
वांगानूई नदी
पामर्स्टन नॉर्थ, न्यूजीलैंड: वांगानूई नदी के उद्गम से लेकर संगम (कासलक्लिफ) तक 8 मार्च 2025 को देर रात तक यात्रा की। इस पूरी नदी यात्रा में जानना चाहा कि इस नदी को ही दुनिया में सबसे पहले इंसानी दर्जा क्यों दिया गया?
इस नदी की यात्रा करके, समझ आया क, यहां की मूल आदिवासी माओरी जनजातियों के समूह ने बहुत संगठित रूप से अपनी वांगानूई नदी को अपने पूर्वजों की धरोहर – विरासत मानकर, नदी को सहेजने के लिए संकल्प और संचेतना के साथ 140 वर्षों तक लंबा संघर्ष किया है। माओरी समुदाय प्राकृतिक आस्था व पर्यावरण रक्षा में संस्कार और व्यवहार बहुत गहराई से जुड़े है। यहां मूल आदिवासी माओरी इस नदी को अपने पूर्वजों की आत्मा से सरावोर धरती पर बहने वाली जलधारा के रूप में देखते हैं। इसलिए 15 मार्च 2017 को न्यूजीलैंड की सांसद ने एक कानून बनाकर, इस नदी को इंसानी दर्जा प्रदान किया।
नदी को इंसानी दर्जा देते हुए लेबर के ते ताई हाउउरू सांसद एड्रियन रुरावे ने कहा था कि वांगानुई नदी की भलाई सीधे लोगों की भलाई से जुड़ी हुई है। इसलिए, नदी को एक व्यक्ति के रूप में मानने की अवधारणा माओरी के लिए असामान्य नहीं थी। यह प्रसिद्ध माओरी कहावत में समाहित है, “मैं नदी हूँ और नदी मैं हूँ”। यह नदी यहां के माओरी की विशिष्ट नदी है, इसलिए यह कानून केवल इसी नदी के लिए है, बाकी सब नदियों के लिए नहीं है। यदि कोई इस नदी को प्रदूषित करता है या हानि पहुंचाता है तो उसे भी मानव की क्षति पहुंचाने वाले कानून के तहत प्रतिक्रिया होगी।
वांगानुई इवी (जनजाति) के प्रमुख वार्ताकार गेरार्ड अल्बर्ट ने कहा था कि, “हमने यह दृष्टिकोण इसलिए अपनाया है क्योंकि हम नदी को अपना पूर्वज मानते हैं और हमेशा से मानते आए हैं। हमने कानून में एक सन्निकटन खोजने के लिए संघर्ष किया है ताकि अन्य सभी यह समझ सकें कि हमारे दृष्टिकोण से नदी को एक जीवित इकाई के रूप में मानना ही इसे देखने का सही तरीका है, एक अविभाज्य संपूर्ण के रूप में, पिछले 100 वर्षों से इसे स्वामित्व और प्रबंधन के दृष्टिकोण से देखने के पारंपरिक मॉडल के बजाय।”
वेटांगी वार्ता की संधि के मंत्री क्रिस फिनलेसन ने कहा था कि इस फैसले ने न्यूजीलैंड के इतिहास में सबसे लंबे समय से चल रहे मुकदमे को समाप्त कर दिया है। फिनलेसन ने एक बयान में कहा, “ते आवा तुपुआ की अपनी कानूनी पहचान होगी जिसमें एक कानूनी व्यक्ति के सभी संबंधित अधिकार, कर्तव्य और दायित्व होंगे।”
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अल्बर्ट ने कहा कि सभी माओरी जनजातियाँ खुद को ब्रह्मांड का हिस्सा मानती हैं, जो पहाड़ों, नदियों और समुद्रों के साथ एक और समान हैं।नया कानून अब उनके विश्वदृष्टिकोण का सम्मान करता है और उसे प्रतिबिंबित करता है, और न्यूजीलैंड में अन्य माओरी जनजातियों के लिए वांगानुई के नक्शेकदम पर चलने के लिए एक मिसाल कायम कर सकता है।”हम अपनी वंशावली को ब्रह्मांड की उत्पत्ति तक खोज सकते हैं, इसलिए प्राकृतिक दुनिया के स्वामी होने के बजाय, हम इसका हिस्सा हैं। हम अपने शुरुआती बिंदु के रूप में इस तरह जीना चाहते हैं। और यह नदी के विकास या आर्थिक उपयोग के खिलाफ़ नहीं है, बल्कि इस दृष्टिकोण से शुरू करना है कि यह एक जीवित प्राणी है, और फिर उस केंद्रीय विश्वास से इसके भविष्य पर विचार करें।”
यह वांगानूई नदी न्यूजीलैंड के उत्तर द्वीप की प्रमुख नदी है, जो से देश की 290 किलोमीटर बहने वाली तीसरी सबसे लंबी नदी भी है। नदी माउंट तिगारिओ से शुरू होकर कासलबीच बांगुनुई शहर में पहुंचकर समुद्र में मिलती है। जब यह समुद्र में मिलती है तब भी इस नदी की पवित्रता, शुद्धता स्पष्ट दृष्टिगत होती है। शहरों के दर्जनों नाले इस नदी में मिलते हैं लेकिन उन नालों में भी वैसा ही साफ पानी है जैसा इस नदी में बह रहा है। यह देखकर आश्चर्यचकित हो गया क्योंकि हमारे देश की पवित्र गंगा नदी में जो भी शहर के गंदे नाले मिलते है, उसमें जहरीला और मलमूत्र से प्रदूषित पानी होता है। यहां एक भी ऐसा गंदा नाला नहीं देखा, जो इस नदी में मल मूत्र लाकर छोड़ता हो। इसलिए ही यह नदी उद्गम से लेकर संगम तक अपने एक जैसे शुद्ध स्वरूप में बहती है।
वांगानूई नदी की वादियां समय-समय पर बदलती रही है। वर्ष 1843 में आए भूकंप से इसकी घाटियों में बदलाव आया था, कई बार घाटियां बदली लेकिन माओरी समुदाय के संघर्ष से आज यह अपनी निजी पहचान के साथ बहती है। इस नदी ने अपने बेटे – बेटियों को बड़े प्यार से सहेजा है क्योंकि समाज ने इस नदी को सहेजा हैं। जब नदी खुद स्वस्थ होती है, तभी वह अपनी बेटा-बेटियों को स्वस्थ रख सकती हैं। यह बात माओरी बहुत अच्छे से जानते हैं इसलिए अपनी नदी को अपने पूर्वजों का रक्त प्रवाह मानकर, उसकी सहेज कर स्वस्थ रखा हुआ है।
*जल पुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक।