पर चले गए। कुछ ने अपने अंतिम दिन तक सत्ता का भोग किया। उन्हें जिस ठिकाने पर बैठकर सत्ता चाहिए थी, वही जाकर बैठ गए और सत्ता भोग किया। उन्होंने अपनी अगली पीढ़ी को भी वही सिखाया हैं और वे भी अब वही कर रहे है। बहुत बड़ी संख्या में इस क्रांति से निकले लोग अपनी क्रांति के बीजों को सहेज कर पत्रकारिता द्वारा अभिव्यक्ति करते रहे हैं। उस काल के तरुण अब प्रौढ़ पत्रकार होकर भी स्वतंत्र अभिव्यक्ति में सम्मान पा रहे हैं।
एक तीसरा बड़ा हिस्सा क्रांति बीजों से स्वयं अपनी तरुणाई की अँगडाई के परिवर्तन के बाद में अपने को सत्ता से अलग करके प्रकृति को तलाशने में लगे हैं। जहाँ पानी नहीं था, वहाँ पानी बनाने में भी जुटे हैं। कुछ मानव पीड़ा और प्रकृति की पीड़ा के उपचार में जुटे गये। देश-दुनिया में सैंकड़ों हजारों लोगों ने सम्पूर्ण क्रांति के बीज बोये तथा प्रकृति और मानवता का सम्मान करके, इनकी हकदारी के लिए संघर्ष किया है। कुछ ने मानवता और प्रकृति के पोषण की जिम्मेदारी निभाने हेतु रचना के काम में अपने आप को झोंक दिया। इनकी दुनिया और देश वही स्थान बन गया, जहाँ इन्होंने अपनी रचना आरंभ की थी।
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सम्पूर्ण क्रांति के बीजों ने लोभ-लालच ( विस्थापन, विकृति, विनाश) मुक्त सनातन विकास ( प्रकृति पुनर्जनन), समृद्धि लाने वाला रास्ता पकड़ा है। जे.पी की सम्पूर्ण क्रांति के नारे को साकार किया है। ये अन्याय-भ्रष्टाचार का प्रतिकार करने वाले बने, स्वयं कभी भ्रष्टाचार के रास्ते पर नहीं चले। समाज ने भी इन्हें अपना साथ और सहयोग नहीं दिया, तो भी ये अपमान के घूंट पीकर अरावली, हिमालय, पश्चिमी घाट जैसी पर्वत मालाओं के आँसू पोंछने का काम करते हैं।
कहीं खनन, कहीं प्रदूषण, कहीं बड़े बाँधों के विरुद्ध संघर्ष, तो कहीं गंगा जल पर हकदारी, तो भूमि पर हक पाने, शराब मुक्ति, वेश्या मुक्ति, सती मुक्ति हेतु क्रांति के बीज बोते रहे हैं। इन्होंने दूसरों की बनाई सीमा तोड़कर, अपने गाँव और प्राकृतिक सीमा बनाने वाली नदियों को पुनर्जीवित करने के काम किये। इन्होंने अपने काम को ही अपना देश-दुनिया मानकर , उनमें ही सम्पूर्ण क्रांति के बीज बोते रहे हैं। सम्पूर्ण क्रांति का झंडा थामे हजारों प्रौढ़ आज भी जे.पी. का नाम लिए बिना ही, उनके जाने के बाद भी उनके कामों को पूरा कर रहे हैं।
इन्होंने केवल बाढ़-सुखाड़, खनन मुक्ति, के काम ही नहीं किये थे, बल्कि डराने वालों से बिना डरे, उनके विरुद्ध सिंहनाद भी किया था। सम्पूर्ण क्रांति में लगे तरुणों के ऊपर बलात्कार जैसे मन घड़न्त झूठे मुकद्द में मड़ने के प्रयास किये गए। इन पर हत्या करने हेतु हमले भी होते रहे । लेकिन ये जे.पी के अहिंसादूत अडिग होकर शांति से अपने काम में लगे हुए है, चाहे वे पत्रकार हों या सामाजिक कार्यकर्ता। इन्होंने अपने रास्ते से तनिक भी हटने या रास्ता बदलने का प्रयास नहीं किया। इन्हें अपने रास्ते से भटकाने के बहुत अवसर बनाए गए। इन्हें माफिया द्वारा अर्थिक एवं यौन प्रलोभन भेजकर पथ भ्रष्ट करने के प्रयास होते रहते थे। द्वारा भेजकर भी पथ भ्रष्ट करने के प्रयास होते ही रहे थे।
सत्य को भगवान् मानने वाले, उस काल के ये तरुण-युवा बचे रहे। अब ये प्रौढ़ अवस्था में अपने सतकर्मों की साधना से अपने साध्य की तरफ बढ़ रहे हैं। जीवन शु़द्ध से ही उनके साधन भी शुद्ध बने रहे। इन जे. पी. दूतों को किसी भी सरकार का सहारा नहीं मिला। जब देश में भाजपा की सरकार होती है, तब इन्हें काँग्रेसी कहा जाता है और जब काँग्रेस की सरकार होती है तो उन्हें संघी-भाजपाई कहा जाता है। भाजपा तो इन्हें नक्सली भी कहती है।
सभी सरकारों के सब आरोपों को सहन करते हुए, ये शांति से अपने गाँवों-कस्बों, नगरों में रहकर रचना ही करते रहे। जब उसमें अड़चन आई तो ये सत्याग्रह पर भी उतर आये। इन्होंने अपने जीवन को शिक्षण व सेवा-राहत के कामों से शुरू किया था। उसके बाद ये रचना के काम में जुट गये। रचना कार्य में जो भी अड़चन, रुकावट पैदा हुई या इनकी रचना के प्रभावों को निष्प्रभावी करने वाले काम जैसे – जल संरक्षण के काम को उस क्षेत्र का खनन निष्प्रभावी बनाता है, तो खनन के विरुद्ध संघर्ष शुरू करते रहे।
इनकी तरुणाई और जवानी शिक्षण-रचना-संघर्ष में बीती। प्रौढ़ता, विज्ञान और अध्यात्मिक संबंधों व भारतीय विरासत को संभालने में लगी हुई है। भारतीय तीर्थ परम्पराओं को नष्ट करके आज देश पर्यटन की तरफ जा रहा है, ये अब इस घातक पर्यटन को पुनः र्तीर्थाटन की तरफ मोड़ने का प्रयास अब ये कर रहे है। घोषित आपातकाल के विरुद्ध तरुणाई जगी थी। आज की तरुणाई तो कोरोना से भयभीत बना दी गई है। कुछ को आर्थिक चक्कर के फेरे में फंसा दिया है। लाभ प्रतियोगिता में फँसाकर विश्व का आर्थिक नेता बनने का स्वप्न दिखा दिया है। जिससे आज का तरुण लोकशाही का विचार ही ना करें।
पैकिज के पैकट में बंद होती तरुणाई कैसे किसी भी घोषित या अघोषित आपातकाल के विरुद्ध खड़ी होगी? जैसे वातावरण का निर्माण हो रहा है , तरुणाई उदासीन बैठी है और लगता है अब तो प्रौढों को ही प्राणों की बाजी लगानी होगी । जैसे सम्पूर्ण क्रांति के एक सिपाही प्रो. जी. डी. अग्रवाल ने गंगा को प्राण दिये। उनका बलिदान अब धीरे-धीरे संम्पूर्ण क्रांति का रंग भरने लगा है। इसी प्रकार अब बहुत बलिदान होंगे, क्योंकि हिंसक अग्रेजों ने आजादी हेतु बलिदान लिये थे। परंतु वे भी हमारी अहिंसा के सामने ही झुकते थे।
हिंसक को हिंसा से हटाना असंभव होता है। हिंसा को अहिंसा से ही मिटा सकते हैं। हिंसक के साथ हिंसक बनने से विनाश होता हैं। भारत अहिंसक था। इसलिए भारत का विनाश नहीं हुआ, जबकि दुनिया में ऐसे बहुत से देश अपनी हिंसा से मिट गए हैं। अहिंसा ने ही भारत को विश्व गुरु बनाया था।
अहिंसा का रास्ता ही लोकनायक जे.पी. ने पकड़ा था। उनके बनाये सम्पूर्ण क्रांतिदूतों ने भी अहिंसा को ही अपनाया है। इनके जीवन में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्यचर्य, असंग्रह, शरीर-श्रम, अस्वाद, सर्वत्र भयवर्जन, सर्वधर्म समानत्व, स्वदेशी स्पर्श भावना को विनम्रतापूर्ण से व्रतनिष्ठा से जीया है। इसलिए 1970 से लेकर 2020 तक इन्होंने अपने 50 वर्ष के सामाजिक जीवन को छोटे से अंकुरित बीज से लेकर फलदार झुके वृक्ष की तरह बनाकर रखा है। ये इस प्रकृति से जितना लेते है, उतना विनम्र, श्रमनिष्ठ बनकर उसे वापस लौटाने के विनम्र प्रयास में लगे है। यही विनम्र प्रयास ‘सम्पूर्ण क्रांति’ बनकर, भारत का पुनर्जनन करके भारत को पहले जैसा समृद्ध ‘विश्व गुरु’ बनायेगा।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।